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सजगता से टालिये अल्जाइमर का असर

11:14 AM Oct 23, 2024 IST
सजगता से टालिये अल्जाइमर का असर
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डॉ.माजिद अलीम
मौजूदा स्मार्ट दौर में बड़े पैमाने पर लोग अल्जाइमर या मनोभ्रंश का शिकार हो रहे हैं। मेमोरी से जुड़ी यह एक ऐसी समस्या है जो हमारी सोचने की ताकत, रोजमर्रा के काम करने की क्षमता और दूसरों के साथ हमारे नियंत्रित व्यवहार को प्रभावित करती है। हम सोचने, काम करने जैसी चीजों से एक उम्र के बाद नियंत्रण खोने लगते हैं या पूरी तरह से खो देते हैं।
अल्जाइमर बीमारी डिमेंशिया जैसे कई लक्षणों का कारण बनती है। इससे हमारी याद्दाश्त चली जाती है। हम बोलने में कंपकंपाने लगते हैं। भाषा का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाते। व्यक्तित्व में स्थिरता नहीं रहती। रोजमर्रा के कामों को भी खुद से करने में मुश्किल होती है। हमारा व्यवहार लगातार विघटनकारी या अनुचित होता जाता है।
पीड़ितों की संख्या में लगातार वृद्धि
अल्जाइमर रोग का सबसे आम प्रकार मनोभ्रंश या याद्दाश्त के साथ गड़बड़ होना ही है। इस तेज रफ्तार जीवनशैली के दौर में जब लोग इतिहास के किसी भी दौर से ज्यादा तेज सोचते हों, उसी दौर में बहुत तेजी से यह अल्जाइमर बीमारी लगातार बढ़ रही है, जिसमें एक उम्र के बाद व्यक्ति अपनी जिंदगी खुद से जी पाने में असमर्थ होने लगता है। चिंता यह भी कि इस तेज मेडिकल विकास के दौर में अल्जाइमर से पीड़ितों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। साल 2020 में पूरी दुनिया में 5 करोड़ लोग अल्जाइमर से पीड़ित थे, जिसमें 56 लाख लोग अकेले अमेरिका में थे और तमाम चाकचौबंद स्वास्थ्य व्यवस्था के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि साल 2060 तक अमेरिका में ही अल्जाइमर पीड़ितों की संख्या बढ़कर 1. 40 करोड़ हो जायेगी।
भारत के लिए भी चुनौती
जहां तक अपने देश भारत की बात है तो साल 2022 में हमारे यहां अल्जाइमर से पीड़ित लोगों की संख्या 40 लाख को पार कर गई थी और 2023 के एक अध्ययन के मुताबिक, 2050 तक सबसे ज्यादा अल्जाइमर से पीड़ित लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ही होंगे। यह संख्या कुल अल्जाइमर्स पीड़ितों की 75 फीसदी तक होगी। इस तथ्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में किस तरह भारत में जबरदस्त अल्जाइमर पीड़ितों की संख्या हो सकती है।
दिमाग में कुछ प्रोटीन जमा होना है वजह!
अल्जाइमर का रोग दरअसल एक तरह का दिमाग से संबंधित रोग है। मस्तिष्क में कुछ प्रोटीन जमा हो जाने की वजह से ये होता है और समय के साथ यह बढ़ता रहता है। खतरनाक बात यह कि अल्जाइमर का कोई इलाज नहीं है। कुछ दवाएं लाइफ क्वालिटी को महज बेहतर बनाने के उद्देश्य से इस्तेमाल होती हैं। इस भयानक बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों के जानने और इसे लेकर सचेत रहने की जरूरत है। अल्जाइमर का पहला कारण यह है कि हम एक स्थिति के बाद अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर देते हैं और जिंदगी जीने के लिए ज्यादा से ज्यादा उपकरणों और तकनीकों पर निर्भर हो जाते हैं। इससे मस्तिष्क को नियमित मिलने वाला तनाव और एक्सरसाइज कम हो जाती है, नतीजतन हम अल्जाइमर की तरफ बढ़ने लगते हैं। दूसरा प्रमुख कारण हमारे जीन भी होते हैं। अगर हमारे मां-बाप या वंशबेल में किसी को यह समस्या होती है तो वह आगे भी बढ़ती रहती है। ऐसे ही अगर कभी सिर पर ऐसी गुम चोट लग जाए, जिससे सोचने समझने की क्षमता प्रभावित हो, तो भी यह चोट अल्जाइमर में परिवर्तित हो सकती है।
ये उपाय हैं फायदेमंद
बड़े पैमाने पर मोटर वाहन दुर्घटनाओं के शिकार लोग अल्जाइमर से पीड़ित पाये गये हैं। जो लोग तनाव-अवसाद में रहते हैं, उन्हें भी अल्जाइमर होने की अधिक आशंका रहती है। क्योंकि लगातार अवसाद में रहने से मस्तिष्क में एमिलॉयड बीटा प्रोटीन जमा हो जाता है, जो अल्जाइमर का कारण बनता है। जानिये अल्जाइमर से बचाव के एहतियात उपाय –
नियमित रूप से एक्सरसाइज करें और मानसिक रूप से भी सक्रिय रहें। इसके लिए बेहतर है कि नये कौशल सीखें, क्रास वर्ड बनाएं। वहीं मानसिक चुनौतियों को स्वीकार करें। नई भाषा के बारे जानकारी हासिल करें। वहीं संतुलित आहार लें, जिसमें सब्जियां, फल और प्रोटीन भरपूर हों। शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करें। धूम्रपान से बचें, अंधाधुंध शराब न पीएं। यह भी जरूरी है कि सिर को चोट लगने से बचाएं और अगर सुनाई कम पड़ने लगा हो तो तुरंत इलाज कराएं। याद रखें अल्जाइमर का कोई इलाज नहीं है, बस इससे बचाव के लिए सचेत रहना ही सबसे बड़ी दवा है। -इ.रि.सें.

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