कृषि संकट से निपटने के उपायों पर मंथन
नीरज मोहन/ ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 4 मार्च
कृषि का कमजोर मार्केटिंग सिस्टम, आढ़तियों का वर्चस्व, गेहूं और धान पर निर्भरता, वैकल्पिक फसलों की अपर्याप्त खरीद और घटता भूजल स्तर। पंजाब में कृषि संकट के पीछे ये प्रमुख कारण विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने उजागर किए।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पंजाब स्टडीज और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में विशेषज्ञों ने राज्य के कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए नीतिगत सुधारों की सिफारिश की। विशेषज्ञों ने पंजाब के किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मौजूदा संकट से निकालने के लिए तत्काल नीतिगत समायोजन की आवश्यकता पर जोर दिया।
सीआरआरआईडी चंडीगढ़ के पूर्व महानिदेशक, विख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर सुच्चा सिंह गिल ने कहा कि हरित क्रांति के बाद; आतंकवाद के दौर और संगठित अपराध के कारण पंजाब में पूरा ध्यान विकास से हटकर कानून और व्यवस्था पर केंद्रित हो गया। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में राज्य की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई, जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय, विकास और जीएसडीपी में गिरावट आई, यह स्थिति आज भी बनी हुई है। प्रोफेसर गिल ने गेहूं-धान चक्र से उत्पन्न चुनौती पर प्रकाश डाला और एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया।
विशेषज्ञों ने पंजाब में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कुछ मॉडलों की विफलता पर भी चर्चा की और कहा कि इन अनुभवों ने किसानों को कॉर्पोरेट क्षेत्र की भागीदारी के बारे में संदेह में डाल दिया है। प्रोफेसर गिल ने निजी कंपनियों द्वारा किसानों और उपभोक्ताओं के संभावित शोषण को रोकने के लिए मजबूत राज्य हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर देते हुए गहन जांच और चर्चा का आग्रह किया।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमल वत्ता ने प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि ग्रामीण पंजाब में कुल कार्यबल भागीदारी महज 32.2 फीसदी है। इनमें पुरुष 55 फीसदी, जबकि महिलाओं सिर्फ 5.2 फीसदी हैं।
मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अनिंदिता सरकार ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए ‘फूड नेक्सस’ को तोड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने उपभोक्ता की जरूरतों के अनुरूप फसल चक्र में बदलाव की वकालत करते हुए कहा कि गेहूं-धान चक्र न केवल भूजल को कम करता है, बल्कि राज्य की बिजली के एक महत्वपूर्ण हिस्से की भी खपत करता है।
आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर सुखपाल सिंह ने कृषि बाजार सुधारों पर निष्क्रियता और केंद्र पर बढ़ती निर्भरता के लिए राज्य सरकार की आलोचना की। उन्होंने साहूकारों में तब्दील हो चुके आढ़तियों द्वारा किसानों के शोषण पर प्रकाश डाला और सब्जी व फल बाजारों को विनियमित करने की आवश्यकता पर बल दिया।