नये संदर्भों में लाये हर कहानी
शान्तिस्वरूप त्रिपाठी
लगभग 25 वर्ष पहले कोलकाता में एक प्रोफेसर के बेटे ने उनके सामने मुंबई जाकर सिनेमा जगत में कहानियां सुनाने की इजाजत मांगी, तो पिता ने साफ मना कर दिया। मगर बेटे को तो फिल्मों का जुनून था। तब उसने पुणे जाकर मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की। फिर मुंबई आकर एडवरटाइजिंग एजेंसी में कुछ समय नौकरी की। उसके बाद 2007 में उसने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘स्वास्तिक प्रोडक्शन’ की शुरुआत की। यहां बात हो रही है, लेखक, निर्देशक व निर्माता सिद्धार्थ कुमार तिवारी की, जिन्होंने सीरियल ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’, ‘फुलवा’ सहित कई धारावाहिकों में सामाजिक मुद्दों को उठाया। साल 2013 में उन्होंने ‘महाभारत’ का निर्माण किया, जिसमें नया दृष्टिकोण पेश किया। इसे अच्छा प्रतिसाद मिला। तब से वे लगातार ‘शिव शक्ति’, ‘राधाकृष्ण’, ‘पोरस’, अम्बर धारा, माता की चौकी, चन्द्रगुप्त मौर्य, महाकाली-.., कर्मफलदाता शनि, बाल कृष्ण, बेगुसराय और ‘श्रीमद रामायण’ जैसे धार्मिक व ऐतिहासिक सीरियलों का निर्माण कर रहे हैं। पेश है सिद्धार्थ तिवारी से बातचीत।
आपको सिनेमा से जुड़ना था पर पढ़ाई करने पुणे गए। क्या यह परिवार के दबाव के चलते किया?
मैं कलकत्ता से बाहर निकलना चाहता था। पिताजी से कहा कि मुझे फिल्मों में जाना है, कहानियां लिखनी हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में तुमने कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली, पढ़ाई कर नौकरी कीजिए। मैंने कहा , ठीक है। पर मैं मास कम्युनिकेशनका कोर्स करना चाहता हूं। जिसमें एडवरटाइजिंग सीखते हैं। इससे नौकरी मिल जाएगी। इजाजत मिल गयी। इस तरह मैं पुणे पहुंचा, फिर मुंबई आया। कुछ माह बाद एडवरटाइजिंग एजेंसी में काम मिला। फिर नौकरी छोड़ 2007 में अपनी ‘स्वास्तिक प्रोडक्शन’ शुरू की।
पहले ‘अगले जनम मोहे’ का निर्माण, फिर ‘फुलवा’ जैसे सामाजिक शो बनाए। वैचारिक शो का ख्याल कहां से आया था?
मेरी समझ में आया था कि टीवी बहुत बड़ा व सशक्त माध्यम है जिस पर हमें कुछ अच्छी बातें कहनी चाहिए। ऐसी कहानी, जिसके पीछे कोई सोच हो। ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’ की कहानी के पीछे सोच व भाव अच्छा था। इसमें ‘बिटिया ही कीजो’ के इर्द गिर्द सारा भाव पिरोया ह था। क्योंकि सारी मुसीबतों के बावजूद जो काम बेटी करती है, वह कोई बेटा नहीं करता। कहानी सुनाते हुए मैं इंज्वॉय करता हूं। मेरा यह शौक मेरी जिंदगी बन गया। फिर हमने ‘फुलवा’ बनाया।
‘अगले जनम मोहे’ पंद्रह वर्ष पूर्व आया। अब बेटियों की क्या स्थिति देखते हैं?
हम जब अपने विचार सामने लाते हैं, तो उसका प्रभाव दिखने में समय लगता है। पर अब बहुत बदलाव देख रहा हूं। बेटी पैदा होने पर दुख मनाने वाले लोग कम हुए। अब तो बेटी होने पर जश्न मनाते हैं।
आपके सामाजिक विषयों वाले शो लोकप्रिय हो रहे थे। फिर पौराणिक, ऐतिहासिक की ओर रुख क्यों?
कभी सोचा ही नहीं था कि ‘महाभारत’ की कहानी बयां करूंगा। एक दिन ‘स्टार प्लस’ से विवेक बहल ने मुझे बुलाकर कहा कि उन्हें ‘अगले जनम मोहे...’ अच्छा लगता है और इसके किरदार भी। वे चाहते थे कि हम इसी तरह से ‘महाभारत’ के किरदारों को भी सोचें। तब मैंने ‘महाभारत’ पढ़ना-समझना शुरू किया। इसके बाद सवाल थे कि समसामयिक कैसे होगा? जिस धृतराष्ट के पास हजारों हाथियों का बल है, वह कमजोर कैसे हुआ? उसे अंधा क्यों लिखा? तब निष्कर्ष निकला कि अगर पिता अपने बेटे के मोह में पड़ जाए, तो वह पिता धृतराष्ट्र होता है और बेटा दुर्योधन- यह मेरा इंटरप्रिटेशन था। मैंने टीम बनायी और ‘महाभारत’ को नये भाव से बनाया।
आपके अगले प्रोजेक्ट क्या हैं?
डिजिटल पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। अपने मौलिक कार्यक्रमों को यूट्यूब, फेसबुक की तरफ बढ़ा रहे हैं। टीवी के दर्शक अब डिजिटल व ओटीटी पर देख रहे हैं। हम भारत के स्प्रिच्यूअल युनिवर्स पर भी काम कर रहे हैं। फिल्म पर काम चल ही रहा है।