पुस्तकें मिलीं
सुकोमल अहसासों के शब्द
यूं तो प्रो. शामलाल कौशल अर्थशास्त्र के शिक्षक रहे हैं, लेकिन साहित्य उन्हें गहरे तक उद्वेलित करता है। उनकी समीक्ष्य काव्यकृति ‘जिनकी नहीं होती मां’ इसकी बानगी है। सहज, सरल व संवेदनशील प्रो. कौशल की सौ रचनाएं संकलन में हैं। पृष्ठ 99 पर प्रकाशित शीर्षक कविता ‘जिनकी नहीं होती मां’ मर्मस्पर्शी है। उनकी कलम समाज के आदर्श, सद्भावना, समरसता व न्याय के लिए चलती है। वे न्यायपूर्ण समाज के पक्षधर हैं। ये रचनाएं उसकी वकालत करती हैं।
चमकीले नन्हे तारे का संदेश
कृत्रिमताओं से भरी दुनिया में बाल-पाठकों के लिए संवेदनशील रचनाएं ताजे हवा के झोंके जैसी होती हैं। ऐसी कोशिश कवि हृदय अमेरिका वासी अमनदीप सिंह ने की है। पेशे से इंजीनियर, रचनाकार हिंदी-पंजाबी में बाल-पाठकों के लिये मर्मस्पर्शी रचते हैं। जिसमें हमारे परिवेश, प्रकृति व दैनिक जीवन के संवेदनशील संदेश हैं। पुस्तक का मोहक चित्रांकन बाल-पाठकों को प्रभावित करता है। कुल बाईस रचनाएं बाल-पाठकों को दुनिया को समझने की नई दृष्टि देती हैं।
सुकोमल अहसासों के दस्तावेज
आज के तुरत-फुरत प्रेम और अलगाव के दौर में भले ही प्रेम-पत्रों की कोई जगह न हो, लेकिन सदियों ये सुकोमल अहसासों के जीवंत माध्यम रहे हैं। ऐसे दौर में जब जमाना प्रेम करने वालों का दुश्मन होता था, ये प्रेम-पत्र ही प्रेमियों की अंतिम आस होते थे। इन्हीं अहसासों को बहुआयामी साहित्यकार डॉ. मधुकांत ने अपनी 101 लघु कविताओं के जरिये सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति दी है। जो एक कालखंड के दस्तावेज ही हैं। रचनाएं पठनीय हैं।
ऊर्जावान जीवन की कला
निस्संदेह, आध्यात्मिक जीवन में एक विचार क्रांति के अग्रदूत ओशो ने भारत ही नहीं विकसित देशों के जीवनदर्शन को गहरे तक प्रभावित किया है। समीक्ष्य कृति ‘जीवन जीने की कला’ भी ओशो के प्रवचनों पर आधारित है। जो हमारे जीवन के सत्य-शिव से हमें रूबरू कराते हैं। जिसके लिये वे शुद्ध चित्त की जरूरत बताते हैं। जिससे हम जीवन के सत्यबोध से परिचित हो सकें। जरूरी है कि इसके लिये हमारी सोच व्यापक व शुद्ध हो। हम दोहरेपन से मुक्त हों।
एक औषधि भी है भोजन
मौजूदा दौर में मनुष्य जिन मनोकायिक रोगों से ग्रस्त है, उसमें हमारे खानपान की बड़ी भूमिका है। एक ऐसा खाना जो बाजार के मुनाफे पर आधरित है। समीक्ष्य कृति भोजन को वरदान बताती है। अच्छे खाने से स्वास्थ्य का रिश्ता बताती है। बताती है कि वजन घटाना स्वास्थ्य का आधार नहीं है। बढ़ती उम्र के साथ खाना कम होना चाहिए। रचनाकार त्योहार, मौसम और परंपरागत भोजन के गुण बताती है। साथ ही व्यायाम, योग व विचार की भूमिका भी बताती है। - अ़ नै.