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आरक्षण की आग में झुलसता बांग्लादेश

07:58 AM Jul 19, 2024 IST
आरक्षण की आग में झुलसता बांग्लादेश
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पुष्परंजन
ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग की वेबसाइट खोलते ही एक सूचना सामने आ जाती है, ‘सारे वीज़ा अप्लीकेंट नोट कर लें, आज 18 जुलाई को हमारा ‘आईवीएसी सेंटर’ बंद है।’ गुरुवार को सारे दूतावास और वाणिज्यदूत कार्यालय बंद ही रहे। इन देशों ने अपने नागरिकों को सावधान रहने, और फ़िलहाल बांग्लादेश नहीं आने की सलाह दे रखी है। कल 18 जुलाई को देशव्यापी बंद काफी हिंसक रहा है। ढाका उत्तर में पुलिस फायरिंग में चार लोगों की मौत हुई है। मीरपुर में एक छात्र और आवामी लीग का एक कार्यकर्ता मारा गया। देशव्यापी हिंसा में जिस पैमाने पर लोग घायल हुए हैं, मृतकों की संख्या बढ़ सकती है। बांग्लादेश टेलीविज़न सेंटर को आग के हवाले कर दिया गया। छात्रों के दो समूहों के बीच देशव्यापी दंगा यदि आपने सुना, और देखा नहीं होगा, तो बांग्लादेश सबसे बड़ा उदाहरण है।
पूरे देश में गुरुवार को रेल और सड़क परिवहन सेवाओं को एहतियातन बंद कर दिया गया था। कोटा विरोधी प्रदर्शनकारियों ने ढाका के मोहाखाली में रेलवे लाइन को अवरुद्ध कर दिया था। देश के दूसरे हिस्से में भी रेल सेवा सुरक्षित नहीं दिखी। फार्मगेट इलाके में मेट्रोरेल पर हमला कर आगजनी की गई। काफी नुकसान के बाद हसीना सरकार ने हठ योग तोड़ा है। कानून मंत्री अनिसुल हक ने कहा कि मैं और शिक्षा मंत्री मोहिबुल हसन चौधरी, कोटा सुधार प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत के लिए कभी भी तैयार हैं। सरकार कोटा सुधार के खिलाफ नहीं है, हमने जस्टिस खंडेकर दिलीरुज्जमां की अध्यक्षता में न्यायिक समिति का गठन भी कर दिया है।
18 दिनों से चल रहे आंदोलन में ‘ऑफ़ द रिकार्ड’ 50 लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया है। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए बीजीबी (बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश) को चार जिलों ढाका, बोगरा, राजशाही और चटगांव में तैनात किया गया था। चटगांव, राजशाही, रंगपुर, बोगरा, मैमनसिंह समेत कई जगहों पर बड़े पैमाने पर झड़पें हुई हैं। चटगांव के शोलशहर और मुरादपुर में संस्कार, छात्र लीग और जुबो लीग के बीच हिंसक झड़पों में तीन लोगों की मौत हो गई। हिंसक प्रदर्शनों की चपेट में केवल छात्र ही नहीं, राहगीर और कारोबारी भी आ रहे हैं।
‘छात्र लीग’, सत्तारूढ़ आवामी लीग की छात्र शाखा है, जिसकी स्थापना 4 जनवरी, 1948 को शेख मुजीबुर्रहमान ने की थी, तब उसका नाम, ‘ईस्ट पाकिस्तान स्टूडेंट लीग’ था। उसे काउंटर करने के वास्ते ‘बांग्लादेश जातीयताबादी छात्र दल’ (जेसीडी) सड़कों पर दिखता है, जिसकी स्थापना, 1 जनवरी 1979 को बीएनपी के तत्कालीन नेता जनरल ज़ियाउर्रहमान ने की थी। जमाते इस्लामी की छात्र शाखा, ‘बांग्लादेश इस्लामी छात्र शिबिर’ समय-समय पर इनके साथ खड़ी दिखती है। छात्र आंदोलनकारियों के बहाने क्या खालिदा जिया की बीएनपी को अपना खोया जनाधार मिलेगा? विश्लेषक इसका उत्तर ढूंढ़ रहे हैं।
बांग्लादेश के क़ानून मंत्री अनिसुल हक़ बोलते हैं, ‘विपक्षी जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के छात्र विंग के सदस्य, आरक्षण विरोधी आंदोलन में कूद गए हैं। ये यही लोग हैं जिन्होंने हिंसा की शुरुआत की है। कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई सात अगस्त को होनी है। छात्रों को भी मौक़ा दिया गया है कि वो कोर्ट के सामने अपनी दलील रख सकें।’ सवाल यह है कि जब देशव्यापी आग लगी हो, तो सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर तत्काल सुनवाई क्यों नहीं कर सकती?
