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सुलगते सवाल

06:21 AM Oct 06, 2023 IST

एक न्यूज पोर्टल से जुड़े पत्रकारों पर छापे, कुछ की गिरफ्तारी और फिर आप के सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी के बीच लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक सुविधा के लिये सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग पर देश में सवाल तीखे हुए हैं। देश की शीर्ष अदालत गाहे-बगाहे राजनीतिक हथियार बनीं एजेंसियों की कारगुजरियों पर सवाल उठाती रही हैं। कभी कोर्ट ने एजेंसी को पिंजरे का तोता कहा तो कभी इन एजेंसियों में नियमों से इतर शीर्ष अधिकारियों के लगातार बढ़ते कार्यकाल को लेकर भी सवाल उठाए। पिछले कुछ महीनों में ऐसा विवाद शीर्ष अदालत व सरकार के बीच खासा चर्चित रहा। निस्संदेह, जब किसी खास या आम पर देश की स्थापित व्यवस्था के खिलाफ काम करने अथवा कानून, अर्थव्यवस्था या समाज के खिलाफ राष्ट्रविरोधी कार्यों में लिप्त होने के आरोप लगाये जाते हैं तो उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत भी होने भी चाहिए। आरोप तार्किक होने चाहिए। आरोप का आधार राजनीतिक आकाओं की पसंद-नापसंद भी नहीं होनी चाहिए। फिर लोकतंत्र में विपक्ष और मीडिया के विभिन्न धाराओं से जुड़े लोगों के प्रति सहिष्णुता सत्तारूढ़ दल या सरकार की गरिमा को ही बढ़ाती है। लोकतंत्र में लोक की सर्वोच्चता होती है, तंत्र की नहीं। सत्ताधीशों को मानना चाहिए कि सतर्क विपक्ष व धारदार मीडिया भी लोकतंत्र के रक्षक ही होते हैं। लेकिन यहां राजनीतिक दलों का विरोध भी तार्किक व जनमानस के हितों के अनुरूप होना चाहिए। आरोप महज राजनीतिक लक्ष्यों के लिये सत्तारूढ़ दल को घेरने का जरिया नहीं होना चाहिए। यानी महज विरोध के लिये विरोध नहीं होना। वहीं मीडिया के लिये भी लक्ष्मण रेखा निर्धारित है। विरोध के लिये उसका आधार भी विश्वसनीय होना चाहिए और जवाबदेही जनता के प्रति होनी चाहिए। वहीं किसी राजनीतिक विचारधारा के मामले में भी उसे निरपेक्ष होना चाहिए। विडंबना यही है कि गढ़े हुए तथ्यों के आधार पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है। वहीं अर्द्धसत्यों को सत्य साबित करने की होड़ जारी है। यहां सवाल सरकारी एजेंसियों की पारदर्शिता व निष्पक्षता का भी है। ये सारे विवाद सभी पक्षों के नीर-क्षीर विवेक व पारदर्शी व्यवहार की जरूरत बताते हैं।
वीरवार को शीर्ष अदालत में आप के पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया की शराब नीति में कथित भ्रष्टाचार विवाद प्रकरण में हुई गिरफ्तारी से जुड़े सवालों पर ईडी से तीखे सवाल किये गये। लगाये गये आरोपों की तार्किकता पर सवाल उठे कि जब मनीष सिसोदिया की मामले में सीधी भूमिका नहीं है तो उन्हें आरोपी क्यों बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी का केस ठोस सबूतों के आधार पर होना चाहिए अन्यथा जिरह के दौरान केस दो मिनट में गिर जाएगा। कोर्ट का कहना था कि यदि मनीष सिसोदिया की भूमिका मनी ट्रेल में नहीं है तो मनी लॉन्ड्रिंग में सिसोदिया आरोपियों में क्यों शामिल हैं। कोर्ट का कहना था कि मनी लॉन्ड्रिंग अलग कानून है। यह भी कि ईडी साबित करे कि सिसोदिया केस प्रापर्टी में शामिल रहे हैं। बहरहाल, अब कोर्ट उनकी जमानत याचिका पर बारह अक्तूबर को सुनवाई करेगी। इस बीच कोर्ट ने सरकारी गवाहों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये। कोर्ट का कहना था कि केस ठोस सबूतों की बुनियाद पर तैयार होना चाहिए। अनुमान के आधार पर केस तैयार नहीं किये जा सकते। कोर्ट का कहना था कि राजनीतिक कार्यकारी के निर्देशों पर नौकरशाहों को विवेकशील ढंग से विचार करना चाहिए। कोर्ट ने पूछा कि शराब नीति में कथित घोटाले मामले में सीबीआई चार्जशीट में अनुमानित राशि और ईडी की रिपोर्ट में उल्लेखित राशि में अंतर क्यों है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि नई शराब नीति से यदि किसी राजनीतिक दल विशेष को लाभ पहुंचा है तो उस पार्टी को इस केस में क्यों नहीं शामिल किया गया? वहीं दूसरी ओर आप सांसद संजय सिंह की कोर्ट में हुई पेशी के दौरान अदालत ने ईडी की कार्यशैली को लेकर कई तीखे सवाल पूछे। साथ ही यह भी पूछा कि उनकी कस्टडी क्यों जरूरी है। जिसके बाबत ईडी का तर्क था कि सांसद के घर से जो सबूत मिले हैं, उनसे जुड़े सवालों को लेकर पूछताछ जरूरी है। बहरहाल, ऐसे मामलों में एजेंसियों को तार्किक आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए।

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