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चुनाव पूर्व साख बनाने के लिए दलों के दांव

06:50 AM Jul 14, 2023 IST
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यश गोयल

राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों की ‘नेट प्रैक्टिस’ शुरू हो चुकी है। यूं तो राजस्थान में 1998 से अब तक जो विधानसभा चुनाव हुए, उनमें कांग्रेस पार्टी ने किसी भी प्रत्याशी को अपना मुख्यमंत्री घोषित करके चुनाव नहीं लड़ा। वर्ष 1998, 2003 और 2018 में जब भी कांग्रेस सत्ता में आई तब-तब विधायकों ने सीएलपी बैठक के बाद एक लाइन प्रस्ताव पारित कर पार्टी हाई कमांड (सोनिया गांधी) को अधिकृत किया कि वो मुख्यमंत्री का चयन करें। इसलिए तीन बार अशोक गहलोत को मौका मिला। विधानसभा चुनाव से पांच माह पहले कांग्रेस अध्यक्ष ने हाल ही में दिल्ली में राजस्थान के वरिष्ठ सदस्यों, मंत्रियों और विवादों में उलझे रहे सचिन पायलट की मौजूदगी में तय किया कि पार्टी को संगठित और नेताओं को एकजुट होकर चुनाव लड़ना होगा। अपने दोनों पैर के पंजों में दुर्घटना के बाद प्लास्टर बंधे और व्हीलचेयर पर बैठे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्चुअल बैठक में भाग लेकर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ अपनी सहमति व्यक्त की।
दिल्ली बैठक में संकेत देने की कोशिश हुई कि गहलोत और पायलट के बीच तीन साल से ‘सीएम कुर्सी’ के लिये चला आ रहा विवाद और मीडियाबाजी समाप्त हो गयी है। तय हुआ कि गहलोत की सफल योजनाओं के आधार पर चुनाव लड़ा जायेगा। पायलट की तीन मांगों में से दो गहलोत सरकार ने मान ली हैं। कांग्रेस में सितम्बर में चुनाव में जीतने वाले नेताओं को टिकट दे दिये जायेंगे। पार्टी हाई कमांड की बैठक बाद पायलट ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में स्वीकारा कि, ‘अशोक गहलोत जी मुझसे बड़े हैं, उनके पास अनुभव भी ज्यादा है। जब मैं राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष (2013-18) था तो मैंने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की। मुझे लगता है कि आज वह मुख्यमंत्री हैं। सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी और जनता किसी भी व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ काश! पायलट ये बात 2020 में उपमुख्यमंत्री रहते हुए मान लेते तो आज अच्छी स्थिति में होते।
विपक्ष में खड़ी भाजपा को जब से नये अध्यक्ष और चितौड़गढ़ के सांसद सीपी जोशी मिले तब से वे पूर्व पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनिया की जनाक्रोश यात्रा को भूल कर ‘विजय संकल्प’ के धरने, प्रदर्शन और सड़कों पर कांग्रेस विरोधी मुद्दे उठाकर गिरफ्तारियां देने में लगे हुए हैं। पिछले दिनों तो एक ही हफ्ते में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री की विशाल जनसभाएं मोदी सरकार के नौ साल की उपलब्धियों पर बालेसर, उदयपुर, और बीकानेर में क्रमश: करा दी गयीं। भाजपा को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा उठाये गये सरकार में फैले भ्रष्टाचार और एंटी इनकम्बेंसी के मुद्दे पर हार मिली। भाजपा ने तय किया कि वो भी गहलोत सरकार को चारों ओर से भ्रष्टाचार के मुद्दों, लॉ एंड आर्डर और मुस्लिम तुष्टीकरण पर घेरेगी। इसी को ध्येय बनाकर राजनाथ सिंह ने दावा किया कि मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल में उन पर और उनके किसी मंत्री पर एक भी करप्शन का आरोप नहीं लगा है, जबकि राजस्थान में केंद्र की स्कीमों और अन्य स्थानीय मामलों के बजट पर भ्रष्टाचार की बानगी है।
अमित शाह ने विपक्ष के 21 दलों के गठबंधन पर और सीधे राजस्थान मुख्यमंत्री पर आरोप मढ़ दिया कि गहलोत अपने बेटे वैभव को भी मुख्यमंत्री बनाने में व्यस्त हैं। कानून व्यवस्था पर शाह ने उदयपुर के कन्हैयालाल मर्डर केस का जिक्र करते हुए मंच से यह तक कह दिया कि केंद्रीय एजेंसी एनआईए ने आरोपियों को गिरफ्तार किया था तथा सरकार ने अभी तक इस केस के लिये एक ‘विशेष कोर्ट’ तक नहीं बनाई।
