सेहतमंद हवा के लिए बचें आतिशबाजी से
डॉ.ए.के.अरुण
हर साल दीपावली के मौके पर प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। दिल्ली-एनसीआर व देश के अन्य बड़े शहरों में पहले ही वाहनों के धुएं व पराली जलाने के चलते पर्यावरण इतना खराब होता है कि सांस लेना दूभर हो जाता है। उसके बाद दिवाली पर पटाखों द्वारा उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण का स्तर इतना भयावह होता है कि सरकार को प्रतिवर्ष पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध लगाना पड़ता है। दरअसल हमें पटाखे नहीं जलाने चाहिए क्योंकि जब पटाखे जलते व फूटते हैं तो उससे वायु में सल्फर डाइआक्साइड व नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं। पटाखों के धुएं से अस्थमा व अन्य फेफड़ों संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
आतिशबाजी से वातावरण में बिगाड़
पटाखों से ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण और धूल के सूक्ष्म कण वातावरण में फैल जाते हैं। पटाखों से निकलने वाली सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड गैस व लेड समेत अन्य रासायनिक तत्वों के सूक्ष्म कणों की वजह से अस्थमा व दिल के मरीजों को काफी परेशानी होती है।
सेहत को नुकसान
पटाखों और धुएं से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि इससे सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कई अध्ययनों के बाद रिपोर्ट्स में भी ये बात सामने आई है कि पटाखों से निकलने वाले धुएं में ऐसे केमिकल होते हैं, जो सीधा फेफड़े पर असर डालते हैं । देखा गया है कि दिवाली के बाद खांसी और अस्थमा की समस्या काफी हद तक बढ़ जाती है। वहीं सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है। पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर श्वसन तंत्र पर पड़ता है।
पशुओं के लिए भी आफत!
कुत्तों और पक्षियों जैसे जानवरों की सुनने की क्षमता मनुष्यों की तुलना में अधिक होती है। हम पटाखों के शोर से बच सकते हैं, लेकिन पशु-पक्षी नहीं। अधिक शोर वाले पटाखों से निकलने वाला शोर उनकी सुनने की इंद्रियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
ये उपाय हैं राहतकारी
पहली बात तो इस दीपावली पटाखों को ना कहें। इसके बारे में अपने आसपास लोगों को जागरूक भी करें। हो सके तो यात्रा के लिए सार्वजनिक वाहन का प्रयोग करें। यथा संभव कूड़े आदि में आग न लगाएं। खुद भी धुएं से बचें।
डेंगू के डंक से रहें सावधान
आ मतौर पर बुखार जब डेंगू की वजह से होता है तो इसमें शरीर का तापमान बहुत ज्यादा हो जाता है। करीब 104 डिग्री और इससे भी ज्यादा बॉडी का तापमान डेंगू के बुखार की निशानी है। बुखार के साथ ही सिर में दर्द डेंगू के बुखार का अन्य लक्षण है। खासतौर पर आंखों के आसपास और पीछे के हिस्से में हो रहा दर्द डेंगू की वजह से हो सकता है। डेंगू बुख़ार के ऐसे आदर्श लक्षण कम होते हैं जो अचानक शुरू हो जाते हैं जैसे सिरदर्द जो आमतौर पर आंखों के पीछे होता है। वहीं त्वचा पर चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द भी इसके संकेत हैं। बीमारी का उपनाम ‘हड्डीतोड़ बुख़ार’ ही दर्शाता है कि यह दर्द कितना गंभीर हो सकता है।
रोग के लक्षण : डेंगू में 4 से 7 दिन के भीतर तेज बुखार शुरू हो जाता है। भयंकर सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, थकान और कमजोरी, आंखों में दर्द, शरीर पर दाने, हल्की ब्लीडिंग के निशान इत्यादि। डेंगू में यदि तेज बुखार, जोड़ों में दर्द, थकान, उल्टी, डायरिया की समस्या बढ़ रही है तो चिंता का विषय है।
ऐसे करें बचाव : डेंगू बुखार को रोकने का सबसे अच्छा तरीका संक्रमित मच्छरों के काटने से बचना है। खुद को बचाने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें। जब बाहर हों, तो पूरी बाजू की शर्ट और मोज़े में लंबी पैंट पहनें। होमियोपैथी में भी उपचार : डेंगू बुख़ार में होमियोपैथिक उपचार कारगर हो सकता है। रक्त में प्लेटलेट्स काफ़ी कम हो जाने पर भी होमियोपैथी में राहतकारी दवा मौजूद है जो डॉक्टर की सलाह से ही लेनी चाहिये।
-हील इनिशिएटिव