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नर हो न निराश करो मन को

08:03 AM Jul 01, 2024 IST
नर हो न निराश करो मन को
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रेनू सैनी

आप पहला कदम उत्साह और आशा भरा बढ़ाएंगे तो पूरा मार्ग हंसते-हंसते कट जाएगा। वहीं यदि आप निराशा भरे थके कदमों से मंज़िल की ओर बढ़ेंगे तो बीच में ही थक जाएंगे, टूट जाएंगे और गलत मार्ग पर भटक जाएंगे। आप जानते हैं कि जीवन में प्रकृति द्वारा प्राप्त सबसे खूबसूरत नियामत क्या है? वह है आशा। आशा प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ऐसी धुरी है जो सब कुछ मिट जाने पर भी उसके लिए सब कुछ अर्जित करने की सामर्थ्य रखती है। वहीं निराशा एक ऐसी मनोदशा है जो व्यक्ति को मृतप्राय कर देती है। उसके सोचने-समझने की शक्ति क्षीण कर देती है और उसे मृत्यु की ओर धकेल देती है।
हालांकि, निराशा एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है। यह व्यक्ति के अंदर निम्न कारणों से उत्पन्न हो सकती है :-
मनचाही वस्तुओं की प्राप्ति न होना। किसी प्रिय का बिछुड़ जाना या मृत्यु को प्राप्त हो जाना। कार्य में असफलता प्राप्त होना। बीमारी के कारण। एकाएक अनेक समस्याओं का आना।
परेशानी, समस्या, असफलता, बीमारी के समय निराशा होना एक नैसर्गिक भाव है। अगर यह थोड़ी देर के लिए होती है तो कोई बुराई नहीं है। लेकिन अगर यह लंबे समय तक व्यक्ति के अंदर व्याप्त रहे तो पूरा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। निराशा सबसे पहले व्यक्ति की मानसिक दशा को प्रभावित करती है और इसके बाद धीरे-धीरे उसके शरीर को अपनी गिरफ्त में जकड़ने लगती है। निराशा से व्यक्ति को निम्न समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं :-
आत्मविश्वास का लड़खड़ा जाना। खाने से विरक्ति होना। किसी से बात करने की इच्छा न होना। सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने से बचना। लोगों का सामना करने से बचना।
मुंशी प्रेमचंद कहते हैं कि, ‘निराशा चारों ओर अंधकार बनकर दिखाई देती है।’ निराशा एक ऐसी भंवर है जिसमें व्यक्ति दिन-प्रतिदिन डूबता जाता है और अंत में उसी में डूब कर विलीन हो जाता है। इसलिए निराशा को अपने व्यक्तित्व का अंग बनने से बचना चाहिए।
ऋषभ पंत क्रिकेट जगत का एक जाना-पहचाना सितारा है। उन्होंने अपने अब तक के कॅरिअर में क्रिकेट में अनेक सफलताएं अर्जित की हैं। लेकिन समय सदा एक-सा नहीं रहता। वर्ष 2022 के एक कार हादसे में वे मौत के मंुह में जाने से बाल-बाल बचे। उनके घुटने एवं कलाइयों में बहुत चोटें आईं। क्रिकेट से उनकी दूर बन गई। ऋषभ पंत के जीवन की धुरी क्रिकेट ही था। वे सोते-जागते क्रिकेट के ही सपने देखते थे। अब क्रिकेट खेलना मुश्किल था। धीरे-धीरे वे जीवन से निराश होते गए। लेकिन एक दिन उन्होंने स्वयं से सवाल किया कि यदि मैं दिन-प्रतिदिन निराश होकर बिना कुछ किए ऐसे ही पड़ा रहा तो मेरा क्रिकेट खेलना जरूर बंद हो जाएगा। बस उसी दिन से उन्होंने निराशा का चोला उतार फेंका और अपने अंदर आशा का संचार किया। उस दिन उन्होंने एक्सीडेंट होने के बाद से पहली बार क्रिकेट खेला। उन्हें उस दिन थोड़ी सी परेशानी हुई। लेकिन फिर वे नियम से क्रिकेट का अभ्यास करने लगे। धीरे-धीरे उनकी चोट ठीक होती रही और क्रिकेट भी सुधरता रहा। अपने व्यक्तित्व से निराशा को दूर फेंकने के कारण वर्ष 2024 में उन्होंने क्रिकेट मंे जोरदार वापसी की और आईपीएल एवं टी-20 विश्वकप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस तरह आशा, श्रम एवं अभ्यास ने उनके अंदर से निराशा के भावों को दूर कर दिया।
दुनिया में कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जिसे निराशा का सामना न करना पड़ा हो। लेकिन वह निराशा कुछ देर के लिए होनी चाहिए। अगर फिर भी व्यक्ति स्वयं को संभाल नहीं पा रहा है तो उसे निम्न बातों का नियमित पालना करना चाहिए ः-
सुबह जल्दी उठना। नियमित व्यायाम करना। सकारात्मक पुस्तकें पढ़ना और इंटरनेट पर सकारात्मक एवं प्रेरक वीडियो देखना। नि:स्वार्थ भाव से जरूरतमंद लोगों की मदद करना। अपने कार्य का प्रतिदिन अभ्यास करना। श्रम से अपने कार्य को करने का प्रयास करना।
अगर इसके बाद भी आप निराशा अनुभव करें तो इस बात को सदैव याद रखें कि आशा सूर्यमुखी का पुष्प है जो सदैव सूर्य की ओर देखता है। इसके विपरीत निराशा एक ऐसी अंधेरी सुरंग है जिसमें यदि एक बार प्रवेश कर लिया जाए तो व्यक्ति गहन अंधकार की ओर बढ़ता जाता है और फिर उसी मंे विलुप्त हो जाता है। आशा संजीवनी है जो मृत होते व्यक्ति मंे भी प्राणों का संचार करने की सामर्थ्य रखती है, वहीं निराशा एक ऐसा विष है जो किसी भी व्यक्ति को मृतप्राय कर देती है। अब निर्णय आपको करना है कि आपको आशा के संग रहना है या फिर निराशा का दामन थामना है। जब भी निराश होने लगो तो मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को गुनगुनाना मत भूलो कि, ‘नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो।’

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