आसान भी नहीं भाजपा का दक्षिण पथ
जब उत्तर भारत की राजनीति में हिमाचल और यूपी में राज्यसभा की सीटों के लिए बिसातें बिछ रही थीं, पीएम मोदी दक्षिण भारत में अपनी सभाओं के जरिए लोगों से संवाद कर रहे थे। बीजेपी अपने उस दक्षिण मिशन पर गंभीर है, जिसकी बदौलत वह एनडीए के चार सौ वाले नारे को धरातल रूप देना चाहती है। निश्चित ही दक्षिण का यह सफर काफी अड़चनों भरा है। लेिकन बीजेपी का यह संकल्प बिना दक्षिण विजय के पूरा नहीं हो सकता। बीजेपी की चुनौती यह भी है कि तमिलनाडु, केरल और आंध्र में उसके संगठन का बहुत विस्तार नहीं हुआ है। बीजेपी के लिए दक्षिण के राज्य कमजोर कड़ी कहे जाते रहे हैं। बीजेपी ने दक्षिण के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक और किसी हद तक तेलंगाना में अपना आधार बढ़ाया है। बीजेपी एनडीए के जरिए दक्षिण में बेहतर परिणाम के लिए संघर्ष कर रही है।
कुछ दशक पहले बीजेपी तमिलनाडु-केरल जैसे राज्यों में छोटी-छोटी सभा और बैठकों के जरिए लोगों से जुड़ने की कोशिश करती थी। लेकिन दक्षिण में वह सिमटी ही रही। लेकिन अब खासकर तमिलनाडु, केरल व आंध्र में भी पीएम मोदी की जनसभाओं में उत्तर भारत की तरह नजारा दिखता है। एक समय तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक का साथ लेकर भी बीजेपी की जनसभाएं इतना आकार नहीं लेती थीं। लेकिन अब जब वह तमिलनाडु में अकेले खड़ी है, तब उसकी अपनी उपस्थिति झलकती है।
नॉर्थ ईस्ट के राज्यों और पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने जिस तरह अपना विस्तार किया उसके पीछे उसकी रणनीति और अभियान को देखा जा सकता है। 2014 से पहले नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी की कोई पहचान नहीं थी। लेकिन बीजेपी ने बहुत तेजी से और सधी हुई नीतियों के साथ राज्यों में अपना विस्तार ही नहीं किया बल्कि अधिकांश राज्यों में सरकारें भी बना ली। कहीं बीजेपी ने वहां की स्थानीय सियासी पार्टियों को साधा तो कहीं वहां के प्रभावी नेताओं को साथ जोड़ा। त्रिपुरा जैसे वामपंथ के गढ़ को उसने ध्वस्त किया। इसी तरह पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 42 में 18 सीटें हासिल करके अपनी धमक बनाई। इसी तरह विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 77 सीटों पर जीत हासिल करके चौंकाया था। जिस तरह बीजेपी के लिए नॉर्थ ईस्ट और पश्चिम बंगाल कठिन लक्ष्य थे उसी तरह दक्षिण भारत की चुनौती भी बड़ी रही है।
अब बीजेपी ने रणनीति के साथ दक्षिण के राज्यों के मतदाताओं को को प्रभावित करने की रणनीति बनाई है । पीएम मोदी अगर पांच साल में 47 बार नोर्थ ईस्ट के दौरे पर गए तो दक्षिण भारत की ओर भी उनका जहाज समय समय पर उड़ान भरता रहा है। बीजेपी ने दक्षिण मिशन के लिए संगठन क्षमता को बेहतर करने का प्रयास किया। पीएम मोदी दक्षिण की अपनी जनसभाओं में संसद में स्थापित संगोल का जिक्र करना नहीं भूलते। इसके साथ वह दक्षिण के लोगों से संवाद जोड़ते हैं।
वर्ष 2014 के बाद से ही एनडीए सरकार ने कोशिश की है कि दक्षिण की अलग-अलग क्षेत्र की प्रतिभाओं से संवाद किया जाए। यही नहीं पद्म पुरस्कारों के लिए दक्षिण की प्रतिभाओं को आगे लाया गया। इसी कड़ी में इस बार पूर्व पीएम नरसिंह राव और कृषि वैज्ञानिक डा. स्वामीनाथन को भारत रत्न का ऐलान होना देखा जा सकता है। दक्षिण मिशन के लिए केवल पीएम मोदी ही नहीं बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी कई दौरे किए। काशी तमिल संगमम के आयोजनों की श्रंृखला इसी उद्देश्य से है कि किसी तरह दक्षिण और नॉर्थ के बीच संवादों का एक गलियारा तैयार हो। पीएम मोदी दक्षिण में अपने भाषणों की शुरुआत राज्य भाषा की कुछ पंक्तियों से करते हैं। वहां के प्रसिद्ध कवियों के कविताओं की पंक्तियों का उल्लेख करते हैं। पीएम मोदी ने दक्षिण के मठ मंदिर पुरातत्व संग्रहालय हर जगह जाकर लोगों से संवाद जोड़ा है। संसद में पीएम मोदी की शायद ही कोई स्पीच ऐसी हो जिसमें उन्होंने दक्षिण भारत के संदर्भ में कोई बात न कही हो।
