For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

राजनीति के आंगन में खनकेंगे कंगन

07:29 AM Apr 11, 2024 IST
राजनीति के आंगन में खनकेंगे कंगन
Advertisement

शमीम शर्मा

Advertisement

हरियाणवी कहावत है- एक तो बुढ़िया नाचनी अर ऊप्पर तैं घर मैं होग्या नाती। कार्यकर्ता तो पहले ही झंडे-डंडे उठाने में फरवट थे और ऊपर से चुनावों की घोषणा। अब तो उनका सारा दिन नारे लगाने और वोट मांगने में जाने लगा है। सब्जीवाले से, नाई से, दर्जी से, रेहड़ी-रिक्शावाले से वे एक ही सवाल करते नज़र आ रहे हैं- हां तो भाई! ईबकी बार किस पै मोहर ठोक्कैगा?
इधर देखने में आ रहा है कि महिलाएं चाहे राजनीति में रस लेने लगी हैं पर कार्यकर्ता के तौर पर उनकी संख्या पुरुषों के मुकाबले कम ही है। रैलियों में जरूर उन्हें बहला-फुसला कर लाया जाता है। वहां भी वे गा-नाच कर त्योहार-सा मनाकर लौट जाती हैं। न तो उनका मेनीफेस्टो में ध्यान है और न ही किसी की हार-जीत में। और वैसे भी उन्हें घर-गृहस्थी के सैकड़ों और काम भी तो हैं। कहते हैं न कि ऊंचे चढ़कै देखा तो घर-घर ये ही लेखा। यानी सभी घरों में महिलाओं की एक-सी कहानी है। उनके पास राजनीति के लिये टाइम ही नहीं है।
एक दार्शनिक का कहना कि जो महिलाएं जागरूक होती हैं वे अपने पतियों से जरूर लड़ती हैं। जो ज्यादा जागरूक होती हैं, वे अपने पड़ोसियों से लड़ती हैं और जो बेहद जागरूक होती हैं, वे चुनाव लड़ती हैं। अब अगले लोकसभा चुनावों में बेहद जागरूक महिलाओं की संख्या में इजाफा होगा। अभी तक तो उनकी उपस्थिति अमावस में दिखने वाले इक्का-दुक्का तारों जैसी ही है।
000
एक बर चौधरी चौधरण मैं काम के बंटवारे पै झगड़ा होग्या। आखिर मैं फैसला होया अक अप-अपणे काम बदल ल्यो। चौधरण तो तड़कै ए हल जोड़ण चली गई अर चौधरी नैं उठते ही दूध बिलौण की सोच्ची। जिस बिलौणी में दूध जमा राख्या था उसकी बजाय जिस हांडी में रात की बासी खिचड़ी राखी थी, उस मैं ए गर्म पानी घाल दिया अर रई लेकै बिलौण लाग्या। घणीं देर ताईं जद मक्खन नहीं लिकड़्या तो एक लोटा ठंडे पाणी का ओज दिया। मक्खन फेर भी नीं आया तो और जोर लाकै बिलौण लाग्या। कड़ियां तक छींटमछींट कर दिया अर आप भी पसीन्ने मैं तरबतर होग्या। इतणे मैं लास्सी लेण एक पड़ोसण आई अर बोल्ली- नत्थू की मां! दूध बिलोया अक नहीं? चौधरी बोल्या- आज तो मैं ए मैं ए लाग रह्या सूं, पर घी आण का नाम नीं ले रह्या। ले तैं ए देख के माजरा सै? ताई नैं सोच्ची तू ए दो हाथ मार ले, आच्छी गाढी लास्सी ले जाइये अर कुछ मक्खन भी खिसका लिये। कमीज की बांह ऊपर नैं चढाकै उसने बिलौणी मैं हाथ मारया तो कोहनी ताहिं खिचड़ी मैं चाल ग्या। हाथ बाहर काढते होए बोल्ली- रै गाड्डण जोग्गे! तन्नैं तो खिचड़ी बिलोकै धर दी। घी के डले आवै था? चौधरी बोला- ताई! भोत हांगा ला दिया सै, दो रोटियां का चोपड़ इस्से तैं काढ़।

Advertisement
Advertisement
Advertisement