पुस्तकें मिलीं
अंतर्मन-यात्रा के अहसास
अरुण नैथानी
पुस्तक : अंतर्मन यात्रा अनंत रचनाकार : सुनील ‘आदित्य’ प्रकाशक : एविनसेपब पब्लिशिंग, छत्तीसगढ़ पृष्ठ : 94 मूल्य : रु. 177.
समीक्ष्य पुस्तक ‘अंतर्मन यात्रा अनंत’ में रचनाकार सुनील आदित्य ने सात कहानियों के जरिये जीवन के अहसासों का शब्दांकन किया है। पुस्तक में शामिल सात कहानियों इकरानामा, लेबर चौक, मजबूर कौन, पांच रुपये की मछली, संतुलन, खूबसूरत हादसा तथा शांति और सुकून से गुजरते हुए लेखक की संवेदनशीलता उजागर हुई है। उन्होंने उन घटनाओं, प्रसंगों व मानवीय व्यवहार पर कलम चलाई है, जिन्हें आमतौर पर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। जो रचनाकार के संवेदनशील मन का आईना है।
एकाकी जीवन की टीस
पुस्तक : वो अकेले लेखक : मधुकांत प्रकाशक : साहित्यभूमि नई दिल्ली पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 395.
निस्संदेह, ढलती उम्र में जीवन साथी का विछोह व्यक्ति को भीतर तक आहत करता है। जिसकी कमी कोई दूसरा व्यक्ति पूरा नहीं कर सकता है। संवेदनशील रचनाकार डॉ. मधुकांत ने इस विषय को चौदह कहानियों के जरिये इस पुस्तक में शब्द दिये हैं। वे इस एकाकीपन के संकट से उबरने के उपायों का भी जिक्र करते हैं। साथ ही अपने जीवन साथी को सहेजने की भी सलाह देते हैं। पुस्तक का संपादन डॉ. मीनाक्षी कौशिक ने किया है।
शब्द-संसार से संवाद
हरियाणा की साहित्यिक व सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध करने और लेखकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हरियाणा साहित्य अकादमी की योजना के अंतर्गत प्रकाशित सुनीता आनन्द की पुस्तक ‘शब्द संसार’ उद्देश्य को सार्थक करती है। शब्दों से बात करती 101 कविताएं संकलन में शामिल हैं। रचनाओं में शिवत्व है, सौंदर्य है तथा मानव मन की सुकोमल अभिव्यक्ति भी है। कविताएं मुक्त छंद में हैं, उपमाओं व अलंकारों का उनमें खूब उपयोग है। निस्संदेह, शब्द-संसार की जीवंत बानगी है।
सृजन सरोकारों के इरादे
शिक्षाविद् डॉ. अजय बलहरा ‘प्राथमिक शिक्षा : एक दृष्टिकोण’, ‘कसूत कनेक्शन’ (काव्य संग्रह), ‘बानो-बेगम’ (उपन्यास), ‘मानव-जीवन शैली-शिक्षा’, ‘गीत व रागनियां’ (विविध) रचनाओं के बाद ‘ईरादा’ काव्य संग्रह लेकर आए हैं। जिसमें सौ काव्य रचनाएं संकलित हैं। रचनाओं में जीवन के सतरंगी अक्स हैं। जिनमें सुकोमल संवेदनाएं हैं तो तल्ख तेवर भी हैं। रचनाएं सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार भी करती हैं। रचनाकार का कथन है कि संकलन में उनकी दो दशक की काव्य यात्रा की सघन अनुभूतियों की बानगी है।
सामाजिक विद्रूपता का आईना
कमलेश गोयत का उपन्यास ‘आपातकाल में ग्रहण’ लैंगिक भेदभाव के चलते पैदा लिंगानुपात से उपजी सामाजिक विद्रूपता का चित्र उकेरता है। जो कालांतर गरीब लड़कियों के जीवन पर ग्रहण बन जाता है। हरियाणा की पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास आर्थिक रूप से पिछड़े उन राज्यों की बेटियों के नारकीय जीवन का यथार्थ बताता है, जिन्हें धनबल के जरिये भोगने को विवाह के रिश्ते के आवरण से जायज ठहराने की कोशिश की जाती है। जो गरीब लड़कियों जीवन में आपातकाल के ग्रहण जैसा होता है।