बीजेपी ने दक्षिण भारत के राज्यों में भी जनाधार वाले नेताओं पर नजर रखी। साथ ही करिश्माई व्यक्तित्व वाले नेताओं को भी पार्टी से जोड़ने की कोशिश हुई है। असम में हिमंता बिस्वा और पश्चिम बंगाल में सुवेंदु अधिकारी जैसे नेता पार्टी से जुड़े। इसी तरह तेलंगाना में बंदी संजय कुमार पार्टी से जुड़े। तमिलनाडु में प्रशासनिक अधिकारी रहे अन्नामलाई की एन.मन एक मक्कल यानी मेरी भूमि मेरी यात्रा तमिलनाडु के खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बीजेपी से जोड़ रही हैं। आने वाले समय में बीजेपी तमिलनाडु में विपक्ष की बड़ी पार्टी के रूप में दिख सकती है।
दरअसल बीजेपी भविष्य में यहां अन्नाद्रमुक का विकल्प बनने का रास्ता तलाश रही है। यहां डीएमके और कांग्रेस का सशक्त गठबंधन है। इधर बीजेपी में राज्य अध्यक्ष अन्ना मलाई कुप्पूसामी जैसे नेता की धारणा है कि पार्टी अपने ही स्तर पर खड़ी हो। अन्ना द्रमुक में जिस तरह बिखराव आया है उससे बीजेपी अपने लिए संभावना टटोल रही है। हाल ही में अन्ना द्रमुक के कुछ पूर्व विधायक बीजेपी से जुड़े हैं। यही नहीं बीजेपी तमिल लैंड में कन्याकुमारी, रामनाथ पुरम शिवगंगा, मदुरै जैसी कुछ सीटों पर फोकस कर रही है। 2019 लोकसभा में बीजेपी पांच सीटों पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई। 2021 के विधानसभा चुनाव में उसे चार सीटें मिल गई। लेकिन तब उसके साथ अन्नाद्रमुक भी साथ थी। स्थानीय निकाय के चुनाव में कुछ इलाकों में अकेले चुनाव लड़कर बीजेपी ने अच्छी सफलता पाई। तमिलनाडु में बीजेपी इस कोशिश में है कि द्रमुक के खिलाफ लोगों की नाराजगी के बीच वह विकल्प की तरह नजर आए। खासकर सनातन के पहलू पर डीएमके और बीजेपी के बीच जुबानी जंग भी चली है।
भाजपा ने दक्षिण के प्रवेश द्वार कर्नाटक में काफी पहले अपने आधार को खड़ा कर दिया था। 2007 में येदियुरप्पा राज्य के सीएम बने थे। 2019 की मोदी लहर में कर्नाटक से एनडीए को 28 में पच्चीस सीटें मिली। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई। बीजेपी 66 और जेडीएस 19 सीटों पर सिमट गई। अब बीजेपी और जेडीएस फिर करीब आए हैं। तेलंगाना में बीजेपी को 17 में चार सीट मिली थी। इसे पार्टी ने बोनस की तरह देखा था। बीजेपी ने 19 प्रतिशत मत हासिल किए थे। आंध्र प्रदेश में बीजेपी का अपना खास आधार नहीं। लेकिन वह जिस पार्टी के साथ जुड़ती है उसका आधार बढ़ता है। पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू प्रतीक्षा कर रहे हैं कि बीजेपी के साथ तालमेल हो। लेकिन सीएम जगनमोहन रेड्डी के साथ भी केंद्र में बीजेपी से सहज रिश्ते रहे हैं। केरल में बीजेपी ने अपना संगठन तो बनाया है लेकिन उसे परिणाम में नहीं बदल सकी है। इस बीच केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के बीच का दायरा तेजी से बढ़ा है। बीजेपी यहां ईसाई समुदाय में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन सियासी समीकरणों में बीजेपी का रास्ता सहज नहीं हैं।
दक्षिण मिशन को लेकर बीजेपी अपनी रणनीतियों के साथ है। खासकर जहां बीजेपी के लिए अवसर हो सकते हैं उन सीटों पर खासा फोकस किया जा रहा है। संभावित दलों के साथ भी बातचीत की प्रक्रिया चल रही है। राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले पीएम मोदी दक्षिण के कुछ प्रसिद्ध शिव मंदिरों में गए। बीजेपी इस विश्वास में भी है कि अयोध्या के राम मंदिर के उद्घाटन को दक्षिण के लोगों ने बहुत सकारात्मक रूप से देखा है। निश्चित इसके अपने मायने और संदेश भी हैं। मोदी दक्षिण के संतों ,विभूतियों, कवियों, मठों व बीते दौर के बड़े नेताओं का जिक्र करते हुए बीजेपी के लिए दक्षिण का पथ तैयार कर रहे हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।