नेताजी के जुलूस के रास्ते में काली बिल्ली
डॉ. प्रदीप मिश्र
ज्ञानी बताते हैं कि, ‘काली बिल्ली यदि रास्ता काट जाए तो फिर कार्य स्थगित करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होता!’
यही बात हुई। नेताजी अपने प्रशंसकों समेत, चुनाव का पर्चा डालने निकल रहे थे। जीता-जिताया कंडीडेट था। नारे लग रहे थे, समर्पित समर्थक झूम रहे थे। गुंडों की चतुरंगिणी सेना साथ थी। ऐसे जननायक की जीत, कौन रोकेगा?
जुलूस, कुछ दूर ही गया कि एकदम काली, एक बिल्ली रास्ता काट गई। नाचते-थिरकते सारे कदमों में, इमरजेंसी ब्रेक लग गया। चारों तरफ मुर्दनी छा गई। श्मशानी माहौल में, यह सवाल सबकी जुबां पर था कि, ‘इतना बड़ा अपशकुन? ’
पंडित जी तत्काल तलब किए गए। स्थिति गंभीर थी, इसलिये पंडित जी गंभीर हुए। कार के बोनट पर पत्रा बिछा लिया। समय व्यतीत हो रहा था। नेताजी व्यग्र होकर, बार-बार पूछ रहे थे कि, ‘गुरुजी, अब क्या ? कोई रास्ता निकालिए। ’
विपक्षी पार्टी का लीडर, जिसकी जुबान अब तक दबी हुई थी, उसे चिंघाड़ने का मौका लगा था। नेताजी पर्चा भरेंगे नहीं, अब तो विपक्ष को जीतने से कौन रोकेगा? पंडितजी परेशान दिख रहे थे। पंडित जी, पोथियां पलटने में लंबा समय लगा रहे थे। वास्तव में उन्हें भी कुछ समझ नहीं पड़ रहा था। पर्चा भरने का वक्त नजदीक आता जा रहा था। हारके, उन्होंने ‘प्रायश्चित’ कहानी का स्मरण किया और सोने की बिल्ली तुरंत बनवाने का नुस्खा देते हुए कहा, ‘और यदि बिल्ली न बन सके तो बाजार भाव के मुताबिक उसकी कीमत, इंडियन करंसी में तत्काल उन्हें दान में देने से, काली बिल्ली के मार्ग काटने से उत्पन्न कंटक, गारंटीड कट जाएंगे...।’
पंडितजी के मुंह से बात निकलनी थी कि मुत्तन गुरु ने ब्रीफकेस खोल दिया। नेताजी, पंडितजी को एक लमसम अमाउंट थमाते हुए बोले,‘पंडितजी, अब आगे बढ़ें! अनुमति है?’
‘बिल्कुल, शुभश्य शीघ्रम् यजमान! किंतु यदि वह काली बिल्ली मिल जाती, तो उसे गंगा-जल से स्नान कराके, प्राप्तजल का छिड़काव आप पर कर दूं तो हंड्रेड वन परसेंट दोष मिट जाएंगे और विजयश्री आपका आलिंगन करेगी।’
आनन-फानन में बिल्ली को पकड़ के लाया गया। वह अत्यंत सहमी हुई थी। पंडितजी, उस काली बिल्ली को नहला रहे थे।
चमत्कार! अद्भुत चमत्कार! बिल्ली को नहलाने पर वह काला रंग छोड़ रही थी। अंत में पता चला वह बिल्ली नहीं, नए जमाने वाला बिल्लीनुमा कुत्ता था, जिसे नेताजी के विरोधियों ने काले रंग से रंगकर, नेताजी के जुलूस के रास्ते में छोड़ दिया था।
जुलूस, फिर से जीवंत हो उठा और धूम-धड़ाके के साथ गंतव्य की ओर बढ़ चला। पंडित जी, एसी कार में बैठे उस घड़ी को कोस रहे थे, जिसमें बिल्ली को नहलाने की बात उन्होंने सोची थी?