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पंचकूला-कालका सीट पर योद्धाओं में महामुकाबला

07:50 AM Sep 17, 2024 IST

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
कालका/पंचकूला, 16 सितंबर
राजधानी चंडीगढ़ से सटे पंचकूला और कालका विधानसभा क्षेत्र भी इस बार हॉट हो गए हैं। इन दोनों ही हलकों पर पूरे प्रदेश की नजरें रहेंगी। ट्राइसिटी यानी पंचकूला, चंडीगढ़ और मोहाली के तहत आने वाले पंचकूला जिला का हरियाणा की ‘मिनी राजधानी’ भी कहा जाता है। प्रदेश का यह अकेला ऐसा जिला है, जिसमें सबसे कम दो ही विधानसभा क्षेत्र हैं। पंचकूला स्थित माता मनसा देवी और कालका में कालिका देवी की शक्ति पीठ से दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को आशीर्वाद मिलने की उम्मीद है। दोनों ही मंदिरों के प्रति लोगों की गहरी आस्था और विश्वास है। तभी तो सभी राजनीतिक दलों के लोग चुनावी कैंपेन में उतरने से पहले मंदिर में पूजा-अर्चना करके ही आगे बढ़ते हैं। 2005 के विधानसभा चुनावों तक इस जिले में केवल कालका ही विधानसभा क्षेत्र था। 2008 के परिसीमन के बाद पंचकूला सीट अस्तित्व में आई। ये सीटें हॉट और महत्वपूर्ण इसलिए हो गई हैं क्योंकि दो राजनीतिक घरानों की प्रतिष्ठा इन सीटों के चलते दांव पर लगी है। भूतपूर्व मुख्यमंत्री चौ़ भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई पंचकूला से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी और अम्बाला सिटी नगर निगम की मेयर शक्ति रानी शर्मा कालका में भाजपा टिकट पर कांग्रेस को चुनौती दे रही हैं। चंद्रमोहन के साथ पिता का नाम तो है लेकिन उनके छोटे भाई और पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई का साथ नहीं है। कुलदीप बिश्नोई भाजपा में हैं और वे कांग्रेस के खिलाफ पूरे प्रदेश में प्रचार करेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा के नजदीकियों में शामिल चंद्रमोहन बिश्नोई को पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा का साथ मिलने के भी कम ही चांस हैं। भाजपा ने पंचकूला से दो बार के विधायक और विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता पर लगातार चौथी बार भरोसा जताया है। 2009 में ज्ञानचंद गुप्ता पंचकूला सीट पर हुए पहला ही चुनाव कांग्रेस के डीके बंसल के हाथों हार गए थे। अगले ही चुनाव में यानी 2014 में ज्ञानचंद ने डीके बंसल को शिकस्त देकर अपना बदला ले लिया। इसके बाद 2019 के चुनावों में ज्ञानचंद गुप्ता ने पूर्व डिप्टी सीएम चंद्रमोहन बिश्नोई को 5 हजार 633 मतों के अंतर से शिकस्त दी। उन्होंने चुनाव को हलके में लिया था, इस वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इस बार विपरीत परिस्थितयों में चंद्रमोहन बिश्नोई, कुमारी सैलजा के ‘आशीर्वाद’ से टिकट हासिल करने में कामयाब रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल अपने बेटे मनीष बंसल को पंचकूला से चुनाव लड़वाना चाहते थे। कांग्रेस की वरिष्ठ नेेता अंबिका सोनी ने भी मनीष बंसल की वकालत की, लेकिन बात नहीं बन पाई। पंचकूला की सीट पर इस बार भी आमने-सामने की ही टक्कर होती नज़र आ रही है। दस वर्षों की सरकार के खिलाफ थोड़ी-बहुत एंटी-इन्कमबेंसी होना भी स्वभाविक है। दो बार के मौजूदा विधायक ज्ञानचंद गुप्ता को भी आसानी से टिकट नहीं मिली है। उनकी टिकट पर भी तलवार लटकी थी, लेकिन उनकी संघ पृष्ठभूमि उनके काम आई।

