मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

पुल का ब्रेक डांस, बाबागीरी में आस

07:21 AM Jul 09, 2024 IST
Advertisement

आलोक पुराणिक

गिरने का इस मुल्क में यह हाल है कि इंसानों के कैरेक्टर, सेंसेक्स से लेकर पुल गिरे जा रहे हैं, बिहार में पुल इतनी स्पीड से गिर रहे हैं, जितनी स्पीड से नेता इधर से उधर पार्टी न बदलता।
खैर जो प्रॉब्लम सॉल्व न हो रही हो उसे परमानेंट मान कर उससे कमाई की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। अब पुल लगातार गिर रहे हैं तो टिकट लगाकर पर्यटकों को गिरता हुआ पुल दिखाना चाहिए। गिरते हुए पुल की स्लो मोशन वाली रीलें बनाई जाएं। पब्लिक को खासकर विदेशी पब्लिक को बताया जाए कि यह पुल डांस है, जो पुल एक मिनट में गिरे उस एक मिनट के गिरने को मॉडर्न पुल ब्रेक डांस बताया जाए। जो पुल नजाकत से धीरे-धीरे गिरे उस गिरने को क्लासिकल ब्रेक डांस बताया जाए। अमेरिका, जापान आदि के पर्यटकों को यह ब्रेक डांस दिखाकर मोटी रकम खींची जा सकती है। पुल स्लो मोशन में गिरते हुए दिखें, पुल तेज गति से गिरते हुए दिखें। पुल डांस करते हुए दिखते हैं। गिरते हुए पुल में तो अपार संभावनाएं हैं।
नेताओं में मार मची रहती है कि उन्हे मंत्री बनाया जाये। कौन-कौन से डिपार्टमेंट नये बनाये जायें कि अधिक से अधिक लोगों को मंत्री बनाया जा सके, यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। यूं किया जा सकता है कि एक मंत्री बनाया जाये पुल मंत्री और एक और मंत्री बनाया जाये गिरता हुआ पुल मंत्री और एक और मंत्री बनाया जाये, गिरे हुए पुल की जांच का मंत्री। एक ही पुल कई मंत्रियों को रोजगार दे सकता है। नेताओं और मंत्री पद के बीच का रास्ता हो सकता है पुल।
खैर टी-ट्वेंटी क्रिकेट टूर्नामेंट में भारतीय टीम लौटकर स्वदेश आ गयी। जिस दिन टीम लौटी उस दिन कामकाजी दिन था बृहस्पतिवार। फिर भी क्रिकेट टीम के विजयी जुलूस में भारी भीड़ जुटी मरीन ड्राइव पर। इस पर एक संभावित टीवी डिबेट इस प्रकार रहे—
भाजपा के संबित पात्रा ने कहा प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में देश में लाखों लोग विजयी टीम का स्वागत करने को तैयार हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि बृहस्पतिवार के कामकाजी दिन भी इतने लोग आए यानी लोग खाली हैं, बेरोजगार हैं। इसके लिए मोदी जिम्मेदार हैं।
इस मुल्क में कुछ हो या न हो भीड़ जरूर हो जाती है। बाबा हो या आलू के परांठे का ढाबा, भीड़ ही भीड़ है। बल्कि जो हाल चल रहा है बाबागीरी का उसमें तो कोई ढाबा वाला ही बाबा बन सकता है और कह सकता है कि मेरे ढाबे के आलू के परांठों को ही बतौर प्रसाद चढ़ाया जाये। बाबाओं की किरपा सबसे पहले उन पर खुद पर ही बरसती है। इस मुल्क में बाबा और नेता के पास हर समस्या का हल होता है, हालांकि पब्लिक को समस्या का हल मिल नहीं पाता है। इस मुल्क में समस्या का निपटारा आम आदमी के लिए यह है कि वह बाबा बन जाये या नेता। नेतागीरी में फ्लाप बंदे बाबागीरी में हाथ आजमा सकते हैं, पब्लिक से झूठ बोलने का अभ्यास दोनों को होता है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement