सत्ताधीशों की निरंकुशता
जेन्नी शबनम
एक कहावत है ‘हाथी चले बाज़ार कुत्ता भौंके हज़ार।’ इसका अर्थ है आलोचना, निन्दा, द्वेष या बुराई की परवाह किए बिना अच्छे कार्य करते रहना या सही राह पर चलते रहना। इसका सन्देश अत्यन्त सकारात्मक है, जो हर किसी के लिए उचित, सार्थक एवं अनुकरणीय है। हम सभी के जीवन में ऐसा होता है जब आप सही हों फिर भी आपकी अत्यधिक आलोचना होती है। अक्सर आलोचना से घबराकर या डरकर कुछ लोग निष्क्रिय हो जाते हैं या चुप बैठ जाते हैं।
लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नकारात्मक रूप में कुछ नेता स्वयं को हाथी मानकर मनमानी करते हैं। आम जनता का क्या? चिल्लाये, चिल्लाती रहे। न किसी को हमारी परवाह है, न कोई हमारी बात सुनता है; फिर भी हम बोलते रहते हैं। ज़िन्दाबाद-मुर्दाबाद करते रहते हैं। हमारे सत्ताधीश बिगड़ैल हाथी की तरह सत्ता हथियाने के लिए भाग रहे हैं। वे हाथी हैं, अपने हाथी होने पर उन्हें घमंड है। भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी, अन्याय, अत्याचार, तानाशाही, निरंकुशता आदि के ख़िलाफ़ हम कितनी आवाज उठाएं, कोई सुनवाई नहीं है। नेताओं को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, वे हाथी जो ठहरे। जब-जब चुनाव आएगा तब-तब हाथी होश में आएगा और गिरगिट-सा रंग बदलते हुए अपनी चाल थोड़ी धीमी करेगा। थोड़ा पुचकारेगा, थोड़ा दया दिखाएगा; जो झांसे में न आया उसका दमन कर देगा।
यूं भी पेट और वोट का रिश्ता बहुत पुराना है। पांच साल जनता आवाज उठाये और नेता हाथी की तरह मदमस्त चलता रहे। समाज में हर तरह के लोग होते हैं जो हर कार्य का आकलन, अवलोकन और निष्पादन सोच-विचार से करते हैं। हमारी सोच को शिक्षा, धर्म और संस्कृति सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। जाने कब आएगा वह दिन जब न कोई शासक होगा, न कोई शोषित। जब शासक और शोषित होगा ही नहीं तो ऐसी कहावतों पर जनता को फिट नहीं किया जा सकेगा।
जनता अपने काम में लगी रहेगी और बेहतर समाज का निर्माण होगा। यही नहीं, इन सबसे इतर भी बात बनेगी। जनहित को ध्यान में रखकर इन्सानियत वाले समाज का निर्माण होगा। लेकिन शासक वर्ग हाथी की तरह अपने मद में चूर है। संदर्भ भले उलट गया पर कहावत सही है।
साभार : साझा संसार डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम