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भाजपा कभी एक साथ नहीं जीत पायी 2 सीट

07:19 AM Oct 08, 2024 IST

जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 7 अक्तूबर
बांगर में कांग्रेस का पंजा चलेगा, या भाजपा का कमल खिलेगा, इसका फैसला मंगलवार को होगा। भाजपा का कमल जींद में एक साथ कभी दो विधानसभा सीटों पर नहीं खिल पाया है, तो कांग्रेस भी जींद जिले के 5 विधानसभा क्षेत्रों में से 4 में 15 साल से एक अदद जीत के लिए तरस  रही है।
हरियाणा की राजनीति को दिशा देने वाले जींद जिले की धरती भाजपा के कमल के फूल को अभी तक ज्यादा रास नहीं आई है। 2014 से पहले जींद जिले में कभी बीजेपी का कमल खिला ही नहीं था। जींद की बांगर की धरती पर पहली बार कमल 2014 में बांगर के केंद्र उचाना कलां विधानसभा सीट पर तब खिला था, जब 40 साल की कांग्रेस की राजनीति छोड़ भाजपा में शामिल हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह की धर्मपत्नी प्रेमलता उचाना से इनेलो के दुष्यंत चौटाला को पराजित कर विधानसभा में पहुंची थी। उसके बाद जनवरी 2019 में हुए जींद उप-चुनाव में भाजपा के डॉ कृष्ण मिड्ढा विधायक बने थे, जो इनेलो छोड़कर भाजपा में आए थे। अक्तूबर 2019 में भी जींद से भाजपा के डॉ कृष्ण मिड्ढा विधायक बने थे। इन दो विधानसभा क्षेत्रों के अलावा जींद जिले के किसी भी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का कमल कभी नहीं खिला है। 2014 में भाजपा की लहर में सफीदों से भाजपा ने डॉ वंदना शर्मा को प्रत्याशी बनाया था, जो तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बहन थी, लेकिन वह भी सफीदों में कमल नहीं मिला पाई थी। उन्हें निर्दलीय जसवीर देशवाल ने लगभग 1200 मतों के अंतर से पराजित किया था। भाजपा को बांगर की धरती राजनीतिक रूप से कभी ज्यादा रास नहीं आई है, इसे अब तक के चुनावी आंकड़े बयां करते हैं। फरवरी 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में इनेलो और भाजपा का गठबंधन होने के बाद जब जींद विधानसभा सीट भाजपा के हिस्से में आई थी, तब भी जींद में भाजपा का कमल नहीं खिला था। गठबंधन प्रत्याशी भाजपा के रामेश्वर दास गुप्ता अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे।
भाजपा ने चला गैरजाट कार्ड
जींद जिले में भाजपा जाट समुदाय के बड़े दिग्गजों के दम पर भी उचाना कलां और जुलाना में 2019 में जीत दर्ज नहीं कर पाई थी। उचाना कलां से भाजपा की प्रेमलता और जुलाना से लगातार दो बार के विधायक रहे प्रमेंद्र ढुल भाजपा की टिकट पर चुनाव हार गए थे। इसी कारण भाजपा ने इस बार जींद की जाटलैंड में पूरी तरह से गैर जाट कार्ड खेला और जींद में सामान्य वर्ग की 4 विधानसभा सीटों में से एक में भी किसी जाट को अपनी टिकट नहीं दी। उसने उचाना और जुलाना की सबसे बड़ी जाट बहुल सीटों से भी गैर जाट प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं। सफीदों से बाहर के रामकुमार गौतम को टिकट दे दी, लेकिन सफीदों के जाट समुदाय के आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले और पूर्व जिला प्रधान राजू मोर को टिकट नहीं देकर साफ कर दिया था कि भाजपा की जींद में जाटों को पूरी तरह से न है।

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कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर

जींद जिले में कांग्रेस का पंजा चलता है या नहीं, इसका फैसला मंगलवार को होगा। जींद जिला कांग्रेस के लिए ज्यादा अनुकूल अतीत में नहीं रहा है। जब इनेलो और जेजेपी का डंका प्रदेश की राजनीति में बजता था, तब जींद जिला ज्यादातर समय चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला की इनेलो और 2019 में दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के साथ गया था। जींद जिले में कांग्रेस पार्टी 4 विधानसभा सीटों पर पिछले 15 साल से जीत के लिए तरस रही है। नरवाना, उचाना कलां,जींद और जुलाना में कांग्रेस पार्टी को अंतिम बार 2005 में जीत मिली थी। उसके बाद 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस पार्टी को जींद जिले की इन चारों विधानसभा सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। इस बार जींद जिले में मुख्य चुनावी मुकाबले कांग्रेस और भाजपा के बीच हैं। केवल नरवाना इसका अपवाद है, जहां इनेलो भी कड़े मुकाबले में है। कांग्रेस पार्टी जींद जिले की इन 4 विधानसभा सीटों में से कौन सी सीटों पर 15 साल बाद जीत हासिल करती है, यह मंगलवार को चुनावी नतीजे बताएंगे।

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क्षेत्रीय दलों के सिमटने का फायदा कांग्रेस को

जींद जिले में जिस तरह और इनेलो और जेजेपी जैसे क्षेत्रीय दल लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से पिटे, उसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल रहा है। यह फायदा चुनावी नतीजे में कहां तक बदलता है, फैसला मंगलवार को होगा।

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