शीशा हो या संकल्प आखिर टूट ही जाता है
राकेश सोहम्
नये साल के आगमन के साथ अधुनातन युवा पीढ़ी थिरकते हुए ‘न्यू ईयर रिजॉल्यूशन’ का राग अलापने लगती है। उनके भोले-भाले माता-पिता, शब्दकोश पर इसका हिंदी मायना खोजकर प्रसन्न होते हैं कि रिजॉल्यूशन यानी संकल्प। नववर्ष की पहली सुबह अपने इष्टदेव का धन्यवाद अदा करते हैं कि अच्छा हुआ, उनके बच्चे को नेक बुद्धि तो आई। फिर, सुबह से लेकर देर दोपहर तक वे अपने लाड़ले को नींद से जगाते हैं। संकल्प की दुहाई देते हैं और मामला वर्ष के अंत पर टलता चला जाता है।
चिंतकों के अनुसार, पूरी दुनिया में संकल्प ही हैं जो सबसे अधिक लिए और तोड़े जाते हैं, गोया कि संकल्प होते ही हैं तोड़ने के लिए। संकल्प तोड़ने में मज़ा है। एक बेवड़ा, अब न पियूंगा... कभी नहीं पियूंगा... की रट लगाता हुआ बहकने तक गटकता जाता है। बेचारा आशिक, तेरी गलियों में न रखेंगे क़दम, आज के बाद... गुनगुनाता हुआ माशूका की पीछे वाली गली से गुजरने लगता है। डरा हुआ ईमानदार, घूसखोरी छोड़ने का संकल्प लेता है और मुफ्तखोरी के आगे फिसल जाता है। मिठास का परहेजी और संकल्पित मधुमेह पीड़ित, मज़े से शुगर-फ्री के चटखारे लेता है। किसी मसखरे के अनुसार, शीशा हो या संकल्प, टूट जाता है।
नेताओं के संकल्प को कौन नहीं जानता। नेताई पद की शपथ, संकल्प लेना ही है। पद की गरिमा और जनता के विकास का संकल्प बड़ा नाजुक होता है। लेते ही टूट जाता है। शहरी विकास का संकल्प, सड़कों की खुदाई के बाद टूट जाता है। एक दल में लिया गया संकल्प, दलबदल के साथ टूट जाता है। नेताई सभाओं में भोली जनता के सामने लिया गया संकल्प, चुनाव जीतने के बाद कहां याद आता है? हालांकि, बिना संकल्प और बिना आश्वासन के नेता अच्छा नहीं लगता। उन्हें अपनी गरिमा और व्यक्तिगत विकास का संकल्प लेना ही पड़ता है। ऐसे संकल्प उनके आजीविका के साधन होते हैं। संकल्प को पूरा करने में जिजीविषा की कमी आड़े आती है। लोकमन बाबू में भरपूर जिजीविषा है। वे बिना संकल्प कोई काम नहीं करते। याचक से संकल्प लेकर काम निपटाते हैं।
बहरहाल, मैं भी हर साल संकल्प लेता हूं कि सामाजिक सरोकारों पर लिखूंगा। कमजोर के साथ खड़ा रहूंगा। लेकिन, जहां बोलना चाहिए वहां चुप्पी साध जाता हूं। मतलब की बात जानबूझकर भूल जाता हूं। एक पुराना फ़िल्मी गीत, संकल्प की नियति को बखूबी बयां करता है- कसमें वादे प्यार वफा सब, बातें हैं बातों का क्या...?