प्रधानमंत्री ने पिछले आठ-नौ महीनों में राजस्थान को हजारों करोड़ की विकास योजनाएं दीं। वहीं मोदी ने राजस्थान बीजेपी द्वारा आयोजित 7 पब्लिक रैलियों में भी राज्य के पूर्व, उत्तर, दक्षिण, और पश्चिम जिलों से विधानसभा चुनाव के बिगुल बजाये। बीकानेर के रैली में उन्होंने तो कांग्रेस को ‘लूट की दुकान’ और ‘झूठ का बाजार’ की संज्ञा दे दी। कहा, जो पैसा केंद्र भेजता है उस पर कांग्रेस का पंजा झपट्टा मार लेता है। भाजपा ने 2018 का राजस्थान चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के कारण और कांग्रेस द्वारा उठाए गए घोटालों और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर हारा था। जबकि भाजपा ने किसी को भी मुख्यमंत्री चेहरा नहीं बनाया था। मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता ने मोदी चेहरे पर राज्य के 25 सांसद (एक राएलपी-भाजपा गठबंधन का था) भाजपा की झोली में डाल दिये थे।
बीजेपी के दिग्गज नेता कहते हैं कि ये चुनाव मोदी सरकार के नौ साल की सफल योजनाओं, गरीब कल्याण और विकास के मुद्दों पर लड़ेंगे और सीएम प्रत्याशी को प्रोजेक्ट नहीं किया जायेगा। जातियों और वर्गों को ध्यान रखते हुए उदयपुर संभाग से ब्राह्मण नेता और सांसद सीपी जोशी को भाजपा का नया अध्यक्ष बनाया और सतीश पूनिया को केंद्र चुनाव समिति में नामित किया।
राजपूत समाज को लुभाने के लिये गैर-आरएसएस व बीजेपी के विधायक राजेंद्र सिंह राठौड़ को विपक्ष का नेता बनाया गया है। केंद्रीय जलमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने अभी हाल ही में सवाई माधोपुर में ये तक कह दिया था, ‘अगर आप लोग राजेंद्र सिंह का राज बना दो तो मैं 46000 करोड़ रुपये के राजस्थान के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ईआरसीपी को तुरंत बना दूंगा।’
वसुंधरा राजे प्रदेश के सभी मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ जनता रैली भी संबोधित कर रही हैं। राजस्थान से जुड़े रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जब से बालासोर ट्रेन दुर्घटना में व्यस्त हुए हैं तबसे वे राज्य की किसी भी पब्लिक मीटिंग्स में नहीं आ रहे हैं। उनका नाम भी सीएम चेहरे की रेस में रहता है।
कांग्रेस ने अपने संगठन को पुनर्जीवित करते हुए 25 जिला अध्यक्ष, 21 उपाध्यक्ष, 48 महासचिव और 121 सचिव नियुक्त किये हैं। इनमें से कई विस चुनाव के टिकट के दावेदार होंगे। वहीं राज्य बीजेपी ने विजय संकल्प के साथ 29 की जो कार्यकारिणी बनाई है, उनमें अलवर सांसद बाबा बालकनाथ को भविष्य का महत्वपूर्ण चेहरा माना जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सरकार की ओल्ड पेंशन स्कीम ने हर राज्य की सरकार को हिलाकर रखा हुआ है। इस मसले पर हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की सरकार विजयी हुई थी। गहलोत की 25 लाख रुपये तक की चिरंजीवी स्वास्थ्य स्कीम ने केंद्र की आयुष्मान योजना को पीछे छोड़ दिया है। कांग्रेस की महंगाई राहत की दस प्रमुख योजनाओं से अब तक 1.78 करोड़ परिवार सीधे-सीधे लाभान्वित हो चुके हैं और 7.56 करोड़ गारंटी कार्ड ले चुके हैं। बीजेपी के बड़े नेताओं ने सवाई माधोपुर में कांग्रेस की इन मुफ्त योजनाओं पर चिंतन भी किया और इनका तोड़ ढूंढ़ कर अपने चुनावी घोषणा-पत्र में कुछ नया करने में जुट गये हैं।
‘आप’ पार्टी ने भी राज्य के कई जिलों में ऑफिस खोलने शुरू कर दिये हैं। आप चूंकि पंजाब में सरकार में है इसलिये राजस्थान के सीमावर्ती गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर और जयपुर में सक्रिय है। राएलपी दल, जिसके वर्तमान में तीन एमएलए और एक एमपी हंै भी तीसरे दल के रूप में सक्रिय है। ट्राइबल पार्टी यूं तो गहलोत सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है मगर चुनाव वे अपने बलबूते पर लड़ेंगे। आरएलडी पार्टी से केवल एक विधायक है जिसे राज्यमंत्री बनाया हुआ है। वर्तमान 200 विधायक वाली विस में बीजेपी के वर्तमान में 70 विधायक हैं और कांग्रेस के 108, ऐसे में बीजेपी पूर्ण बहुमत का दावा करने जा रही है और कांग्रेस मिशन-156 को उद्देश्य बनाये हुए है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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