बोतल का बेताल
तमाम चिकित्सा अनुसंधानों व दवाओं की खोज के बाद भी देश-दुनिया में यदि रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो उसकी वजह हमारी जीवनशैली में शामिल वे कारक हैं, जिनकी घातकता का हमें बोध ही नहीं है। हमारी हवा, पानी व मिट्टी तो प्रदूषित हैं ही, लेकिन आधुनिक जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये बाजार ने जो विकल्प हमें दिये हैं, वे भी हमारे जीवन में ज़हर घोल रहे हैं। बाजार ने मुनाफे के लिये सस्ते विकल्प तो दिये लेकिन साथ ही बीमारियों के लिये भी उर्वरा जमीन तैयार कर दी है। नित नये-नये शोध-अनुसंधान उन परतों को खोल रहे हैं, जो हमारे जीवन में बीमारियां बांट रही हैं। अब अमेरिका में हुए ताजा अनुसंधान में पता चला है कि हम पीने के पानी के लिये जिन प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग करते हैं उनमें पैदा होने वाले नैनोप्लास्टिक्स कई घातक रोगों की वजह बन रहे हैं। आज सुविधा के लिये हम सफर में, स्कूल-कॉलेज तथा ऑफिस जाने के दौरान प्लास्टिक वाली पानी की बोतल लेकर चलते हैं। अब कहा जा रहा है कि इस पानी में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक के सूक्ष्मकण कई रोगों को उत्पन्न कर रहे हैं। यूं तो हम जानते हैं कि प्लास्टिक से तमाम तरह के नुकसान होते हैं। लेकिन नये अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि एक लीटर पानी वाली बोतल में तीन लाख से अधिक प्लास्टिक के सूक्ष्म कण होते हैं। ये अध्ययन अमेरिका की तीन शीतल जल बेचने वाली कंपनियों की बोतलों के नमूने लेकर किया गया है। ऐसे में भारत में बिकने वाली, गुणवत्ता के लिहाज से हल्की बोतलों से यह संकट कितना बड़ा हो सकता है, अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। दरअसल, यह ताजा अध्ययन शोधकर्ताओं द्वारा नैनोप्लास्टिक पर केंद्रित था। बता दें कि नैनोप्लास्टिक्स माइक्रोप्लास्टिक्स से भी काफी छोटे होते हैं। हाल ही में जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज ने इस रिपोर्ट को विस्तार से प्रकाशित किया है।
दरअसल, अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने बेहद परिष्कृत तकनीक से बोतलबंद पानी में इन सूक्ष्म कणों की गणना की है। चिंता की बात यह है कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हमारे स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं। अध्ययन बताता है कि बोतलबंद पानी में प्लास्टिक कण पहले के अनुमान से बढ़कर सौ गुना अधिक संख्या में हो सकते हैं। दरअसल, ये नैनोप्लास्टिक्स आकार में इतने सूक्ष्म होते हैं कि आंतों व फेफड़ों से सीधे खून में प्रवेश कर सकते हैं। जो कालांतर हमारे दिल व दिमाग को भी प्रभावित कर सकते हैं। इनकी घातकता का खतरा इसलिए भी है कि ये माइक्रोप्लास्टिक्स की तुलना में जल्दी हमारी कोशिकाओं व रक्त में प्रवेश करके शरीर के अवयवों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने चिंता जतायी है कि प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण नाल के जरिये अजन्मे बच्चे की देह तक भी पहुंच सकते हैं। यहां तक चिंता जतायी जा रही है कि प्लास्टिक में मौजूद विषैले कणों से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की आशंका पैदा हो सकती है। दरअसल, सूर्य की किरणों के संपर्क में आने पर प्लास्टिक घातक टॉक्सिन उत्पन्न कर सकता है। इतना ही नहीं, शोधकर्ता सूक्ष्म कणों वाले पानी के सेवन से मधुमेह के उत्पन्न होने की संभावनाओं की ओर इशारा कर रहे हैं। एक रसायन के चलते मोटापा, मधुमेह, प्रजनन से जुड़े विकार तथा किशोरियों के शारीरिक परिवर्तनों में तेजी ला सकते हैं। इसके अलावा थैलेट्स नामक रसायन से लीवर से जुड़ा कैंसर पैदा होने तथा पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम होने की आशंका बढ़ जाती है। कहीं न कहीं प्लास्टिक की बोतलों में पाये जाने वाले रसायन लोगों के प्रतिरक्षातंत्र को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि लोग पीने के पानी के लिए परंपरागत विकल्पों को गंभीरता से लें। सुरक्षित होगा कि हम दैनिक व्यवहार में प्लास्टिक की बोतल के स्थान पर स्टील, कांच या तांबे की बोतल को प्राथमिकता दें। ये बोतल थोड़ी महंगी या भारी जरूर हो सकती हैं लेकिन सेहत के लिये अपरिहार्य हैं।