सुलगते खेत
दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गैस चैंबर में तब्दील होने से नाराज शीर्ष अदालत ने हाल ही में नाराजगी जताते हुए कहा है कि प्रदूषण से निपटने के दावे कागजी स्तर पर किये जा रहे हैं। इस गंभीर स्थिति में घर से बाहर कदम रखना मुश्किल हो गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि पराली जलाना वायु प्रदूषण के मुख्य कारकों में से एक है, लेकिन इसे रोकने की दिशा में गंभीर कोशिश नहीं हुई। अदालत ने केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली समेत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान से हलफनामा दायर करके प्रदूषण रोकने के लिये किये उपायों की जानकारी एक हफ्ते में मांगी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी चीजें कागजों पर हैं, जमीनी हकीकत कुछ नहीं है। बृहस्पतिवार को दिल्ली के कई क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई खतरे के स्तर चार सौ पार कर जाना स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। अदालत का कहना था कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा उठाये गए उपचारात्मक उपायों के बावजूद दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ा है। यह भी कि दिल्ली-एनसीआर की हवा को सांस लेने योग्य बनाने के लिये रणनीति तैयार करने के उद्देश्य से जिस वैधानिक निकाय को 2021 में स्थापित किया गया था, वह लक्ष्यों की प्राप्ति में कामयाब नहीं रहा। दरअसल, हर साल अक्तूबर और नवंबर में दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है। यूं तो इसके मूल में कई कारक हैं, लेकिन पराली जलाना भी एक बड़ा कारण है। पंजाब के कुछ हिस्सों में धान की कटाई के मौसम में खेतों में जलायी जाने वाली पराली से उठने वाले धुएं से हवा की गुणवत्ता में चिंताजनक गिरावट देखी गई है। धान उगाने वाले प्रमुख राज्यों में से पंजाब में इस सीजन में खेत में आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं, इसके बाद मध्यप्रदेश का स्थान है। हकीकत यह भी है कि पराली के निस्तारण के लिये जो वैकल्पिक उपाय सुझाए गए, उनका जमीनी हकीकत में कोई असर नजर नहीं आया।
ऐसे वक्त में जब लोकसभा चुनाव को महज छह माह के करीब रह गये हैं, तो राज्य सरकारें अपने खेतों में पराली जलाने वाले किसानों के विरुद्ध कार्रवाई कर उनका गुस्सा मोल नहीं लेना चाहती। यह विडंबना ही है कि पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर चुनावी हितों को प्राथमिकता दी जा रही है। इतना ही नहीं पराली जलाने से रोकने के लिये किसानों को प्रोत्साहित करने के प्रयास भी आधे-अधूरे मन से किये गए हैं। वहीं वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की दलील है कि मध्य सितंबर से अक्तूबर के अंत तक पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले वर्षों के मुकाबले कम दर्ज की गई हैं। पंजाब व हरियाणा में इन घटनाओं में पिछले वर्ष की तुलना में इस अवधि में करीब 56 व 40 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। ऐसे वक्त में जब किसानों समेत लाखों लोग प्रदूषित हवा के संपर्क में आ रहे हैं तो ये आंकड़े थोड़ी सांत्वना देते हैं। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की विशेष कैंसर एजेंसी ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ के अनुसार वायु प्रदूषण भी मनुष्यों के लिये कैंसरकारी है। दरअसल स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न खतरों के बीच कैंसर से होने वाली मौतों के लिये प्रदूषण को एक कारण के रूप में चिन्हित किया गया है। पंजाब का मालवा क्षेत्र तो पहले ही कैंसर के मामलों में अत्यधिक वृद्धि की घटनाओं से जूझ रहा है। निस्संदेह, फिलहाल, जानलेवा प्रदूषण के दौर में इस घुटन भरी हवा से राहत पाने का एक मात्र उपाय मौसम का अनुकूल होना ही रहेगा। सही मायनों में वायु गुणवत्ता बनाये रखने के लिये सभी हितधारकों को इस समस्या से मुक्त होने के लिये युद्ध स्तर पर ही प्रयास करने होंगे। ऐसे वक्त में जब दिल्ली में कई स्थानों पर एक्यूआई चार सौ से ऊपर दर्ज किया गया है तो आग लगने पर कुआं खोदने की प्रवृत्ति से ग्रसित शासन-प्रशासन बचाव के तरह-तरह के उपायों की घोषणा कर रहा है। निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की बात की जा रही है। बीएस-4 डीजल वाहनों पर रोक लगाने तथा स्कूल बंद करने जैसे उपायों की बात हो रही है।