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पंचकूला विधानसभा क्षेत्र

जीत की हैट्रिक को उतरेंगे ज्ञानचंद गुप्ता

2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई पंचकूला सीट पर 2009 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के डीके बंसल ने जीत हासिल की थी। 2005 में डीके बंसल ने अम्बाला सिटी से चुनाव लड़ा था। बंसल ने इनेलो के योगराज सिंह को 12 हजार 260 मतों के अंतर से चुनाव हराया। भाजपा के ज्ञानचंद गुप्ता 15 हजार 717 मतों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। 2014 में ज्ञानचंद गुप्ता ने 69 हजार 915 वोट लेकर न केवल जीत हासिल की बल्कि डीके बंसल को तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया। बंसल को महज 15 हजार 564 वोट हासिल हुए। इनेलो के कुलभूषण गोयल 25 हजार 314 मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। 2019 में कांग्रेस ने चंद्रमोहन बिश्नोई को टिकट दिया लेकिन वे ज्ञानचंद गुप्ता को हरा नहीं सके। इस बार ज्ञानचंद गुप्ता जीत की हैट्रिक लगाने के लिए चुनावी रण में डटे हैं।

चंद्रमोहन लगा चुके कालका में चौका

पूर्व सीएम भजनलाल के बेटे बड़े चंद्रमोहन बिश्नोई की कालका में 1993 में पहली बार एंट्री हुई। 1993 में हुआ उपचुनाव चंद्रमोहन ने कांग्रेस टिकट पर लड़ा था। उस समय प्रदेश में भजनलाल की ही सरकार थी। वे आसानी से चुनाव जीत गए। चंद्रमोहन ने कालका से लगातार चार चुनाव जीते और आमचुनाव में उन्होंने जीत की हैट्रिक भी लगाई। 1993 के बाद 1996, 2000 और 2005 का चुनाव भी चंद्रमोहन ने कांग्रेस टिकट पर जीता। 2005 में जब भजनलाल की जगह भूपेंद्र हुड्डा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया तो चंद्रमोहन बिश्नोई हुड्डा सरकार में डिप्टी सीएम रहे। हालांकि बाद में उन्हें एक महिला के साथ संबंधों के चलते अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। वहीं चंद्रमोहन बिश्नोई पिछली चुनावों की गलतियों से सबक लेते हुए इस बार और भी गंभीरता से चुनाव लड़ रहे हैं।

गेटवे-ऑफ हिमाचल में संग्राम

कालका को गेटवे-ऑफ हिमाचल कहा जाता है। कालका के तुरंत बाद हिमाचल प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। कालका व पिंजौर के अलावा मोरनी हिल्स भी इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति रानी शर्मा को भाजपा से यहां से विधायक रह चुकी लतिका शर्मा की टिकट काटकर विश्वास जताया है। विनोद शर्मा के पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय बिजली मंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच काफी गहरे राजनीतिक रिश्ते हैं। माना जा रहा है कि मनोहर लाल के प्रयासों से ही शक्ति रानी शर्मा को टिकट मिला है। मनोहर लाल के प्रयासों से ही विनोद शर्मा के बेटे कार्तिकेय शर्मा भाजपा के समर्थन से राज्यसभा पहुंचने में कामयाब रहे। शक्ति रानी शर्मा का सीधा मुकाबला कांग्रेस के मौजूदा विधायक प्रदीप चौधरी के साथ होगा। प्रदीप चौधरी को भी कुमारी सैलजा के समर्थकों में गिना जाता है। प्रदीप चौधरी का कालका से यह लगातार पांचवां चुनाव है। वे अभी तक दो बार विधायक बने हैं। 2019 में पहली बार उन्हें कांग्रेस से टिकट मिला था और वे भाजपा की मौजूदा विधायक लतिका शर्मा को हराने में कामयाब रहे थे। कालका सीट पर शक्ति रानी शर्मा और प्रदीप चौधरी के बीच आमने-सामने की टक्कर है।

‘रूठों’ को मनाना बड़ी चुनौती

दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा व कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने रूठों को मनाने की भी है। भाजपा व कांग्रेस के दूसरे नेता भी टिकट के प्रबल दावेदार थे। टिकट नहीं मिलने के बाद वे नाराज हैं। कई नेता अपने समर्थकों के साथ बैठकें भी कर चुके हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने नाराज लोगों को मनाने की कवायद शुरू कर दी है। पंचकूला में कांग्रेस टिकट मांग रही पूर्व मेयर उपेंद्र कौर आहलूवालिया व महिला कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुधा भारद्वाज के अलावा चार-पांच और भी मजबूत चेहरे हैं, जो टिकट मांग रहे थे। चंद्रमोहन के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती उपेंद्र कौर आहलूवालिया, सुधा भारद्वाज व अन्य नेताओं को साथ लेकर चलने की होगी। वहीं भाजपा टिकट के दावेदारों में शामिल सीएम के एडवाइजर (पब्लिसिटी) तरुण भंडारी और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की चेयरपर्सन रहीं रंजीता मेहता को साधना ज्ञानचंद गुप्ता के लिए जरूरी हो गया है। वहीं कालका सीट पर शक्ति रानी शर्मा को सबसे पहले यहां से विधायक रहीं लतिका शर्मा को अपने साथ जोड़ना होगा। लतिका शर्मा को इस बार कहीं से भी टिकट नहीं मिला। ऐसे में वे नाराज चल रही हैं। वहीं प्रदीप चौधरी को यहां से चुनाव लड़ चुकी और वरिष्ठ नेता मनबीर कौर गिल सहित उन सभी नेताओं को मनाना होगा, जो टिकट की दौड़ में शामिल थे।

