असमानता का सौंदर्य
कन्फ्यूशियस अपने जीवन में शिष्यों के साथ अक्सर लंबी यात्राओं पर निकलते रहे हैं। साथ में उनके शिष्य रहते थे और वे उनके साथ जीवन के गहन अनुभवों पर चर्चा किया करते थे। सही मायनों में वे इस तरह उन्हें जीवन के यथार्थ बोध से अवगत भी कराते थे। रास्ते में एक गांव से गुजरते हुए उन्होंने वहां के एक बुद्धिमान बालक के बारे में खूब सुना था। उन्होंने बालक से मिलने की सोची। कन्फ्यूशियस को वार्तालाप में उस बालक ने प्रभावित किया। उन्होंने उस बालक से पूछा, ‘विश्व में मनुष्यों के बीच बहुत तरह की असमानताएं हैं। कई तरह के भेदभाव हैं। उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?’ बालक ने उत्तर दिया, ‘ऐसा करने की आवश्यकता क्यों है? यदि हम पर्वतों को तोड़कर उन्हें समतल कर देंगे तो ऋतुचक्र प्रभावित होगा। उस इलाके के पर्यावरण पर असर होगा। कई तरह के जीव-जंतुओं का आश्रय समाप्त हो जाएगा। अनेक तरह की वनस्पतियां खत्म हो जाएंगी। फिर नदियां कैसे निकलेंगी? फिर मछलियां कैसे जीवित रहेंगी? विश्व इतना विशाल और विस्तृत है कि ये असमानताएं ही उसे पूर्णता प्रदान करती हैं। असमानता ही तो समानता के सौंदर्य का बोध कराती हैं। दरअसल, असमानता और विसंगतियों में ही संसार की खूबसूरती है।’ बालक की बात सुनकर कन्फ्यूशियस और उनके शिष्य बहुत प्रभावित हुए।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा