बीरेंद्र की घर वापसी से बदलेगी बांगर की राजनीतिक हवा
दलेर सिंह/हप्र
जींद (जुलाना), 10 अप्रैल
दीनबंधु चौ़ सर छोटूराम के नाती और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह की घर वापसी यानी कांग्रेस ज्वाइन करने से बांगर की राजनीतिक हवा बदलेगी। जींद व कैथल जिला की बांगर बेल्ट के समीकरण बदल सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति भी उनके कांग्रेस में शामिल होने के बाद करवट ले सकती है। यह भी कह सकते हैं कि गुटबाजी में बंटी कांग्रेस में अब एक और मजबूत ठिकाना उन नेताओं व कार्यकर्ताओं को मिल सकता है, जो कहीं न कहीं खुद को उपेक्षित मान रहे थे।
सबसे अधिक झटका जींद जिला के उचाना हलके के उन नेताओं को लगा है, जो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट के लिए लाइन में लगे थे। इसी तरह से जींद, जुलाना, नरवाना व सफीदों हलके की सियासत पर भी इससे असर देखने को मिल सकता है। बीरेंद्र सिंह व उनकी पत्नी व पूर्व विधायक प्रेमलता ने गत दिवस नई दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता हासिल की है। पूर्व सांसद और बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह पिछल महीने ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
बृजेंद्र के आने के बाद बीरेंद्र दंपत्ति का भी कांग्रेस में आना तय हो गया था, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह का यह दावा फीका निकला, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे कम से कम दो मौजूदा विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस में एंट्री करेंगे। बहरहाल, बीरेंद्र सिंह के प्रदेशभर के दूसरे समर्थक जरूर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं लेकिन मौजूदा विधायकों की एंट्री का दावा सिरे नहीं चढ़ सका। बीरेंद्र सिंह के कांग्रेस में आने से सबसे अधिक बेचैनी उचाना हलके के कांग्रेस नेताओं में है।
दर्जनभर स्थानीय नेता टिकट के लिए भागदौड़ कर रहे थे। बीरेंद्र सिंह के कांग्रेस से बाहर होने की वजह से जींद जिला में नये चेहरों को मौका मिलने की उम्मीद भी बंधी हुई थी लेकिन अब उनके सपनों को तगड़ा झटका लगा है। सबसे अधिक उदास वे नेता हैं, जो बीरेंद्र सिंह के भाजपा में जाने के बाद से पिछले करीब दस वर्षों से कांग्रेस का झंडा उठाए हुए थे। हिसार संसदीय सीट के समीकरण भी अब बदल गए हैं। माना जा रहा है कि हिसार से अब बृजेंद्र सिंह का लोकसभा चुनाव लड़ना लगभग तय है।
इसी तरह से उचाना कलां हलके से पूर्व विधायक प्रेमलता को टिकट मिलने की भी उम्मीद काफी बढ़ गई हैं। उचाना कलां बीरेंद्र परिवार की परंपरागत सीट है। माना जा रहा है कि उचाना के अलावा सफीदों, जींद शहर, नरवाना और जुलाना हलके की राजनीति भी अब प्रभावित होगी। इन चारों सीटों से भी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कई नेताओं ने तैयारी की हुई है। स्वभाविक है कि अब बीरेंद्र समर्थक भी टिकट के लिए लॉबिंग करेंगे।
अब नहीं रहेगा ‘किंग’ का क्लेम
बीरेंद्र सिंह को राजनीति का ‘ट्रेजडी किंग’ भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई ऐसे मौके आए हैं, जब बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी के नजदीक होते हुए भी दूर हो गए। अब चूंकि बीरेंद्र सिंह खुद ही चुनावी राजनीतिक से संन्यास लेने का ऐलान कर चुके हैं। इससे स्पष्ट संकेत हैं कि उन्होंने अपने इस ‘सपने’ को भी छोड़ दिया है। अब वे बेटे बृजेंद्र को राजनीतिक तौर पर स्थापित करने की कोशिश करेंगे। पांच बार विधायक, तीन बार हरियाणा में मंत्री और तीन बार सांसद रहे बीरेंद्र सिंह पांच वर्षों तक केंद्र में हेवीवेट मंत्री भी रह चुके हैं।
हो गई थी सीएम बनाने की घोषणा
1991 में राजीव गांधी ने बीरेंद्र सिंह को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी थी लेकिन इससे पहले ही राजीव गांधी की हत्या हो गई। कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सत्ता में भी आई लेकिन मुख्यमंत्री बीरेंद्र सिंह की जगह चौ़ भजनलाल को बनाया गया। इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 67 सीटों के बहुमत के साथ सत्ता में आई। इस बार भी बीरेंद्र सिंह मजबूत दावेदार थे और सीएम की कुर्सी के काफी नजदीक थे। लेकिन ऐन-मौके पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा बाजी मार गए। 2009 के विधानसभा चुनावों में भी बीरेंद्र सिंह का नाम तेजी से आगे बढ़ा लेकिन इस बार वे खुद ही उचाना कलां से चुनाव हार गए।