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तीस्ता प्रबंधन के बहाने पेइचिंग का खेल

06:28 AM Jun 28, 2024 IST
तीस्ता प्रबंधन के बहाने पेइचिंग का खेल
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पुष्परंजन

कुल 315 किलोमीटर लंबी तीस्ता नदी सिक्किम, पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है, और ब्रह्मपुत्र में समाहित हो जाती है। तीस्ता पर भारत-बांग्लादेश के बीच कब समझौता होगा, किस देश को कितना पानी मिलेगा? फिलहाल यह साफ नहीं है। बांग्लादेश को 48 फीसदी तीस्ता का पानी चाहिए, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार की दलील है कि ऐसी स्थिति में उत्तर बंगाल के छह जिलों में सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी। बंगाल इसके लिए जब तैयार नहीं है, तो फ़िर तीस्ता समझौता कैसे परवान चढ़ेगा? इस सवाल का ठोस उत्तर देने से दिल्ली भी बच रहा है। शेख़ हसीना की हालिया दिल्ली यात्रा और उभयपक्षीय समझौतों से हम चाहे जितना खुश हो लें, लेकिन तीस्ता कहीं न कहीं कड़वाहट का कारण बन रहा है। बांग्लादेश में विपक्ष और वहां का मीडिया फुंका पड़ा है। उनका मानना है कि तीस्ता जल में हिस्सेदारी के बग़ैर सारे समझौते बेकार हैं।
तीस्ता जल समझौते को अंतिम रूप देने का मामला जनवरी, 2011 से अधर में लटका पड़ा है। बांग्लादेश और भारत के बीच प्रधानमंत्री स्तर की बैठकों में इसकी चर्चा होती है, शीघ्र समापन के आश्वासन के साथ बात आई-गई हो जाती है। अनुरोध और आश्वासन का सिलसिला समाप्त नहीं हुआ। बजाय इसके, घोषणा यह की गई कि एक भारतीय तकनीकी टीम जल्द ही बांग्लादेश का दौरा करेगी, ताकि बांग्लादेश के अंदर ‘तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन’ पर चर्चा की जा सके। ‘नदी संरक्षण और प्रबंधन’ से भारत का क्या अभिप्राय था? इस पर भारतीय विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने एक मीडिया ब्रीफिंग में बताया, ‘यह जल-बंटवारे के बारे में कम, बल्कि तीस्ता नदी के भीतर जल प्रवाह के प्रबंधन के बारे में अधिक है।’ बांग्लादेश के विश्लेषक मानते हैं कि तीस्ता जल-बंटवारे पर चर्चा को हाशिये पर छोड़ दिया गया। वो पूछते हैं, क्या तीस्ता जल बंटवारे को जान-बूझकर विषय से बाहर किया गया है? बांग्लादेश में तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन और पुनरुद्धार परियोजना (टीआरसीएमआरपी) पर चर्चा पिछले कुछ वर्षों से चल रही है। तीस्ता जल धारा को फिर से बहाल करने की इस मेगा परियोजना को चीन की वित्तीय और तकनीकी सहायता से क्रियान्वित किया जाना है। 2016 से ही चीन और बांग्लादेश इस मामले पर चर्चा कर रहे हैं। चीन के कूद पड़ने से ऐसा लगता है कि इस परियोजना में दिलचस्पी लेना भारत की मज़बूरी बन चुकी है। सितंबर 2016 में, बांग्लादेश जल विकास बोर्ड ने उत्तरी बांग्लादेश के ग्रेटर रंगपुर क्षेत्र में तीस्ता को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए चीन के पावर कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन के साथ एक ‘एमओयू’ पर हस्ताक्षर किए थे।
बांग्लादेश को तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन परियोजना के लिए लगभग 987.27 मिलियन डॉलर की आवश्यकता है। दिखावे के तौर पर बांग्लादेश ने विश्व बैंक, जापान, और दूसरी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग एजेंसियों से बात की। लेकिन बांग्लादेश जल संसाधन मंत्रालय के वरिष्ठ सचिव कबीर बिन अनवर ने जानकारी दी, कि चीन ने इस विशाल परियोजना की फंडिंग के वास्ते हामी भर दी है। तीस्ता बेसिन पर बसा रंगपुर से पंचगढ़ तक का इलाक़ा चीन के टारगेट में है, जहां उसे जल प्रबंधन के बहाने डाटा इकट्ठे करने हैं। बांग्लादेश का पंचगढ़ एक ऐसा सामरिक लोकेशन है, जो पूर्वोत्तर के चिकेन नेक (सिलीगुड़ी) से मात्र 67 किलोमीटर की दूरी पर है।
