छोटी कविताओं में बड़ी बात
रतन चंद ‘रत्नेश’
हाइकु की तरह जापानी का एक अन्य काव्य विधा है तांका या वाका जिसका शाब्दिक अर्थ है छोटी कविता। आरंभ में यह एक ही पंक्ति में लिखी जाती थी परंतु अंग्रेजी अनुवाद में यह पांच पंक्तियों में लिखी जाने लगी। उसी तरह हिंदी में भी यह प्रचलित 5-7-5-7-7 वर्णों में लिखी जाती हैं। एक आदर्श तांका में एक दृश्य-कल्प होता है जिसे केंद्र में रखकर कविता की अगली पंक्तियां सृजित होती हैं। अर्थात् प्रथम तीन पंक्तियों में जो दृश्य या भाव होता है, तदनुसार संगत बिठाकर अगली दो पंक्तियों में मूलकथा का समावेश किया जाता है।
विभिन्न विषयों पर आधारित ग्यारह खंडों में विभाजित डॉ. अंजु दुआ जैमिनी के तांका-संग्रह ‘ब्रह्मांड मुट्ठी में’ की कई कविताएं प्रभावशाली बन पड़ी हैं जो गहन चिंतन की धरातल पर रची गई हैं। एक पैमाने में उद्गार का यह निश्चय ही श्रमसाध्य कार्य है। उदाहरणार्थ ‘कौन-सी दुआ/कब काम आ जाए/ मालूम नहीं /मन की तकलीफ/ बस शांत हो जाए।’ अन्य एक तांका में आदर्श परिवार की यह संक्षिप्त टिप्पणी कुछ यों व्यक्त हुई है :- ‘मधुर वाणी/ समान व्यवहार/ पुष्ट विचार/ सुकर्म, सुसंस्कार/ सुंदर परिवार।’
इस तरह कुल 31 वर्णों की छोटी कविताओं में बहुत बड़ी बात कहने का प्रयास निस्संदेह प्रशंसनीय है जो चिंतन की मांग करती है। धर्म और अध्यात्म के बीच के महीन धागे को उधेड़ती इस तांका की गहनता पर गौर करें :- ‘धर्म की चर्चा/ नहीं सुननी मुझे/ आध्यात्मिक मैं/ सीधी सरल व्याख्या /मुझमें वह बसा।’
पुस्तक : ब्रह्मांड मुट्ठी में (तांका-संग्रह) लेखिका : डॉ. अंजु दुआ जैमिनी प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 320.