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कर्मफलदाता व न्यायप्रिय देवता की जयंती

08:07 AM Jun 03, 2024 IST
कर्मफलदाता व न्यायप्रिय देवता की जयंती
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डॉ. पवन शर्मा
हिंदू धर्म में शनि जयंती बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन भक्ति भाव से मनाई जाती हैं। शनि देव के अवतरण दिवस को ही उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।
शुभ संयोग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, उनकी पूजा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में अन्याय का सामना नहीं करना पड़ता है। वे कर्मों के आधार पर सभी के साथ न्याय करते हैं, इसलिए उन्हें कर्मफल दाता भी कहा जाता है। शनि जयंती के दिन भगवान शनि की पूजा का विशेष महत्व है। इस बार शनि जयंती 6 जून को मनाई जाएगी। इस दिन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पड़ रही है। इसके अलावा इसी दिन वट सावित्री का पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में इन विशेष तिथियों का एक साथ पड़ना बेहद ही शुभ संयोग माना जा रहा है, जिसके चलते शनि जयंती इस बार अपने आप में बेहद खास होने वाली है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शनि देव का जन्म इसी दिन और सर्वाथ सिद्धि योग में ही हुआ था। ऐसे में शनि जयंती न्याय के देवता के जन्म का प्रतीक मानी जाती है।
कर्मफलदाता
शनि जयंती को लोग धार्मिक रूप से मनाते हैं तथा इस त्योहार में वे भगवान शनि की पूजा करते हैं। इस दिन लोग भगवान शनि को विभिन्न वस्तुएं अर्पित करते हैं। साथ ही इस त्योहार के दौरान कुछ लोग व्रत भी रखते हैं और भगवान शनि की उपासना करते हैं।
इसके साथ ही शाम के समय उनके समक्ष और पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं। ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। साथ ही सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। शनि दोष से मुक्ति और धन-समृद्धि प्राप्त करने लिए यह खास दिन है। शनि जिन्हें कर्मफलदाता माना जाता है, दंडाधिकारी कहा जाता है, न्यायप्रिय माना जाता है। जो अपनी दृष्टि से राजा को भी रंक बना सकते हैं।
हिंदू धर्म में शनि देवता भी हैं और नवग्रहों में प्रमुख ग्रह भी जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में बहुत अधिक महत्व मिला है। शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना जाता है।
बुरे प्रभावों से मुक्ति
मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या को ही सूर्यदेव एवं छाया (संवर्णा) की संतान के रूप में शनि का जन्म हुआ। शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए ये दिन खास माना जाता है। मान्यता है इस दिन शनि देव की विधि-विधान पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही शनि साढ़ेसाती और शनि ढैय्या के बुरे प्रभावों से राहत भी मिल जाती है। इस दिन शनि देव के साथ-साथ हनुमान भगवान की पूजा भी की जाती है। हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को मुक्त कराया था, इसलिए शनिदेव के कथनानुसार, जो भी भक्त हनुमान जी की पूजा करते हैं, वे भक्त शनि देव के अति प्रिय और विशेष कृपा पात्र होते हैं।
जयंती का महत्व
शनि को आकाशीय गति के अनुसार सबसे धीमा चलने वाला ग्रह माना जाता है। इसलिए, ज्योतिषीय रूप से इस चीज़ का एक महत्वपूर्ण और विशाल महत्व यह है कि यह ग्रह कहां स्थित है? आमतौर पर शनि को एक ऐसे ग्रह के रूप में माना जाता है जिसका मूल निवासियों के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इस तरह से लोग इससे डरते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि यह धीमी गति से चलने वाला ग्रह कर्म का ग्रह है। यह केवल उन लोगों को सफलता प्रदान करता है, जिन्होंने कड़ी मेहनत, अनुशासन और ईमानदारी के प्रयासों से अपने जीवन में तपस्या और संघर्ष किया है। क्या कोई व्यक्ति धनी होगा या बुरे भाग्य का शिकार होगा, यह पिछले और वर्तमान जीवन में किए गए उसके कर्मों पर निर्भर करता है।
धर्म के अनुसार शनि देव को न्याय का देवता माना जाता हैं, क्योंकि वह मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। ऐसा माना जाता है कि सभी व्यक्ति अपने जीवनकाल में एक बार शनिदेव की साढ़े साती से गुजरते हैं और यही वह समय होता है जब वे अपने जीवन के सबसे जटिल संघर्षों का अनुभव करते हैं। हालांकि, यदि आपके कर्म अच्छे हैं, तो भगवान शनि इस अवधि में आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे, जिससे आपको सफलता मिलेगी। इस तरह की पीड़ा और कष्टों से छुटकारा मिलेगा। इसलिए, शनि को प्रसन्न करने के लिए शनि जयंती के दिन शनिदेव की विशेष पूजा करते हैं। प्रार्थना करते हैं ताकि इनका बुरा प्रभाव कम हो जाये।
साढ़े साती का सामना करने वाले लोगों को शनि देवता की नियमित रूप से प्रार्थना करनी चाहिए। इस खास दिन पर शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए सच्चे मन से शनि चालीसा का पाठ करें। हो सके तो शनि जयंती पर व्रत रखें और दान करें। इस दिन शनि देव से संबंधित वस्तुओं का दान बेहद शुभ फलदायी माना जाता है। शनि देव की पूजा करने से जातक को धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

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