चिकेन नेक से लगे इलाके में चीनी कर्मियों की मौजूदगी सचमुच चिंता वाली बात है। तो क्या दिल्ली पर दबाव बनाने के वास्ते शेख़ हसीना यह खेल, खेल रही थीं? शेख़ हसीना संभवतः 8 से 14 जुलाई के बीच पेइचिंग की यात्रा पर रहेंगी। 24 जून, 2024 को सीपीसी सेंट्रल कमेटी के नेता लियु चिएनचाओ इस सिलसिले में ढाका आये थे। उन्होंने बांग्लादेश के विदेश मंत्री हसन महमूद से ढाका-पेइचिंग डेवलपमेंट काॅरपोरेशन, ब्रिक्स में बांग्लादेश को सदस्य बनाने, उभयपक्षीय व्यापार घाटे को दुरुस्त करने जैसे विषयों पर बात की, लेकिन तीस्ता पर अपडेट को लेकर किसी भी पक्ष ने मीडिया से सूचनाएं साझा नहीं कीं। अब जो दिल्ली में शेख़ हसीना की यात्रा को अभूतपूर्व उपलब्धि मान रहे थे, उन्हें इस पर ग़ौर करना चाहिए कि ढाका में चल क्या रहा है।
बांग्लादेश का थिंक टैंक मानता है कि तीस्ता नदी पर भारतीय बैराज, इंफ्रा, जलविद्युत परियोजनाएं नदी के प्रवाह में बाधाएं पैदा करने के वास्ते हैं। उनको शक है कि भारत, तीस्ता के पानी के उचित हिस्से से बांग्लादेश को वंचित करने के उपक्रम में है। लेकिन वे चीन की प्लािनंग पर ग़ौर नहीं करते। पावर चाइना तीस्ता पर ड्रेजिंग और दोनों तरफ तटबंध बनाकर नदी की चौड़ाई को कम करने और उसकी गहराई बढ़ाने का प्रस्ताव दे चुका है। नदी के दोनों किनारों को पाटकर 170 वर्ग किलोमीटर भूमि को पुनः प्राप्त करना, उस भूमि पर आवास और औद्योगिक पार्क बनाना भी इस मेगा परियोजना का लक्ष्य है। वर्तमान में, तीस्ता नदी की अधिकतम चौड़ाई 5.1 किलोमीटर और औसत चौड़ाई 3.1 किलोमीटर है। टीआरसीएमआरपी परियोजना के तहत यह चौड़ाई घटाकर एक किलोमीटर कर दी जाएगी। इससे तीस्ता नदी के वेग और जल वहन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
अमेरिका के पेनसिल्वेनिया स्थित कॉमनवेल्थ विश्वविद्यालय में भूविज्ञान और पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. एमडी खलीकुज्जमां के एक अध्ययन के अनुसार, ‘नदी का क्रॉस-सेक्शन कम होने के कारण नदी का वेग बढ़ जाएगा। नतीजतन, जब बरसात के मौसम में पानी का प्रवाह बहुत बढ़ जाता है, तो दोनों किनारों पर कटाव की प्रवृत्ति बढ़ जाएगी। नदी के दोनों किनारों पर तटबंधों के कारण तीस्ता की अधिकांश सहायक नदियां और वितरिकाएं मुख्य धारा से कट जाएंगी। इससे जलग्रहण क्षेत्र में भूजल स्तर कम हो जाएगा, जिससे पीने योग्य पानी और उथले ट्यूबवेल के माध्यम से खींचे जाने वाले सिंचाई के पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी।’ मालूम नहीं, शेख़ हसीना के सलाहकार इस तथ्य से कितना सरोकार रखते हैं।
तीस्ता नदी परियोजना के चक्कर में बांग्लादेश एक नाजुक कूटनीतिक दुविधा में फंस चुका है। शेख़ हसीना की चीन यात्रा में जो कुछ होने जा रहा है, वह भारत की भू-राजनीतिक व सुरक्षा जोखिमों के बारे में चिंताएं पैदा करता है। तीस्ता प्रबंधन परियोजना समझौते पर चीन क्या करेगा, इस पर सबकी निगाहें हैं। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा नेे चीन को तीस्ता परियोजना से दूर रखने की ताकीद बांग्लादेश से की है। कुछ साल पहले, बांग्लादेश ने कॉक्स बाजार के पास बंगाल की खाड़ी में सोनादिया गहरे समुद्र बंदरगाह पर परियोजना को रद्द कर दिया था, जिसे चीन बनाने के लिए उत्सुक था। भारत इसे लेकर असहज था। विश्लेषण करें कि इस बार भी शेख़ हसीना सकारात्मक निर्णय लेंगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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