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लीक तोड़ती फिल्मों ने जगायी कांस में नई आस

08:23 AM Jun 08, 2024 IST
लीक तोड़ती फिल्मों ने जगायी कांस में नई आस
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हेमंत पाल
फिल्म बनाने वाले देशों में दुनिया के दो पुरस्कारों का विशेष महत्व है। ये हैं ‘ऑस्कर’ और ‘कांस फिल्म फेस्टिवल।’ जिस भी देश की किसी फिल्म को इनमें से कोई अवॉर्ड मिलता है, उसे अभूतपूर्व उपलब्धि माना जाता है। ऐसे में वे फिल्मकार भी दुनिया की नजरों में आ जाते हैं जिनकी फिल्म पुरस्कृत होती है। इस बार ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में अनुसुईया सेनगुप्ता और पायल कपाड़िया ने भारत का नाम रोशन किया। बुल्गारिया के निर्देशक कॉन्स्टेंटिन बोजानोव की हिंदी भाषी फिल्म ‘द शेमलेस’ के लिए कोलकाता की अनुसुईया सेनगुप्ता को फेस्टिवल में ‘अनसर्टेन रिगार्ड’ श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।
इस साल का ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ भारत के लिए उपलब्धियों से भरा रहा जिसमें आठ भारतीय या भारत पर आधारित फिल्मों को स्पर्धाओं में जगह मिली। पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’, एफटीआईआई के छात्र चिदानंद एस नाइक की ‘सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो’ और ‘द शेमलेस’ की अनुसुईया सेनगुप्ता को अलग-अलग श्रेणी में सम्मानित किया गया। ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ पिछले तीन दशक में मुख्य स्पर्धा में दिखाई गई भारत की पहली और किसी भारतीय महिला निर्देशक की भी पहली फिल्म है। इससे पहले 1994 में मलयालम निर्देशक शाजी एन करुण की ग्रामीण परिवेश पर बनी फिल्म ‘स्वाहम’ भारत की ओर से ‘द पाल्मे ड’ओर’ के लिए नामांकित होने वाली आखिरी फिल्म थी। साल 1946 में भारतीय फिल्म ने ‘द पाल्मे ड’ओर’ जीता था। ‘द पाल्मे ड’ओर’ जीतने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’ है।
‘द शेमलेस’ में भूमिका निभाने वाली अनुसुईया सेनगुप्ता ‘अनसर्टेन रिगार्ड’ श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। ‘द शेमलेस’ शोषण और उत्पीड़न की एक अंधेरी दुनिया बयां करती है, जिसमें दो यौनकर्मी एक बंधन में बंधती हैं और आजादी के लिए निकल पड़ती हैं। सेनगुप्ता ने यह पुरस्कार समलैंगिकों और अन्य कमजोर समुदायों को समर्पित किया। कांस में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब पाने के बाद अनुसुईया सेनगुप्ता दुनियाभर में मशहूर हो गई। अनुसुईया का कहना है कि यह पुरस्कार जीतना कोई व्यक्तिगत ट्रॉफी नहीं, बल्कि संपूर्ण देश की है। अनुसूईया ने एक इंटरव्यू में कहा कि मेरी खुशी के इस पल में हर कोई गर्व की भावना महसूस कर रहा है।
‘द शेमलेस’ में यह है ख़ास
फिल्म ‘द शेमलेस’ की कहानी दो महिलाओं के जीवन पर आधारित है। यह दिल्ली के वेश्यालय में काम कर रही रेणुका की कहानी है, जो पुलिसवाले का मर्डर कर फरार हो जाती है। उत्तर भारत में वेश्याओं के एक जमघट में शरण लेती हैं, जहां उनकी मुलाकात देविका से होती है। दोनों साथ मिलकर कानून और समाज से बचने के लिए एक खतरनाक रास्ते पर निकल पड़ती हैं।
जिन भारतीय फिल्मों को मौका मिला
एस नाइक की ‘सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वंस टू नो’ को ला सिनेफ यानी फिल्म स्कूल फिक्शन या एनिमेटेड फिल्में श्रेणी में प्रथम पुरस्कार मिला। कन्नड़ लोककथा पर आधारित यह फिल्म एक बूढ़ी औरत के बारे में है, जो मुर्गा चुरा लेती है। इसके बाद गांव में सूरज उगना बंद हो जाता है। इससे पहले कांस के लिए चुनी गईं भारतीय फिल्मों में मृणाल सेन की ‘खारिज’ (1983), एमएस सथ्यू की ‘गर्म हवा’ (1974), सत्यजीत राय की ‘पारस पत्थर’ (1958), राज कपूर की ‘आवारा’ (1953) वी शांताराम की अमर भूपाली (1952) और चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’ (1946) शामिल हैं।
कौन है पायल कपाड़िया
मुंबई में जन्मी पायल कपाड़िया ने प्रारंभिक शिक्षा आंध्र प्रदेश से ली। इसके बाद मुंबई में मास्टर्स तक पढ़ाई की। फिल्म डायरेक्शन की पढ़ाई के लिए एफटीआईआई से जुड़ गईं। पायल इससे पहले भी कान फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड जीत चुकी हैं। उन्होंने 2021 में ‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ डॉक्यूमेंट्री डायरेक्ट की थी। इसे कान फिल्म फेस्ट में 2021 में द गोल्डन आई अवार्ड मिला था। ‘द पाल्मे ड’ओर’ जीतने वाली पायल कपाड़िया ने 2014 में पहली फिल्म ‘वाटरमेलन’ और ‘फिश एंड हाफ घोस्ट’ व 2017 में ‘द लास्ट मैंगो बिफोर द मानसून’ बनाई।
‘ऑल वी इमेजिन’ की कहानी
पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ केरल की दो नर्सों की कहानी पर आधारित है। इस फिल्म में कानी कस्तूरी, दिव्या प्रभा और छाया कदम ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं हैं। यह हिंदी फीचर फिल्म है, जो दो नर्सों (प्रभा और अनु) की कहानी है, जो मुंबई में साथ रहती है। प्रभा का पति विदेश में रहता है। अनु की शादी नहीं हुई। दोनों अपने दो दोस्तों के साथ ट्रिप पर जाती हैं। वहां उन्हें आज़ादी के मायने समझ आते हैं। फिल्म समाज में महिला होने का मतलब समझाती है।
2024 में किस फिल्म ने ‘कांस’ जीता
कांस फिल्म फेस्टिवल में ‘द पाल्मे ड’ओर’ का सर्वोच्च सम्मान, शॉन बेकर की सेक्स वर्कर स्क्रूबॉल कॉमेडी ‘एनोरा’ को मिला।
भारतीय फिल्मों को मिले पुरस्कार
केन्स में सर्वोच्च पुरस्कार ‘द पाल्मे ड’ओर’ अब तक किसी भी भारतीय फिल्म को नहीं मिला। दूसरे नंबर का सर्वोच्च पुरस्कार जरूर मिला। इसके अलावा मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’ ने 1988 में कांस फिल्म फेस्टिवल में ‘कैमरा ड’ओर’ पुरस्कार जीता था। नायर की 2001 की क्लासिक फिल्म ‘मानसून वेडिंग’ वेनिस फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लायन जीता था। निर्देशक ऋतेश बत्रा की 2013 की प्रशंसित फिल्म ‘द लंचबॉक्स’ ने कांस में ‘ग्रैंड गोल्डन रेल’ पुरस्कार जीता था।

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