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काहे की खटपट, सबका अपना-अपना बजट

06:35 AM Aug 03, 2024 IST
काहे की खटपट  सबका अपना अपना बजट

सहीराम

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बजट आया है जनाब, कोई दोस्त थोड़े ही आया है, पड़ोसी या रिश्तेदार थोड़े ही आया है कि भागकर जफ्फी पा लो, गले लग जाओ, स्वागत करो। वैसे अगर बजट भी अपनों की तरह ही आए तो कितना अच्छा रहे। नहीं? बजट राहत की तरह से आए। बजट खुशी की तरह से आए। बजट खुशखबरी की तरह से आए। बजट उम्मीद की किरण की तरह से आए तो कितना अच्छा लगे। वह किसी त्योहार की तरह आए तो कितना भला लगे कि बजट आया है तो घर में खीर-चूरमा बन रहा है, बच्चों को चाव चढ़ा हुआ है, हलवे की खुशबू आ रही है। अरे हां, हलवे से याद आया, बजट तैयार होने पर हलवे की रस्म वहां भी होती है। लेकिन रस्म में और त्योहार में फर्क तो होता ही है न।
खैर, पहले बजट सस्पेंस की तरह से आता था, पर अब तो वह वैसे भी नहीं आता। अब तो सबको पता ही होता है कि कैसा बजट आना है। अब उसे लेकर कोई उत्सुकता नहीं होती। अब तो वह किसी आशंका की तरह से आता है। नाउम्मीदी की तरह से आता है। फिर भी देख लो जी, बजट आया है। उसे टीवी पर देखो, उसे अखबारों में पढ़ो। उसे विशेषज्ञों से समझो। देख लो किसी तरह समझ में आ जाए तो!
सरकार बजट लेकर आती है। यह उसका काम है। सो बजट पेश होते समय सत्ता पक्ष को ताली बजानी होती है और अच्छा बताना होता है। एकदम श्रेष्ठ! गरीबों के लिए बना बजट बताना पड़ता है। किसानों के लिए बना बजट बताना पड़ता। किसान आंदोलन ने एक काम तो जरूर किया जी कि अब देश में जो कुछ होता है, वह किसानों के लिए ही होता है। लेकिन ऐसा सिर्फ दावा होता है, होता कितना है इस सच से किसान भी वाकिफ हैं। फिर नंबर आता है विपक्ष का। उसे बजट को अमीरों का बजट बताना पड़ता है। बताना पड़ता है कि वह गरीबविरोधी है। सबका अपना-अपना बजट होता है अर्थात‍् सबके लिए बजट का अपना-अपना अर्थ होता है। मसलन दुकानदारों के लिए बजट का अर्थ होता है कि चीजों की कीमतें बढ़ा दो। इस मामले में पनवाड़ी और सब्जी बेचने वाले से लेकर बड़े-बड़े शोरूमों के दुकानदार सब समान होते हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। वे इस सहज ज्ञान से चलते हैं कि बजट आया है तो कीमतें तो बढ़नी ही हैं।
मध्यवर्गीय व्यक्ति की नजर इस पर होती है कि आयकर की सीमा बढ़ी या नहीं। होम लोन या फिर दूसरे लोन सस्ते हुए या नहीं। नौजवान बजट में रोजगार के अवसर ढूंढ़ता है। छात्र देखता है कि शिक्षा लोन की क्या स्थिति है। किसान बस इसी में खुश रहता है कि सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक सब तरफ किसान-किसान हो रही है। क्योंकि वह जानता है कि मिलना तो उसे कुछ है नहीं।

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