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अहसासों के बीच

06:40 AM Sep 17, 2023 IST

डॉ. अनुभूति
तुम
ख़ोज में थे, किसी अपने की
गहरी गुफ़ा के मध्य

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और :
मिला
तुम्हें पश्चताप से भरा
बेजुबान शख़्स..!

एक दिन मुलाकात होगी
नभ और धरा : जैसे-

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नदी की कल-कल ध्वनि से
बुनता हो मधुर संगीत,

चिड़ियों का
सरसों-सा खिलता गीत,

दरख़्त की शाखाओं से
लिपटा हुआ आत्मविश्वास,
दीपक की
उज्ज्वल ज्योति-सी आस,

भावनाओं के अंकुर
तब हौले-हौले प्रस्फुटित रहेंगे,
हृदय पुष्प मुरझाकर
फिर, इस आंगन खिलेंगे..!

तुम

तुम कुछ खोई हुईं
बातों का ज़िक्र करते आए हो
वही, जो तुम्हारे तकिए सिरहाने

नमी बन, आंखों के गलीचे में ठिठक रही हैं
तुम जानते हो :
अजनबी होकर जीना क्या है
फिर:
क्यों, इस गुफ़ा में
ख़ोज रहे हों, मेघ से बरसी
तड़प की मौलिक बूंद..?

रोटी

रोटी गोल हो या बिन आकार
क्या आकर्षण केंद्रबिंदु है?

पाश ने कहा :
रोटी का रिश्ता भूख से है
झोपड़ में, बासी रोटी बिन आकार भी
प्रेम से खाई जाती हैं...

वहीं, ईंटों के मकान में
गोल रोटी बहा दी जाती है...
कचरे के ढेर में...!

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