पैकेट बंद खाद्य सामान पर भ्रामक लेबल से सावधान!
नयी दिल्ली, 12 मई (एजेंसी)
शुगर-फ्री, नैचुरल, मेड विद होल ग्रेन, रियल... खाने-पीने के पैकेट बंद सामान पर ऐसे लेबल भ्रामक हो सकते हैं। शुगर-फ्री होने का दावा करने वाले खाद्य पदार्थ वसा से भरे हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि असली फ्रूट जूस होने का दावा करने वाले उत्पाद में फल का हिस्सा महज दस फीसदी हो। ये बातें भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कही हैं। देश के इस शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान निकाय ने जोर दिया है कि उपभोक्ताओं को सामान खरीदते वक्त उस पर लिखी जानकारी को सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिए।
हाल ही में जारी आहार संबंधी दिशा निर्देशों में आईसीएमआर ने कहा कि पैकेट वाले खाद्य पदार्थ पर स्वास्थ्य संबंधी दावे उपभोक्ता का ध्यान आकर्षित करने और उन्हें इस बात पर राजी करने के लिए किए जा सकते हैं कि यह उत्पाद सेहत के लिहाज से अच्छा है। आईसीएमआर के तहत आने वाले हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) द्वारा जारी दिशा निर्देशों में कहा गया है कि ‘नैचुरल’ व ‘प्राकृतिक’ शब्द का प्रयोग प्राय: धड़ल्ले से किया जाता है। असल में किसी खाद्य उत्पाद को तभी ‘प्राकृतिक’ कहा जा सकता है, जब उसमें कोई रंग, स्वाद (फ्लेवर) या कृत्रिम पदार्थ न मिलाया गया हो और वह न्यूनतम प्रसंस्करण से गुजरा हो।
‘असली फल या फलों के रस’ के दावे को लेकर एनआईएन ने कहा कि एफएसएसएआई के नियम के अनुसार, कोई भी खाद्य पदार्थ चाहे वह बहुत कम मात्रा में हो, उदाहरण के लिए केवल 10 फीसदी या उससे कम फल तत्व वाले उत्पाद को यह लिखने की अनुमति दी जाती है कि वह फलों के गूदे या रस से बना है। लेकिन ‘रियल फ्रूट’ होने का दावा करने वाले उत्पाद में चीनी व अन्य तत्व मिले हो सकते हैं और उसमें असली फल का केवल 10 फीसदी तत्व हो सकता है। इसी तरह ‘मेड विद होल ग्रेन’ के लिए इसने कहा कि इन शब्दों की गलत व्याख्या की जा सकती है।
एनआईएन ने कहा, ‘शुगर-फ्री खाद्य पदार्थ में वसा, परिष्कृत अनाज (सफेद आटा, स्टार्च) मिला हो सकता है और छिपी हुई शुगर (माल्टीटोल, फ्रुकटोस, कॉर्न, सिरप) हो सकती है।’