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कालका  विधानसभा क्षेत्र

गढ़ तोड़ने वाले प्रदीप अब कांग्रेसी

कालका विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। इनेलो टिकट पर 2009 में प्रदीप चौधरी ने कांग्रेस के विजयी रथ को थामा। कांग्रेस ने सतविंद्र सिंह राणा को टिकट दिया था और प्रदीप ने इनेलो टिकट पर जीत हासिल की। संयोग देखिए, अब प्रदीप चौधरी कांग्रेस के सिटिंग विधायक हैं और फिर से मैदान में हैं। इसके बाद 2014 में भाजपा की लतिका शर्मा ने प्रदीप चौधरी को शिकस्त देकर यहां ‘कमल’ खिलाया। 2019 के चुनावों से पहले प्रदीप चौधरी इनेलो छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें कालका से टिकट दिया और वे भाजपा की लतिका शर्मा को हराकर अपनी हार का बदला लेने में कामयाब रहे।

शक्ति रानी शर्मा की परीक्षा

अम्बाला की मेयर शक्ति रानी शर्मा को भाजपा ने कालका से चुनाव मैदान में उतारा है। शक्ति रानी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में जन चेतना पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर कालका की सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वो हार गई थीं। इस चुनाव में उनकी कड़ी परीक्षा होने वाली है। उनके पति विनोद शर्मा 1980 में पटियाला की बनूड़ सीट से विधायक रहे चुके हैं। नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं।  विनोद शर्मा ने 2014 के चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी जन चेतना पार्टी बना ली थी। वे और शक्ति रानी शर्मा दोनों ही अपने-अपने चुनाव हार गए थे। अब देखना होगा कि शक्ति रानी कैसे प्रदीप चौधरी का मात दे पाती हैं।

गांवों और शहरों का भी गणित

दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों को जहां गांवों में काफी अधिक मेहनत करनी होगी। वहीं कांग्रेस उम्मीदवारों को शहरी क्षेत्रों में पसीना बहाना होगा। शहरी वोटरों में भाजपा का प्रभाव अधिक माना जाता है। हालिया लोकसभा चुनावों के नतीजों ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि शहरों में भाजपा को अधिक समर्थन मिला। वहीं कांग्रेस को गांवों से अच्छा रिस्पांस हासिल हुआ। यही कारण हैं कि दोनों ही पार्टियां अब इसी हिसाब से अपनी चुनावी रणनीति तैयार कर चुकी हैं। कांग्रेसी जहां शहरों में डोर-टू-डोर कैम्पेन के जरिये लोगों को साथ जोड़ने की मुहिम में जुटे हैं। वहीं भाजपा गांवों में अपने समर्थकों व वर्करों को एक्टिव कर चुकी है। केंद्र वे राज्य सरकार की नीतियों को लोगों तक पहुंचाया जा रहा है ताकि ग्रामीण वोट बैंक को आकर्षित किया जा सके।

कर्मचारियों को भी साधना होगा

राजधानी चंडीगढ़ से सटा होने की वजह से पंचकूला व कालका में बड़ी संख्या में नौकरीपेशा लोग रहते हैं। हरियाणा सरकार के कई विभागों व बोर्ड-निगमों के प्रदेश मुख्यालय भी पंचकूला में ही स्थित हैं। हालांकि कर्मचारियों को अभी तक राज्य की कोई भी सरकार खुश नहीं कर पाई है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा में कर्मचारियों द्वारा उठाई जा रही पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की मांग बड़ा मुद्दा बनी हुई है। कांग्रेस द्वारा पब्लिक प्लेटफार्म पर ओपीएस लागू करने का ऐलान किया जा चुका है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद केंद्र की मोदी सरकार कर्मचारियों के लिए एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम) की जगह यूपीएस (यूनिफाइड पेंशन स्कीम) लागू करने का फैसला कर चुकी है। ओपीएस, एनपीएस और अब यूपीएस के फेर में उलझे कर्मचारियों को साधना भी भाजपा के लिए चुनौती भरा रहने वाला है।
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