परिश्रम के बिना संभव नहीं उज्ज्वल भविष्य का निर्माण : राजेन्द्र विद्यालंकार
कुरुक्षेत्र, 23 अक्तूबर (हप्र)
गुरुकुल कुरुक्षेत्र के दो दिवसीय 112वें वार्षिक महोत्सव का आज शानदार आगाज हुआ। आर्य प्रतिनिधि सभा हरियाणा के प्रधान देशबन्धु आर्य समारोह में मुख्यातिथि के रूप में पधारे जिन्होंने मुख्य वक्ता डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार व गुरुकुल प्रबंधन समिति के अधिकारियों के साथ ध्वजारोहण कर महोत्सव का विविधत शुभारम्भ किया। इस अवसर पर गुरुकुल के छात्रों द्वारा विज्ञान एवं कला प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें 50 से अधिक मॉडल्स छात्रों द्वारा प्रदर्शित किये गये। कार्यक्रम में गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, निदेशक ब्रिगेडियर डॉ. प्रवीण कुमार, प्राचार्य सूबे प्रताप, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य, आर्य समाज यमुनानगर के प्रधान मोहित आर्य आदि भी
मौजूद रहे। मंच संचालन गुरुकुल के मुख्य संरक्षक संजीव आर्य द्वारा किया गया।
सर्वप्रथम निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार ने गुरुकुल की उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधों पर प्रकाश डाला। सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए वैदिक विद्वान् एवं गुजरात के राज्यपाल के ओएसडी डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने कहा कि परिश्रम के बिना उज्ज्वल भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः छात्रों को कम्फर्ट जोन से बाहर होकर कड़ा परिश्रम करना चाहिए तभी वे अपने जीवन के इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं। उन्होंने युवाओं को आगाह करते हुए कहा कि कामयाबी या सफलता वो नहीं कि आपके पास बहुत ज्यादा पैसा हो, बल्कि असली सफलता वह है कि आप किसी गरीब, असहाय का सहारा बन सके। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को महान बनाने में तीन चीजें महत्त्वपूर्ण हैं-प्रतिभा, वातावरण और अभ्यास। प्रतिभा व्यक्ति को जन्मजात मिलती है, अच्छा वातावरण उसे गुरुकुल जैसे संस्थान उपलब्ध कराते हैं और मेहनत उसे स्वयं करनी होती है तभी वह महानता की ओर अग्रसर होता है।
इससे पूर्व अतिथियों द्वारा विज्ञान एवं कला प्रदर्शनी का शुभारम्भ किया गया। विज्ञान प्रदर्शनी में विभिन्न कक्षा के छात्रों ने भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान के साथ-साथ दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले अनेक मॉडल्स प्रस्तुत किये। वहीं कला प्रदर्शनी में छात्रों ने अनेक सुन्दर पेंटिंग्स प्रदर्शित की। अंत में गुरुकुल प्रबंधन समिति द्वारा मुख्य अतिथि देशबन्धु आर्य एवं डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार को ओ३म् का स्मृति-चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।