काम्यकेश्वर तीर्थ पर शुक्ल सप्तमी के दिन स्नान करने से मिलता है मोक्ष
कुरुक्षेत्र, 5 दिसंबर (हप्र)
गांव कमोदा के श्री काम्यकेश्वर महादेव मंदिर व तीर्थ पर मार्गशीर्ष माह में शुक्ल सप्तमी मेला लगेगा। गीता महोत्सव के पावन अवसर पर 8 दिसंबर को पुण्य योग में शुक्ल सप्तमी पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति के साथ हर की पौड़ी (हरिद्वार) जितना पुण्य मिलेगा। ग्रामीणों द्वारा मेले की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं। तीर्थ में स्वच्छ जल भरा गया है और मंदिर को लड़ियों से सजाया जा रहा है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार रविवारीय शुक्ल सप्तमी के दिन तीर्थ में स्नान करने से मोक्ष व पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। महर्षि पुलस्त्य और महर्षि लोमहर्षण ने वामन पुराण में काम्यकवन तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन किया है। इसमें बताया कि इस तीर्थ की उत्पत्ति महाभारत काल से पूर्व की है। वामन पुराण के अध्याय दो के 34वें श्लोक के काम्यकवन तीर्थ प्रसंग में स्पष्ट लिखा है कि रविवार को सूर्य भगवान पूषा नाम से साक्षात रूप से विद्यमान रहते हैं। इसलिए वनवास के समय पांडवों ने इस धरा को तपस्या हेतु अपनी शरणस्थली बनाया। द्यूत-क्रीड़ा में कौरवों से हारकर अपने कुल पुरोहित महर्षि धौम्य के साथ 10 हजार ब्राह्मणों के साथ यहीं रहते थे। उनमें 1500 के लगभग ब्राह्मण श्रोत्रिय-निष्ठ थे, जो प्रतिदिन वैदिक धर्मानुष्ठान एवं यज्ञ करते थे।
ग्रामीण सुमिद्र शास्त्री ने बताया कि मंदिर में मार्गशीर्ष की शुक्ल सप्तमी पर 8 दिसंबर को रविवारीय शुक्ल सप्तमी मेला लगेगा। उनके अनुसार इसी पावन धरा पर पांडवों को सांत्वना एवं धर्मोपदेश देने हेतु महर्षि वेदव्यास, महर्षि लोमहर्षण, नीतिवेत्ता विदुर, देवर्षि नारद, वृहदर्श्व, संजय एवं महर्षि मारकंडेय पधारे थे। द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण अपनी धर्मपत्नी सत्यभामा के साथ पांडवों को सांत्वना देने पहुंचे थे।
पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने के लिए और तीसरी बार जयद्रथ के द्रोपदी हरण के बाद सांत्वना देने के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण काम्यकेर्श्वर तीर्थ पर पधारे थे। पांडवों के वंशज सोमवती अमावस्या, फल्गू तीर्थ के समान शुक्ल सप्तमी का इंतजार करते रहते थे।