छात्र आंदोलन की आग में घी का काम शेख़ हसीना के हालिया बयान ने भी किया है। शेख़ हसीना ने आरक्षण का विरोध करने वालों के लिए ‘रज़ाकार’ शब्द का इस्तेमाल किया था। ‘रज़ाकार’ शब्द का इस्तेमाल कथित तौर पर उन लोगों के लिए क्या जाता है, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था। कई छात्र नेताओं का कहना है कि शेख़ हसीना ने ‘रजाकार’ से तुलना कर हमारा अपमान किया है।
बांग्लादेश में आरक्षण की व्यवस्था मुक्ति संग्राम के बाद शुरू हुई। 5 सितंबर, 1972 को एक सरकारी आदेश में सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति में 20 प्रतिशत योग्यता कोटा, 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानी कोटा, और 10 प्रतिशत पीड़ित महिला कोटा की शुरुआत की गई। शेष 40 प्रतिशत जिला कोटा रखा गया। 1976 में योग्यता के आधार पर भर्ती को बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया। 1985 में प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी पदों के लिए 45 प्रतिशत योग्यता आधारित भर्ती नियम लागू किया गया, शेष 55 प्रतिशत कोटे से नियुक्त किये जाते हैं। बाद में दिव्यांगों के लिए 1 फीसदी जोड़ने पर कुल कोटा 56 फीसदी हो जाता है। यानी हर 100 पदों पर 56 प्रतिशत लोगों को कोटे से लिया गया।
नाराजगी की एक और बड़ी वजह यह थी कि कोटे के अभ्यर्थी नहीं मिलने पर पद खाली रखने पड़ते थे। सरकार ने जनरल कोटे से पदों को भरने की बात की थी, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। युवाओं ने 2018 में भी ‘कोटा सुधार आंदोलन’ शुरू किया था। उसके हिंसक और बेकाबू होने पर शेख हसीना सरकार तब भी झुकी थी। 11 अप्रैल, 2018 को शेख हसीना ने संसद में कहा, ‘जब कोई कोटा नहीं चाहता तो कोटा नहीं होगा, कोटा सिस्टम अमान्य है।’ 2021 में कोटा रद्द करने के खिलाफ लोग कोर्ट चले गए। एक जुलाई, 2024 को ढाका हाईकोर्ट के जस्टिस केएम कमरुल कादर और जस्टिस खिजिर हयात की बेंच ने अधिकारियों को आरक्षण व्यवस्था फिर से लागू करने का आदेश दिया, जिसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
संभवतः दुनिया के किसी भी देश में स्वंत्रतता सेनानियों के बेटे-बेटियों, पोते-पोतियों को आरक्षण देने की सुविधा नहीं है। यह असामान्य और अनोखी व्यवस्था है, जिस पर बांग्लादेश में शुरू में कभी सवाल नहीं उठाया गया था। मुक्तियुद्ध मामलों के मंत्री मुज़्ज़म्मिल हक़ ने 25 मार्च, 2021 को 1 लाख 47 हज़ार, 537 स्वतंत्रता सेनानियों की सूची जारी की थी। इनमें से लगभग 50 हज़ार की इंट्री संदेहास्पद बताई जाती है। मुक्तिकामियों की तीन पीढ़ियों ने इन सुविधाओं का लाभ उठाया, अब चौथी और पांचवीं पीढ़ी को यही सुविधा देने की कवायद के पीछे शेख़ हसीना का वोट बैंक है। हसीना इसे स्थायी और भविष्य के लिए समर्पित देखना चाहती हैं। दरअसल, छात्र आंदोलन के दावानल को देखते हुए सत्तारूढ़ अवामी लीग को अपना सिंहासन डोलता नज़र आने लगा है। आवामी लीग महासचिव ओबैदुल क़ादर ने कहा भी, ‘हमारे अस्तित्व पर हमला किया गया है, हमें धमकी दी गई है। हमें इस स्थिति से निपटना होगा। कार्यकर्ता वार्ड दर वार्ड तैयार हो जाएं।’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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