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हिमालय बचाने के लिए अभियान की जरूरत : एनएन वोहरा

07:24 AM Jul 27, 2024 IST
नयी दिल्ली में शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एवं इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन के पूर्व अध्यक्ष एनएन वोहरा। - ट्रिब्यून फोटो

नयी दिल्ली, 26 जुलाई (ट्रिन्यू)
प्राचीन हिमालय की तुलना वर्तमान में पर्यटकों से अटे पड़े सभी पर्वतीय स्थलों से करते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने शुक्रवार को हिमालय को बचाने के लिए अभियान शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
वर्ष 1924 के ऐतिहासिक ब्रिटिश एवरेस्ट अभियान और जॉर्ज मैलोरी और एंड्रयू इरविन के रहस्यपूर्ण तरीके से लापता होने की शताब्दी उपलक्ष्य में आयोजित ‘माउंटेन डॉयलॉग’ कार्यक्रम में वोहरा ने कहा, ‘हमें लाखों पेड़ लगाने की जरूरत है, न कि ऐसा कुछ करने की जो हम आज कर रहे हैं।’
वर्ष 1959 बैच के पंजाब काडर के आईएएस अधिकारी वोहरा ने इस बात की चर्चा की कि कैसे हर दिन हजारों कारें हिमाचल प्रदेश के मनाली पहुंचती हैं। ‘इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन’ के पूर्व अध्यक्ष वोहरा ने युवावस्था के अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि तब मनाली से रोहतांग तक पैदल चलना पड़ता था, लेकिन आज सड़क होने के बावजूद गाड़ियों की कतारें लग जाने के कारण 4-5 घंटों में यह दूरी तय हो पाती है। सड़क किनारों पर होमस्टे, रेस्टोरेंट और होटल बन गए हैं। माउंट एवरेस्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कैसे स्थायी रस्सियों की मदद से हर साल सैकड़ों लोग वहां चढ़ पाते हैं।
केंद्रीय गृह सचिव और रक्षा सचिव के रूप में कार्य कर चुके वोहरा ने सवाल किया, ‘आखिर हम कर क्या रहे हैं?’ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) के अध्यक्ष श्याम सरन ने वोहरा की बात से सहमति जताते हुए कहा, ‘हिमालय को बचाने के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन चलाने की जरूरत है और आईआईसी को इसमें भागीदारी करने पर बहुत खुशी होगी।’ सरन विदेश सचिव रहे हैं और उन्होंने परमाणु मामलों और जलवायु परिवर्तन के लिए प्रधानमंत्री के विशेष दूत के रूप में भी कार्य किया है। इससे पहले मैलोरी और इरविन की यात्रा को याद करते हुए ब्रिगेडियर अशोक एबे (सेवानिवृत्त) ने क्रमबद्ध तरीके से घटनाक्रम की प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि 1907 में एवरेस्ट पर चढ़ाई का प्रस्ताव सर कर्नल फ्रांसिस यंगहसबैंड ने ही रखा था। मैलोरी 1922 में एक टोही मिशन का हिस्सा थे। ब्रिगेडियर एबे ने कहा कि इस बात पर राय बंटी हुई है कि मैलोरी चोटी पर पहुंचे या नहीं। उन्हें और इरविन को आखिरी बार उनके एक टीम के सदस्य ने चोटी के करीब 800 मीटर की दूरी पर देखा था। मैलोरी का शव 1999 में मिला था, जबकि सौ साल बाद भी इरविन का शव अभी तक नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा, ‘वे लोग पहाड़ पर चढ़ने की अलग-अलग विधाओं से जुड़े थे। बहुत कम लोग मैलोरी और इरविन की बराबरी कर सकते हैं। उन्होंने साधारण तरीके से पर्वतारोहण किया, यहां तक कि क्रैम्पन (पकड़ मजबूत बनाने के लिए जूतों के तलवे में लगने वाला सामान) जैसी साधारण चीजों का भी इस्तेमाल नहीं किया। ब्रिगेडियर एबे एक स्कीयर-पर्वतारोही हैं, जिन्होंने 43 से अधिक वर्षों तक कराकोरम, ग्रेट हिमालय और आस-पास की पर्वत शृंखलाओं, जिसमें विदेशी पर्वत भी शामिल हैं, पर बड़े पैमाने पर चढ़ाई की है।

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