Bhangarh Fort Story : तांत्रिक का श्राप या भूतों का बसेरा... वीरान भानगढ़ किले के घरों में क्यों नहीं टिकटी कोई भी छत?
चंडीगढ़, 22 फरवरी (ट्रिन्यू)
Bhangarh Fort Story : भारत में ऐसी कई जगहें है जो अजीब रहस्यों और भूत की कहानियों से घिरी हुई हैं। कुछ स्थानों की कहानियां तो इतनी डरावनी है कि उन्हें नजरअंदाज करना भी मुश्किल है, फिर चाहे आप भूतों पर विश्वास करते हो या ना करते हो। आज हम आपको एक ऐसी ही भूतिया जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां लोग रात के अंधेरे ही नहीं बल्कि दिन की रोशनी में भी जाने से डरते हैं।
हम बात कर रहे हैं जयपुर से 118 कि.मी. दूरी पर स्थित भानगढ़ किले की। देश की सबसे भूतिया जगहों में से एक भानगढ़ किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में आमेर के मुगल सेनापति मानसिंह के छोटे भाई राजा माधोसिंह ने करवाया था। कभी हरियाली और लोगों की चहचाहट से गूंजने वाला यह किला आज बिल्कुल वीरान पड़ा है।
किले के परिसर में बनी हवेलियां, मंदिर और सुनसान बजारों के अवशेष आज भी मौजूद है। स्थानीय लोगों का मानना है कि अंधेरे में यहां कई तरह पैरानॉर्मल एक्टिविटीज होती हैं। बावजूद इसके इस किले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं लेकिन सूर्यास्त के बाद कोई भी व्यक्ति यहां ठहरने की हिम्मत नहीं करता। हालांकि दिन में भी इस किले में घूमते समय कई तरह के भ्रम होते हैं।
श्राप का असर... गिर जाती है छत
हैरानी की बात तो यह है कि किले में बने हर घर का स्ट्रक्चर पूरा बना है लेकिन किसी की भी छत नहीं है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस किले पर बालूनाथ का श्राप है, जिसके कारण घरों की छत जब भी बनाओ, वह गिर जाती है। ऐसा कहा जाता है कि महाराज माधोसिंह संत बालूनाथ के बहुत बड़े भक्त थे। बालूनाथ ने महाराज से एक गुफा बनाने की मांग की , ताकिवो तपस्या कर सके। इसके बाद महाराज ने तुरंत गुफा बनवा दी, जिसके बाद बालूनाथ तपस्या करने लगे।
मगर, कुछ पुजारी महाराज और बालूनाथ के रिश्ते से जलने लगे। उन्होंने एक साजिश रचते हुए गुफा में एक बिल्ली को मारकर फेंक दिया। 2-3 दिन बाद गुफा से बदबू आने लगी। तब पुजारियों ने महाराज से कहा कि बालूनाथ ने गुफा में ही प्राण त्याग दिए हैं। इसपर महाराज बहुत दुखी हुए। बदबू के कारण उन्होंने अंदर देखे बिना ही गुफा को बंद करवा दिया।
उधर, तपस्या पूरी होने का बाद जब बालूनाथ ने बाहर निकलने का रास्ता बंद देखा तो वो क्रोधित हो गए और उन्होंने भानगढ़ को श्राप दे दिया। इसके बाद भानगढ़ पूरी तरह तबाह हो गया। जब महाराज को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने किले के पीछे जंगलों में बालूनाथ की समाधि बनवाई, जो आज भी स्थित है।