तीसरी बार सरकार के लिए पानीपत के मैदान में भाजपा लड़ रही लड़ाई
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
पानीपत, 2 अक्तूबर
करनाल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पानीपत जिले की चारों विधानसभा सीटों पर बड़ी ‘सियासी’ लड़ाई चल रही है। सत्तारूढ़ भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने के लिए पूरी शिद्दत के साथ जंग लड़ रही है। पानीपत वैसे भी बड़ी लड़ाइयों का गवाह रहा है। इस बार राजनीतिक लड़ाई रोचक होती जा रही है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जिले के समालखा हलके के सीटिंग विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार धर्म सिंह छोक्कर की गिरफ्तारी के आदेश के बाद नये समीकरण बनते दिख रहे हैं। गौरतलब है कि पानीपत भारतीय इतिहास की तीन लड़ाइयों का गवाह है। वहीं इसका पौराणिक महत्व भी है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारतकाल में पांडवों द्वारा स्थापित पांच शहरों यानी प्रस्थ में पानीपत भी एक था। इसलिए इसका पुराना नाम पांडुप्रस्थ भी रहा। 1526 में इब्राहिम लोदी और बाबर, 1556 में अकबर और हेमचंद्र विक्रमादित्य की लड़ाई इसी मैदान पर लड़ी गई। पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा के नेतृत्व मराठों के बीच लड़ी गई।
इस बार पानीपत में लड़ी जा रही सियासी लड़ाई के नतीजों पर हर किसी की नजर है। पानीपत शहर की सीट पर विज और शाह परिवार पहले भी कई बार एक-दूसरे के सामने होते रहे हैं। इस सीट पर दोनों ही परिवारों का लम्बे समय तक वर्चस्व रहा है। भाजपा के मौजूदा विधायक प्रमोद कुमार विज यहां से लगातार दूसरी बार जीत के लिए मैदान में डटे हैं। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व विधायक बलबीर पाल शाह के भाई वीरेंद्र पाल ‘बुल्ले शाह’ के साथ हो रहा है।
2014 में भाजपा की टिकट पर रोहिता रेवड़ी ने चुनाव जीता था। 2019 में उनका टिकट काट दिया। हालिया लोकसभा चुनावों के दौरान रोहिता रेवड़ी कांग्रेस में शामिल हो गईं। वे टिकट मांग रही थीं। कांग्रेस ने जब वीरेंद्र पाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया तो रोहिता रेवड़ी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में आ डटीं। बेशक, पानीपत सिटी में अभी भी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने का है लेकिन निर्दलीय रोहिता रेवड़ी इस सीट के राजनीतिक समीकरण बिगाड़ती दिख रही हैं।
ग्रामीणों में विजय जैन बढ़ा रहे दुविधा
भाजपा की टिकट पर पानीपत ग्रामीण से दो बार के विधायक और नायब सरकार में विकास एवं पंचायत मंत्री महिपाल सिंह ढांडा जीत की हैट्रिक के लिए मैदान में डटे हैं। युवा भाजपा के अध्यक्ष रहे चुके ढांडा संघ पृष्ठभूमि से आते हैं। इस इलाके में उनकी मजबूत पकड़ भी मानी जाती है। कांग्रेस ने यहां से यूथ कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन कुंडू को टिकट दिया है। सचिन कुंडू की गिनती रोहतक सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के नजदीकियों में होती है। कांग्रेस टिकट के दावेदार रहे विजय जैन बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों पार्टियों के जाट उम्मीदवारों के बीच विजय जैन नॉन-जाट चेहरा हैं। पूर्व में भी पानीपत ग्रामीण से ओमप्रकाश जैन निर्दलीय विधायक बन चुके हैं। विजय जैन के मैदान में आने के बाद से इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ है।
समालखा विधानसभा सीट
जाट व गुर्जर बाहुल समालखा विधानसभा क्षेत्र के समीकरण भी इस बार बदले हुए दिख रहे हैं। कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक धर्म सिंह छोक्कर को टिकट दिया है। गत दिवस ही पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने छोक्कर की गिरफ्तारी के आदेश दिए हैं। इस वजह से छोक्कर सहित पूरी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं। भाजपा ने पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना के बेटे मनमोहन सिंह भड़ाना को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस और भाजपा के गुर्जर प्रत्याशी हैं। वहीं पूर्व विधायक रविंद्र सिंह मछरौली एक बार फिर निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं। जाट समुदाय से जुड़े रविंद्र सिंह 2014 में भी समालखा से निर्दलीय विधायक बन चुके हैं। रविंद्र सिंह मछरौली के चुनावी मैदान में आते ही इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ है। मनमोहन सिंह भड़ाना के पिता करतार सिंह भड़ाना भी समालखा से विधायक रह चुके हैं।
इसराना
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इसराना विधानसभा सीट पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक बलबीर सिंह वाल्मीकि फिर से मैदान में डटे हैं। 2014 में यहां से विधायक बने कृष्ण लाल पंवार मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में परिवहन मंत्री रहे। 2019 में वे बलबीर वाल्मीकि के हाथों चुनाव हार गए। इसके बाद भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। अब वे सांसद होते हुए फिर से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं और बलबीर सिंह वाल्मीकि से अपनी हार का बदला लेने की चाहत रखते हैं। इसराना की सीट पर दोनों ही पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर बनी हुई है। इसराना में रोड़ जाति के भी कई गांव हैं।