गंभीर चिंतन संग व्यंग्य की खुशबू
डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
एक मंजे हुए ग़ज़लकार का ऐसा ग़ज़ल संग्रह है, जिसकी कुल बयासी ग़ज़लों में आपको दार्शनिकता और गंभीर चिंतन के साथ ही व्यंग्य की खुशबू भी मिलेगी। कई ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित कर चुके इस ग़ज़लकार के, इस ग़ज़ल संग्रह की पहली ग़ज़ल का पहला शे'र ही दिल को छू लेता है :
‘हाथों में आ गया हूं तो अच्छा जरूर हूं ,
पकड़ें न पकड़ें आप मैं मौका जरूर हूं।
संग्रह का ‘शीर्षक’ देवेंद्र मांझी ने इस शे’र को यूं ही नहीं बनाया, बल्कि ‘मौका’ शब्द में जो गहराई है, उसी को लेकर उनकी लगभग हर ग़ज़ल महकती है।
अपनी भूमिका में प्रो. विनीता गुप्ता ने सच ही लिखा है—‘मांझी साहब की शायरी में तमाम रंग हैं जो कभी गुदगुदाते हैं, सपनों की दुनिया में ले जाते हैं तो कभी ज़िंदगी की तल्ख हक़ीक़त से रू-ब-रू कराते हैं।’
मांझी साहब की एक ग़ज़ल बरबस दिल को छू लेती है, जो छोटी बहर में बड़ी बात कहती है :
‘ख़ुदा का शुक्र है ज़िन्दा खड़े हैं,
बहुत-से लोग शीशे में जड़े हैं।
पसीना आ गया है जिंदगी को,
हम अपने आपसे ऐसे लड़े हैं।’
ऐसा भी नहीं है कि शायर देवेंद्र मांझी दर्शन की रूखी-सूखी नदी में ही उतरे हैं, प्यार का पुट भी बड़े सलीके से उन्होंने अपनी कई ग़ज़लों में दे दिया है। उनका यह शे’र देखिए :-
‘आपके चेहरे का ये तिल मुफ्त में, क्यों झटककर ले गया दिल मुफ्त में।’
कोश विज्ञान के माहिर जानकर और उर्दू में भी महारत रखने वाले शायर देवेंद्र मांझी का यह ग़ज़ल संग्रह भी सचमुच संग्रहणीय है। सबसे अच्छी बात यह है कि प्रिंटिंग साफ-सुथरी है, कहीं कोई व्याकरण की अशुद्धि नहीं है।
पुस्तक : मैं ही मौका हूं लेखक : देवेंद्र मांझी प्रकाशक : पंछी बुक्स, पंचशील गार्डन, दिल्ली पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 300.