जुल्म के प्रतिरोध से उपजे बड़े सवाल
प्रदीप मिश्र
आठ फरवरी को संसदीय चुनाव से ऐन पहले पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान के वाशिंदों ने वहां की अगली सरकार को संदेश दे दिया है। भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी संकेत हैं कि कंगाली-तंगहाली, जोर-जबरदस्ती और उपेक्षा-उत्पीड़न से आजिज यहां के आधे-अधूरे नागरिक दिक्कतों से निजात पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। पाकिस्तान सरकार 1990 के बाद से पांच फरवरी को कश्मीर डे यानी कश्मीरी एकजुटता दिवस मनाती आ रही है लेकिन गिलगित-बाल्टिस्तान में इसके विरोध में बंद और हड़ताल ने वहां के हालात सार्वजनिक कर दिए हैं। इस्लामाबाद में भी छात्रों ने पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन किया। आजाद कश्मीर की अवाम ने भी दो साल से ऐसे कार्यक्रमों से दूरी बना ली है।
पाकिस्तान में कश्मीरियों के प्रति समर्थन दिखाने और सहानुभूति जताने के लिए पूरे देश में छुट्टी कर रैलियां की जाती थीं। दुनिया के सामने भारतीय कश्मीरियों की दयनीय हालत बयां करने के लिए भारतीय उच्चायोग के सामने भी रैली होती थी। पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हालात पूरी तरह बदल गए हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद संबंधी पाकिस्तान की कोशिशें लगातार नाकाम हो रही हैं। जम्मू-कश्मीर के विकास जैसे विकल्प से पीओजेके में पाकिस्तानी हुक्मरानों के विरुद्ध बगावत की बयार बहने लगी है। पिछले महीने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बताया कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के साढ़े चार साल बाद जम्मू-कश्मीर में 90 हजार करोड़ रुपये का निवेश हुआ। 15 हजार करोड़ रुपये का निवेश धरातल पर आ गया है। हाईवे और कॉरिडोर का कार्य प्रगति पर है। 77 साल में पहली बार यहां पहुंचने वाले रिकॉर्ड दो करोड़ पर्यटक बाकी के बदलाव के साक्षी हैं।
अब असलियत यह है कि भारत में तीन दशक तक खास आयोजनों में खलल डालने के लिए पाकिस्तान पथराव, हड़ताल और बंद जैसे जिन हथकंडों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर राग अलापने का अवसर पाता था, उसको ही उलटे पड़ने लगे हैं। वहां के लोग पाकिस्तान का शासन अवैध बताते हुए मानवाधिकारों की जंग लड़ने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सिर्फ पाकिस्तान और भारत ही नहीं, दुनिया के लोकतांत्रिक देश उनकी आवाज सुनें और उनका साथ दें। जम्मू-कश्मीर में बेहतर बदलाव ने उनके जुनून काे बढ़ा दिया है। वे जानते हैं कि इसके लिए जंग जरूरी है और इसे जीतने के लिए उन्हें और जुल्म सहने पड़ सकते हैं पर मजबूरी के लिए आगे की नस्लें उन्हें कायर और गुनहगार तो नहीं मानेंगी।
दरअसल, गिलगित-बाल्टिस्तान, सिंध, आजाद कश्मीर और बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं। पाकिस्तानी तालिबानी भी स्वतंत्र देश चाहते हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान के खिलाफ लगातार प्रदर्शन करते हुए भारत के लद्दाख के साथ मिलाने की मांग कर रहे हैं। चार फरवरी को लद्दाख के लोगों ने भी इससे सहमति जता दी है। उन्होंने लद्दाख को राज्य का दर्जा देकर लोकसभा सीट एक से बढ़ाकर दो करने की मांग की है। 2009 में पाकिस्तान ने अधिकार न होने के बावजूद पीओके को आजाद कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के रूप में विभाजित किया, जिसका क्षेत्रफल 86,267 वर्ग किलोमीटर है। भारत सरकार ने इसी पूरे क्षेत्र को पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) नाम दिया है। पाकिस्तान में 2017 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार सुन्नी बहुतायत वाले आजाद कश्मीर की आबादी 4.45 करोड़ और शिया बहुल गिलगित-बाल्टिस्तान की जनसंख्या 1.49 करोड़ थी। दोनों विधानसभाओं के लिए क्रमशः 45 और 33 सदस्य चुने जाते हैं।
कहने को ही दोनों के ध्वज और राष्ट्रपति अलग-अलग हैं। असल शासन पाकिस्तान का ही है। महंगाई, बेरोजगारी और खाद्यान्न संकट से दो-चार हो रहे लोगों से पाकिस्तान सरकार बेफिक्र है। पाक अधिकृत कश्मीर में आईएसआई के आतंकी प्रशिक्षण केंद्र हैं, जबकि शियाओं पर दमन चक्र चल रहा है। पाक अधिकृत आजाद कश्मीर से पानी-बिजली की आपूर्ति पूरे पाकिस्तान को की जाती है लेकिन उसके अपने लिए कुछ नहीं है। दोनों इलाकों में सेना जमीनों पर जबरन कब्जा कर रही है। अवाम के अल्टीमेटम का असर नहीं है। आए दिन प्रदर्शन और पिटाई उनकी जिंदगी का हिस्सा है। जुल्म सहते-सहते उनके बुनियादी सवाल बड़े हो गए हैं और वे अपनी तुलना जम्मू-कश्मीर में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं, रोजगार के अवसर, पर्यटन व संस्कृति के प्रचार-प्रसार और समान सुरक्षा से कर रहे हैं। पीओजेके पर भारत की गंभीरता इससे जाहिर है कि 10 जनवरी को पाकिस्तान में ब्रिटेन की उच्चायुक्त जेन मेरियट के मीरपुर दौरे को भारत ने संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए आपत्ति दर्ज कराई थी। अक्तूबर, 2022 में पाकिस्तान में अमेरिका के राजदूत द्वारा इसी क्षेत्र में जाने पर भी ऐसा ही विरोध किया गया था। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओजेके के लिए 24 सीटें तब से आरक्षित हैं, जब वह महाराजा हरि सिंह की रियासत होता था।