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देश के विकास में बाधक बनी तोंद

06:32 AM Aug 02, 2024 IST
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अंशुमाली रस्तोगी

मेरी तोंद का क्षेत्रफल फैल रहा है। कपड़े शरीर पर फंसने लगे हैं। कमर कमरा बनती जा रही है। कहीं आने-जाने का दिल नहीं करता। दफ्तर में लड़कियों के सामने ग्लानि-सी महसूस होती है। बढ़ती तोंद मुझमें ‘अंकल जी’ का भाव पैदा कर रही है। बीवी ने भी बार-बार टोकना शुरू कर दिया है– इसे अंदर करो।
तोंद अंदर करने के जितने जतन कर सकता हूं, कर रहा हूं। घर पर ही योग-व्यायाम शुरू कर दिया है। चाय बंद कर ग्रीन-टी पर आ गया हूं। मिठाई की तरफ देखता तक नहीं। नॉन-वेज का मोह भी त्याग दिया है। साइकिल खरीद ली है। सुबह-शाम इसे ही चलाता हूं। पैदल ही चलता हूं। लेकिन तोंद है कि काबू में नहीं आ पा रही।
बढ़ती तोंद मुझमें अवसाद–सा पैदा करने लगी है। दिन-रात इसी के बारे में सोचता रहता हूं। मैं देश और समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं लेकिन तोंद के कारण नहीं कर पा रहा। मैं देश से मोटापे के कोढ़ को जड़ से मिटा देना चाहता हूं। मोटापे ने कितनी ही बीमारियों को जन्म दिया है। कितने ही डॉक्टर्स की झोली भरी है। योग गुरु योग कराते-कराते थक गए लेकिन मोटापा देश से कम होने का नाम नहीं ले रहा।
मैं अपनी तोंद को देखकर अक्सर सोचता हूं कि मैंने कितने भूखों का खाना अकेले ही चबा डाला। कितनों की रोटी मैंने अकेले ही मार दी। खाना मेरे पेट में पड़ा-पड़ा मुझे जरूर गरियाता होगा। मुझे अपनी तोंद पर प्यार कम गुस्सा अधिक आता है। कभी-कभी तो मैं इसकी सूरत तक देखना नहीं चाहता। तोंद पर आकर जब शर्ट कसती है और बटन भी साथ छोड़ते लगते हैं तब मुझे क्या-क्या महसूस नहीं होता बयां करना मुश्किल है। तब दिल करता है कि इस गुब्बारे में अभी सुई चुभो दूं।
मेरी तोंद अभी कुछ एक सालों में ही बढ़ी है। यह पहले ऐसी न थी। ऋतिक की तरह ही फ्लैट थी। हर तरह का कपड़ा मुझ पर जंचता था। अपनी कमर को देख मुझे इस पर रश्क होता था। मेरी छरहरी फिगर के चर्चे पूरे मोहल्ले में थे। मुझसे लोग पूछते थे कि मैं तोंद को मेनटेन रखने के लिए क्या किया करता हूं।
तोंद व्यक्तित्व विकास में ही नहीं देश के विकास में भी बाधक है। तोंद-प्रधान व्यक्ति में फुर्ती कम चर्बी अधिक आ जाती है। देश-हित के निर्णय लेने में बढ़ा वजन बीच में आ जाता है। बात के वजन को तोंद का वजन कम कर देता है। दूसरे देशों के नेताओं-मंत्रियों को देख लीजिए कितने फिट दिखाई देते हैं। तोंद अंदर धंसी हुई और सीना निकला हुआ रहता है। लेकिन हमारे यहां नेताओं का आलस तोंद पर आकर ही टिक गया है।

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