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प्रदूषण से जंग

06:52 AM Aug 31, 2024 IST
प्रदूषण से जंग
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यह खबर उत्साहवर्धक है कि भारत में सूक्ष्म कणों से पैदा होने वाले जानलेवा प्रदूषण में गिरावट आई है। लेकिन अभी जीवन प्रत्याशा घटाने वाले प्रदूषण को लेकर जारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की हालिया वार्षिक रिपोर्ट ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक-2024’ बताती है कि भारत में साल 2021 की तुलना में 2022 के वायु प्रदूषण में 19.3 फीसदी की कमी आई है। हालांकि, यह उपलब्धि मौजूदा हालात में बहुत बड़ी तो नहीं कही जा सकती है, लेकिन यह बात उत्साहवर्धक है कि प्रत्येक भारतीय की जीवन प्रत्याशा में इक्यावन दिन की वृद्धि हुई है। हालांकि, हम अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं,लेकिन एक विश्वास जगा है कि युद्ध स्तर पर प्रयासों से भयावह प्रदूषण के खिलाफ किसी हद तक जंग जीती भी जा सकती है। लेकिन इसके साथ ही ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक-2024’ में यह भी चेताया गया है कि यदि भारत में डब्ल्यूएचओ के वार्षिक पीएम 2.5 के सांद्रता मानक के लक्ष्य पूरे नहीं होते तो भारतीयों की जीवन प्रत्याशा में करीब साढ़े तीन साल की कमी आने की आशंका पैदा हो सकती है। दरअसल, पीएम-2.5 हवा में विद्यमान ऐसे सूक्ष्म कण होते हैं जो हमारे श्वसनतंत्र पर घातक प्रभाव डालते हैं। उल्लेखनीय है कि एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की वार्षिक रिपोर्ट में उल्लेखित प्रदूषण में आई गिरावट की वजह अनुकूल मौसम संबंधी परिस्थितियां बतायी गई हैं। हालांकि, हकीकत यह भी है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिये चलायी जा रही कई योजनाओं के सकारात्मक परिणामों का भी इसमें योगदान रहा है। खासकर भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत जिन शहरों को शामिल किया गया था, वहां भी पीएम-2.5 सांद्रता में गिरावट देखी गई है। वहीं स्वच्छ ईंधन कार्यक्रम का सकारात्मक प्रभाव प्रदूषण नियंत्रण पर नजर आया है। इससे भारत के रिहाइशी इलाकों में कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिली है। ऐसी योजनाओं को पूरे देश में लागू करने का सुझाव भी दिया गया है।
बहरहाल, हमें वर्ष 2022 के उत्साहजनक परिणामों के सामने आने के बाद व्यापक लक्ष्यों के प्रति उदासीन नहीं होना है। यह एक लंबी लड़ाई है और इसमें सरकार व समाज की सक्रिय भागीदारी जरूरी है। हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि सरकारों के भरोसे ही लगातार गहराते पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है। राष्ट्रीय राजधानी में हर साल ठंड की दस्तक के बाद पराली जलाने और दिवाली पर पटाखे फोड़ने के बाद जो प्रदूषण का बड़ा संकट खड़ा होता है, उसमें हम अपनी जिद व लापरवाही की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हम न भूलें कि देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की गिनती लगातार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में होती रही है। दरअसल, पीएम-2.5 कणों की सांद्रता बढ़ाने में हमारी लापरवाही की बड़ी भूमिका होती है, जिसमें सड़कों पर बढ़ते वाहनों का दबाव भी शामिल है। जिसके मूल में हमारी लचर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी है। हालांकि, राजधानी समेत कई अन्य राज्यों में मेट्रो ट्रेन शुरू होने के बाद प्रदूषण में काफी कमी आई है। इस दिशा में हमें दीर्घकालीन नीतियों के बारे में सोचना होगा। हमारी कोशिश हो कि घनी आबादी के बीच चलायी जा रही औद्योगिक इकाइयों को शहरों से दूर स्थापित किया जाए। हमारे उद्यमियों को भी जिम्मेदार नागरिक के रूप में प्रदूषण नियंत्रण में योगदान देना चाहिए। नीति-नियंताओं को सोचना चाहिए कि प्रदूषण में अप्रत्याशित वृद्धि के बाद दिल्ली आदि शहरों में चलाये जाने वाले ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान यानी ग्रेप जैसी व्यवस्था को नियमित रूप से लागू क्यों नहीं किया जा सकता। हालिया कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि बढ़ता प्रदूषण नवजात शिशुओं तथा बच्चों की जीवन प्रत्याशा पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। निस्संदेह, लगातार जहरीली होती हवा से मुक्ति नीति-नियंताओं की प्राथमिकता में शामिल होनी चाहिए। ऐसे में हमें पराली के निस्तारण, औद्योगिक कचरे के नियमन तथा कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईंधन पर रोक लगाने जैसे फौरी उपाय तुरंत करने चाहिए। ऐसे तमाम प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करने की जरूरत है जो हमारे जीवन पर संकट पैदा कर रहे हैं।

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