Balochistan Temple : सती माता का शक्तिपीठ और मुस्लिमों के लिए 'नानी का हज'... बेहद रहस्यमयी है बलूचिस्तान का मंदिर
चंडीगढ़, 21 मई (ट्रिन्यू)
Balochistan Temple : हिंगलाज भवानी मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शक्तिपीठ है। यह मंदिर कराची से लगभग 250 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में, हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है। यह स्थान न केवल हिंदुओं के लिए अत्यंत श्रद्धा का केंद्र है बल्कि यहां के स्थानीय मुस्लिम जनजातियों के लिए भी गहरे सम्मान का प्रतीक है। यही कारण है कि इसे 'नानी का हज' कहा जाता है और मुस्लिम श्रद्धालु भी यहां दर्शन के लिए आते हैं।
यहां गिरा था माता सति का मस्तक
हिंगलाज भवानी मंदिर हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को खंडित कर पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिराया। जिस स्थान पर सती माता का ब्रह्मरंध्र (सिर का हिस्सा) गिरा, वह स्थान हिंगलाज कहलाया। इसे शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। माता हिंगलाज को शक्ति का उग्र रूप माना जाता है। यह मंदिर एक गुफा में स्थित है और यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक पवित्र प्राकृतिक शिला (पिंडी) के रूप में पूजा होती है।
मुस्लिम श्रद्धा और 'नानी का हज'
बलूच जनजातियों के लिए हिंगलाज मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी है। वे इसे 'नानी का हज' कहते हैं। 'नानी' का अर्थ है 'दादी' या 'माता' और इस तीर्थ को करने का महत्व उनके लिए भी वैसा ही है जैसा हज का महत्व मुस्लिमों के लिए होता है। बलूच लोककथाओं और सूफी परंपराओं में हिंगलाज माता को एक रहस्यमयी और रक्षक शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। कई मुस्लिम स्थानीय लोग भी हर साल यहां जाकर मन्नत मांगते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।
हिंदू तीर्थ यात्रा
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद भी भारत से हर साल कुछ हिंदू तीर्थयात्री विशेष अनुमति लेकर हिंगलाज यात्रा पर जाते हैं। यह यात्रा कठिन और पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरती है। 'हिंगलाज यात्रा' मुख्यतः नवरात्रि के दौरान की जाती है। भारत में सिंध, गुजरात और राजस्थान के हिंदू विशेष रूप से इस तीर्थ को अत्यंत पवित्र मानते हैं।
भारत-पाक की साझा सांस्कृतिक विरासत
हिंगलाज भवानी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत और पाकिस्तान की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। यह स्थान यह दर्शाता है कि धार्मिक सहिष्णुता और विविधता के बीच सामंजस्य संभव है। जहां एक ओर हिंदू इसे शक्तिपीठ मानते हैं, वहीं मुस्लिम इसे 'नानी का हज' कहकर समान श्रद्धा के साथ नमन करते हैं।