मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

रिसाइकिलिंग को लेकर जागरूकता से ही समाधान

06:53 AM Apr 25, 2024 IST
Advertisement

ज्ञानेन्द्र रावत

दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल स्थित कचरे के पहाड़ पर लगी आग फिलहाल बुझा दी गयी है। लेकिन अभी भी 40-50 छोटी-मोटी जगहों पर आग की लपटें बची हुई हैं। इसके धुएं से आसपास के हसनपुर, गाजीपुर, खोड़ा, चिल्ला गांव और मयूर विहार जैसे इलाकों में रहने वाले लोग आंखों में जलन व सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं। वहीं इस कचरे की दुर्गंध तो बरसों से उनकी नियति बन चुकी है। जो लोग दिल के मरीज हैं, परेशानी के चलते घर छोड़कर रिश्तेदारों के यहां चले गये हैं।
आजकल चुनावी माहौल में राजधानी दिल्ली वायु प्रदूषण की मार सह रही है वहीं कूड़े के पहाड़ का मसला चर्चा का विषय बना हुआ है। अभी तक आग के कारणों का पता नहीं चल सका है। पुलिस और एफएसएल की टीमें जांच कार्य में जुटी हैं। वहीं लैंडफिल साइट के प्रबंधन को लेकर दिल्ली नगर निगम की नीति पर लोगों ने सवाल जरूर खड़े किये हैं। उनका कहना है कि कचरे के पहाड़ पर आग हर महीने लगती रहती है लेकिन इसको नियंत्रित करने के कोई भी पुख्ता कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। हालांकि बीस सालों से कूड़े का पहाड़ खत्म करने के दावे किये जा रहे हैं लेकिन मसला जस का तस है। खमियाजा यहां रहने वाले लोगों को उठाना पड़ रहा है। इसका खातमा न हो पाने के पीछे कचरे का धीमी गति से उठान है।
कूड़े के पहाड़ के मामले में अभी तक दिल्ली और मुंबई महानगर सबसे ज्यादा चर्चित थे लेकिन अब गुरुग्राम ने भी इस सूची में नाम दर्ज करा लिया है। यहां बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर रोजाना फरीदाबाद और गुरुग्राम का 2300 टन कचरा पहुंच रहा है जहां तकरीबन 16 लाख टन कूड़ा पड़ा है। बीते 24 दिनों में यहां 13 बार आग लगने की घटनाएं हुईं। गत 23 अप्रैल की सुबह जो आग लगी उसके कई किलोमीटर तक फैले धुएं के चलते लोग आंखों में जलन से परेशान थे। लैंडफिल साइट के आसपास लोगों का रहना मुश्किल होता जा रहा है। यहां रहने वाले लोग बरसों से दिल, सांस, गले में खराश, दिमाग में सूजन आदि रोगों से परेशान हैं। खासतौर पर बच्चों, गर्भवती महिलाओं, हृदय और सांस के रोगियों के लिए यह स्थिति जानलेवा है। कचरे के पहाड़ पर लगी आग से वातावरण में घुल रहे धुएं पर उपराज्यपाल, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री और सुप्रीम कोर्ट तक ने संज्ञान लिया। निगमायुक्त, प्रमुख सचिव व दिल्ली सरकार से जबाव मांगा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत अपनी टिप्पणी में कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि राजधानी में प्रतिदिन निकलने वाले 11,000 टन ठोस कचरे में से 3,000 टन का कानून के तहत उचित तरीके से निपटान नहीं किया जाता है। खंडपीठ ने इसे स्तब्ध करने वाली बात कहा है कि ठोस कचरा प्रबंधन नियम 2016 को लागू हुए आठ साल हो गये हैं लेकिन दिल्ली में इसका कोई पालन नहीं हो रहा है।
यदि पूरे देश के हालात का जायजा लें तो देश में हर साल 277 अरब किलो कचरा निकलता है। इसमें से केवल 70 फीसदी ही इकट्ठा किया जाता है। बाकी जमीन और पानी में फैला रहता है। इकट्ठा किये कचरे में से आधा या तो खुले में फेंक दिया जाता है या उसे जमीन में दबा दिया जाता है। देश में निकलने वाला कचरा इंडस्ट्रियल और म्युनिसिपल दो तरह का होता है। इंडस्ट्रियल कचरे के निपटान की जिम्मेदारी उद्योगों और म्युनिसिपल कचरे के निपटान की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है। देश में कुल कचरे में से सिर्फ 5वें हिस्से की रिसाइकिलिंग हो पाती है। जिस तरह कचरे की रिसाइकिलिंग होती है उससे न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
भारत में सबसे बड़े महानगर मुंबई और दिल्ली में खुले में कचरा फेंका जाता है। खुले में फेंके कचरे में भारी मात्रा में निकल, जिंक, आर्सेनिक, कांच, क्रोमियम और दूसरी जहरीली धातुएं होती हैं। देश में सालाना जितनी जहरीली मिथेन उत्सर्जित होती है, उसमें से 20 फीसदी सिर्फ इन कचरे के ढेरों से निकलती हैं। वैसे आने वाले दिनों में विकास की रफ्तार और बढ़ेगी, तब ज्यादा तेज विकास के साथ कई गुणा कचरा बढ़ेगा। लेकिन सवाल है क्या हम उस स्थिति के लिए तैयार हैं। यदि अहमदाबाद, सूरत, नवी मुंबई, मैसूर और इंदौर की ही बात करें तो इन्होंने कचरा-संग्रह और उसके निपटान व स्वच्छता में एक विशिष्ट पहचान बनायी है। लेकिन क्या हमने इससे कुछ सीख ली है। ऐसी स्थिति में दिल्ली ही क्या, देश के हर शहर-कस्बे में कचरे के पहाड़ तेजी से बनेंगे। वे सुलगेंगे और लोगों की अनचाही मौत के कारण बनेंगे। उस दशा में आईपीसीसी की रिपोर्ट सही साबित हो जायेगी कि अगर यही रफ्तार रही तो 2050 में 3.4 गीगाटन कूड़ा-कचरा होगा जिसका निस्तारण हमारे सामर्थ्य से बाहर होगा।
असल में, कचरा प्रबंधन के मामले में हम दूसरे देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं। वह चाहे इंडस्ट्रियल कचरा हो या म्युनिसिपल। एेसी स्थिति में तो और विषम हालात हो जायेंगे जबकि वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2030 में भारत में हर साल निकलने वाला कूड़ा-कचरा 388 अरब किलो हो जायेगा। इसलिए जरूरी है कि लोगों को घरों में ही अलग-अलग डस्टबिन में कूड़ा-कचरा रखने के बारे में जागरूक किया जाये जिससे रिसाइकिलिंग में आसानी हो सके।

Advertisement

Advertisement
Advertisement