पीएच लेवल संतुलन से बेहतर सेहत
देवेश प्रकाश
यूपीएससी हो, राज्यों की सिविल सेवाएं हों या फिर इसी तरह की अन्य क्षेत्रों की परीक्षाएं -सभी तरह के कंपीटिटिव इग्जाम में जनरल स्टडीज संबंधी प्रश्नों का दायरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसलिए सामान्य ज्ञान के कई छोटे-छोटे सवाल परीक्षाओं में अभ्यर्थियों के बहुत काम आते हैं। अब जनरल स्टडीज के व्यापक दायरे से सवाल पूछने का जो चलन शुरू हुआ है, उसमें किसी एक विषय पर गंभीरता से अध्ययन की जरूरत होती है। बहुत क्विक फार्मेट में एक साथ विभिन्न विषयों के रोचक सवालों के जरिये परीक्षा में सफलता की संभावनाएं ज्यादा बन जाती हैं। यहां ऐसे ही जिज्ञासापूर्ण सवालों के सम्पूर्णता में जवाब दिए गये हैं।
पीएच आखिर है क्या
इस सवाल का सही जवाब जानने के पहले हमें यह जानना जरूरी है कि पीएच आखिर है क्या और इसके सही लेवल का मतलब क्या है? पीएच का फुल फॉर्म है-पावर ऑफ हाइड्रोजन यानी हाइड्रोजन की शक्ति। दरअसल किसी द्रव में हाइड्रोजन के अणुओं की संख्या तय करती है कि वह एसिडिक यानी अम्लीय है या एल्केलाइन यानी क्षारीय। मतलब अगर किसी लिक्विड या प्रोडक्ट का पीएच 1 या 2 है तो इसका मतलब है कि वह एसिडिक यानी अम्लीय है और अगर पीएच 13 या 14 है तो इसका मतलब यह है कि वह एल्केलाइन यानी क्षारीय है।
आदर्श पीएच स्केल
पीएच स्केल 0 से 14 तक जाता है। इसमें 0 सबसे ज्यादा अम्लीय और 14 सबसे क्षारीय बिंदु हैं,जबकि 7 तटस्थ बिंदु है। शरीर का आदर्श पीएच लेवल 7.35 से 7.45 के बीच होता है। इस बिंदुओं के इधर-उधर किसी भी मामूली बदलाव के हमारे शरीर में गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। मसलन यदि शरीर का पीएच लेवल 6.9 तक गिर जाये तो हम कोमा में जा सकते हैं।
सेहत के लिए पीएच संतुलन के मायने
पीएच संतुलन हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है; क्योंकि यह संतुलन हमारे शरीर को अच्छी तरह से काम करने में मदद करता है। इस संतुलन की बदौलत ही शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन की डिलीवरी होती है, इसी के चलते शरीर में सही से जैव रासायनिक प्रक्रियाएं सम्पन्न होती हैं। यदि शरीर में पीएच संतुलन गड़बड़ा जाये तो ग्लाइकोलाइटिक एंजाइम फॉस्फोफ्रक्टोकिनेज-1 (पीएफके-1), की गतिविधि मंद पड़ जायेगी क्योंकि यह पीएच पर निर्भर है, इसके नतीजे में चक्कर आना,बहुत ज्यादा थकान महसूस करना, भूख न लगना, जबर्दस्त सिरदर्द होना,तेज-तेज सांसें चलना,उल्टी आना,उनींदेपन का शिकार हो बेहोश हो जाने से लेकर कोमा में भी जा सकते हैं और अंततः प्राणों पर भी संकट आ सकता है।
रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए जरूरी
जब शरीर बहुत अधिक अम्लीय यानी एसिडोसिस या बहुत अधिक क्षारीय यानी एल्कलोसिस हो जाता है, तो इससे ऐसे लक्षण पैदा हो सकते हैं,जिनके चलते रोजमर्रा की गतिविधियों को संपन्न करना असंभव हो जाता है। हालांकि ऐसा बहुत आसानी से नहीं होता क्योंकि शरीर अपने आप में पीएच संतुलन बनाए रखने में माहिर होता है इसलिए साधारणतया ऐसी स्थिति मुश्किल से आती है।
अंगों के पीएच लेवल
अब तक आप समझ गये होंगे कि पीएच वास्तव में एक लघुगणकीय पैमाना है, जिसका उपयोग जलीय घोलों की अम्लता या क्षारकता को निर्दिष्ट करने के लिए किया जाता है। हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों का पीएच लेवल अलग-अलग होता है जैसे- पेट का पीएच 1.5 से 3.5 के बीच होता है। त्वचा का पीएच 5.4 से 5.9 के बीच होता है।
पदार्थों के मुताबिक पीएच स्तर
पीएच की सीमा 0-14 है। 7 से अधिक पीएच का मतलब है कि पदार्थ क्षारीय है। वहीं 7 से कम पीएच का मतलब है कि पदार्थ अम्लीय है। जब पीएच बिल्कुल 7 होता है तो यह इंगित करता है कि पदार्थ तटस्थ है। शुद्ध पानी का पीएच मान 7 होता है। अम्लीय घोल का पीएच 7 से कम होता है और क्षारीय घोल का पीएच 7 से अधिक होता है।
-इ.रि.सें.