Bollywood Cinema हीरोइनों को तलाश दर्शकों के क्रेज की
हिंदी फिल्मों में हीरोइनों का प्रभाव कम हुआ है। दर्शकों में क्रेज पहले जैसा नहीं। 70-80 के दशक में कई हीरोइनों ने भाव अभिव्यक्ति व सुंदरता से परदे पर मुकाम बनाया। बाद के दौर यानी 90 के दशक के बाद तक कई तारिकाओं की एक्टिंग काबिलेतारीफ रही तो ग्लैमर भी। हालांकि नई तारिकाओं को अभिनय आता है लेकिन हीरो प्रधान फिल्मों के चलते अच्छे रोल मिल ही नहीं रहे।
असीम चक्रवर्ती
हाल के वर्षों में बॉलीवुड में हीरोइनों का चेहरा लगातार धूमिल हो रहा है। प्रसिद्ध कोरियोग्राफर फराह खान बताती हैं, ‘मैं कई पुरानी और नई हीरोइनों के साथ काम कर चुकी हूं। मुझे यह कहते समय जरा भी संकोच नहीं कि आज हीरोइन का क्रेज न के बराबर रह गया है।’ यदि इस कथन के संदर्भ में देखें, तो आज की हीरोइनें भाव अभिव्यक्ति के मामले में प्रभावहीन बन चुकी हैं। इसे और ज्यादा विस्तार से जानने के लिए नई और पुरानी तारिकाओं के क्रेज और सफलता का आकलन किया जाये।
पुरानी तारिकाओं के क्या कहने
70 या 80 के दशक में पैदा हुए ज्यादातर लोग रह-रह कर नर्गिस, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, नूतन, माला सिन्हा, साधना, वैजयंतीमाला, शर्मिला, मधुबाला, निम्मी, पद्मिनी आदि हीरोइनों की जबरदस्त स्क्रीन प्रेजेंस और भाव अभिव्यक्ति की चर्चा करते हैं। असल में इन तारिकाओं ने बहुत सहज ढंग से रुपहले परदे पर अपना अलग-अलग मुकाम बनाया। इनकी सबसे अच्छी बात यह थी कि बिना किसी प्रतिद्वंद्विता की रस्साकसी में पड़े इन्होंने अपनी जगह बनाई। बड़ी खासियत यह थी कि इनका तिलिस्म बहुत दिनों तक कायम रहा। आज भी उन्हें याद किया जाता है।
सबका अलग अंदाज
निस्संदेह ये हीरोइनें एक-दूसरे को बहुत ज्यादा फॉलो नहीं करती थीं। उस दौर में यदि दर्शक साधना के हेयरकट पर मुग्ध थे, तो शर्मिला के गालों पर भी बड़ी संख्या में मोहित थे। इसी तरह से मीना कुमारी , नर्गिस, नूतन, माला सिन्हा की सादगी का अपना अलग आकर्षण था। जबकि वैजयंती और वहीदा रहमान का नृत्य उनके प्रशंसकों को मोहित कर देता था। निम्मी, पद्मिनी आदि का भी स्क्रीन प्रेजेंस नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। और इन सबसे ऊपर थीं चुलबुली मधुबाला जिनके अद्भुत सौंदर्य के प्रशंसकों की कोई कमी नहीं थी। आज भी सौंदर्य की कोई चर्चा उनके नाम के बिना अधूरी मानी जाती है।
स्वप्न सुंदरी का दौर
इन हीरोइनों का दौर जब अंतिम चरण में था, तभी हेमा मालिनी ने अपने आगमन की दस्तक देनी शुरू कर दी थी। और बहुत जल्द स्वप्न सुंदरी का खिताब उनके नाम जुड़ गया। साउथ की ब्यूटी हेमा साधारण अभिनेत्री थीं, लेकिन उनके रूप-लावण्य से मोहित होकर दर्शक थिएटर की तरफ दौड़ पड़ते थे। उन्हें उस दौर में सिर्फ रेखा के रूप में बड़ी चुनौती मिली थी। सांवली सलोनी रेखा के रूप का भी अपना अलग ही आकर्षण था।
जीनत-परवीन का ग्लैमर
इसी दौर में परवीन बॉबी और जीनत अमान के बोल्ड और ग्लैमरस सौंदर्य पर युवा वर्ग मुग्ध था। इन दोनों अभिनेत्रियों ने ग्लैमरस इमेज के सहारे ढेरों अच्छी फिल्में कीं। जैसे कि जीनत अमान ने ‘इंसाफ का तराजू’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘दोस्ताना’ आदि में एक्टिंग प्रेमी दर्शकों को एकदम चौंका दिया था। इसी तरह से हृषिकेश मुखर्जी की ‘रंग-बिरंगी’, रमेश सिप्पी की ‘शान’, यश चोपड़ा की ‘काला पत्थर’ में परवीन की शानदार उपस्थिति को भी दर्शकों की खूब तारीफ मिली।
90 का परचम
श्रीदेवी, माधुरी, जूही चावला, करिश्मा, रवीना, काजोल, मनीषा, तब्बू, सोनाली व शिल्पा शेट्टी आदि इस दौर की तारिकाओं की लंबी फेहरिस्त है। इनमें से कई अभिनेत्रियां एक्टिंग में काफी संपन्न थीं। खासकर तब्बू और माधुरी का कोई जवाब नहीं। आज भी चैलेंजिंग रोल के लिए फिल्मवाले इन्हें ही याद करते हैं।
90 के बाद की तारिकाएं
वैसे इस दौर में आई ज्यादातर तारिकाएं ग्लैमर से अधिक प्रभावित थीं, मगर करीना कपूर, दीपिका, प्रियंका चोपड़ा, विद्या बालन, अमृता राव आदि कुछ नायिकाओं की भाव अभिव्यक्ति की खूब सराहना हुई।
ग्लैमरस बालाओं के क्या कहने
इसी कड़ी में बाद में जो हीरोइनें आयीं उन्होंने अपने रोल में ग्लैमर का ज्यादा इस्तेमाल किया, जिस वजह से उन्हें बस मौजूदगी दिखाने वाले रोल ज्यादा मिले। फिर भी कियारा आडवाणी या कृति सेनन जैसी कुछ नई तारिकाओं ने कई बार यह जता दिया था कि इन्हें अभिनय आता है। विडंबना है कि नए दौर की ज्यादातर तारिकाओं को बतौर खानापूर्ति लिया जाता है।
हीरोइन प्रधान फिल्मों की कमी
पुरुष शासित बॉलीवुड में ज्यादातर हीरो बेस्ड फिल्में बनती हैं। हालांकि जब भी नायिका प्रधान फिल्में अच्छे ढंग से बनी, दर्शकों ने उन्हें अच्छे नंबर दिए। माधुरी दीक्षित, तब्बू या विद्या बालन इसकी अच्छी मिसाल हैं। जब हीरोइन को किसी फिल्मों में पूरा फुटेज ही नहीं मिलेगा, तो वे प्रभावहीन ही रहेंगी। जाहिर है, इसमें हमारी हीरोइन को थोड़ा-सा चूजी होना पड़ेगा।