भाई का त्याग
महात्मा हंसराज डीएवी संस्थान के संस्थापक प्राचार्य थे। उन्होंने आर्य समाज मंदिर लाहौर में डीएवी स्कूल के लिए अवैतनिक कार्य करने की घोषणा की थी। उन्होंने अपने परिजनों से भी इस विषय में स्वीकृति नहीं ली थी। वे अपने भाई मूलराज जी के साथ लाहौर में रहते थे। मूलराज जी को जब अपने भाई हंसराज की वेतन रहित कार्य करने की घोषणा के बारे में पता चला तो उन्होंने अपूर्व त्याग का परिचय देते हुए अपने भाई से कहा कि तुम अपनी घोषणा से पीछे मत हटना। घर-परिवार की चिंता भी मत करना, जिस पवित्र भावना से तुमने ऋषि मिशन का कार्य करने की योजना बनाई है, जीवनभर इस पवित्रता के साथ कार्य करते रहना। मैं तुम्हारी इच्छापूर्ति के लिए तुम्हारे सपने को साकार करूं। इसलिए मैं यह संकल्प करता हूं कि मैं जीवनभर अपने वेतन का आधा वेतन प्रति माह तुम्हें देता रहूंगा। उस समय मूलराज जी का वेतन 80 रुपये प्रति माह था। यह बड़े भाई का त्याग छोटे भाई के लिए था। महात्मा हंसराज जी को त्यागी, तपस्वी, यशस्वी और शिक्षाविद् के रूप में जाना जाता है, इसके पीछे उनके बड़े भाई मूलराज का त्याग है।
प्रस्तुति : डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी