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यूं ही नहीं कहलाता औली भारत का मिनी स्विट्ज़रलैंड

06:47 AM May 31, 2024 IST
यूं ही नहीं कहलाता औली  भारत का मिनी स्विट्ज़रलैंड
औली रोपवे
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नैसर्गिक प्राकृतिक खूबसूरती के कारण औली हिल स्टेशन को भारत का ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ भी कहते हैं। गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले में स्थित यह हिल स्टेशन सुमद्र तल से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से टूरिस्ट कई पर्वत शृंखलाओं को देख सकते हैं। औली से पर्यटक नंदा देवी पर्वत, नागा पर्वत, डूंगगिरी, बीथरटोली, निकांत हाथी पर्वत और गोरी पर्वत को देख सकते हैं।

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अलका ‘सोनी’
गर्मी अपने प्रचंड रूप में है। घर के बाहर की चिलचिलाती धूप और हीट वेव हमें घरों में ही दुबके रहने को मजबूर कर देती है। ऐसे में मन करता है कि कहीं ठंडी जगह जाया जाए जहां जाकर तन और मन दोनों को ही राहत मिले। तो बस इंतजार किस बात का! गर्मियों की छुट्टियां भी हैं। पैकिंग कीजिए और निकल पड़िए ‘औली’।

औली के बारे में…

औली, उत्तराखंड में स्थित एक खूबसूरत हिल स्टेशन है, जहां देश-विदेश से टूरिस्ट आते हैं। यह हिल स्टेशन बद्रीनाथ के रास्ते में स्थित है। यहां एशिया की दूसरी सबसे लंबी केबल कार है जो कि 4 किमी लंबी है। इस केबल कार में बैठकर पर्यटक औली के अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हैं और बर्फ से ढकी चोटियों के दृश्य देखते हैं। पर्यटक, औली में सर्दियों और गर्मियों दोनों ही सीजन में जाते हैं। सर्दियों में यहां होने वाली बर्फबारी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है और देवदार, चीड़ के वृक्ष, सेब के बाग इस हिल स्टेशन की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं।
नैसर्गिक प्राकृतिक खूबसूरती के कारण औली हिल स्टेशन को भारत का ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ भी कहते हैं। गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले में स्थित यह हिल स्टेशन सुमद्र तल से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से टूरिस्ट कई पर्वत शृंखलाओं को देख सकते हैं। औली से पर्यटक नंदा देवी पर्वत, नागा पर्वत, डूंगगिरी, निकांत हाथी पर्वत और गौरी पर्वत आदि को देख सकते हैं। गर्मियों में औली बड़ी संख्या में टूरिस्ट ट्रैकिंग के लिए आते हैं। यहां औली से जोशीमठ का ट्रैक सबसे लोकप्रिय है। बड़ी संख्या में स्कीइंग गतिविधि के लिए भी टूरिस्ट इस हिल स्टेशन की सैर करते हैं। यहां टूरिस्ट नवंबर से मार्च तक स्कीइंग कर सकते हैं। इसके अलावा, पर्यटक औली में पैराग्लाइडिंग भी कर सकते हैं। औली के पास कई तीर्थस्थल हैं जिनमें आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली जोशीमठ, नंदप्रयाग और रुद्रप्रयाग है।
वैसे तो औली प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। यहां घूमने और देखने के लिए कई बेहतरीन जगहें हैं। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :-
एशिया का सबसे लंबा रोपवे
जोशीमठ से औली को जोड़ने वाला 4.15 किमी लंबा रोपवे एशिया का दूसरा सबसे लंबा रोपवे है। यह रोपवे दस टॉवरों से होते हुए लोगों को समुद्रतल से दस हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर औली ले जाता है। इसकी स्पीड देश के बाकी रोपवे से अधिक मानी जाती है। एक बार में केबिन में 25 टूरिस्ट बैठ सकते हैं।

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त्रिशूल पर्वत

त्रिशूल पर्वत
समुद्रतल से 23490 फीट ऊपर स्थित त्रिशूल पर्वत, औली का एक प्रमुख आकर्षण है। इस पर्वत का नाम भगवान शिव के त्रिशूल के नाम पर रखा गया है। एक रहस्यमयी जलाशय, रूपकुंड झील इस पर्वत के नीचे स्थित है।
सोलधार तपोवन
औली का यह प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां पर निकलने वाले गर्म पानी के फव्वारे देखने लायक होते हैं। लेकिन यहां जाने के लिए पर्यटकों को काफी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। कहा जाता है कि जो पर्यटक मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं, वही इस जगह की सैर आसानी से कर सकते हैं।

नंदा देवी

नंदा देवी
भारत का सबसे ऊंचा पर्वत, नंदादेवी 7,817 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चोटी का नाम स्वयं देवी को आशीर्वाद देने के लिए पड़ा है। चोटी को घेरे हुए नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान भी एक ऐसा स्थान है जहां वनस्पतियों, जीवों और जैव विविधता को देखा जा सकता है।

जोशी मठ

जोशीमठ
जोशी मठ औली से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यह बद्रीनाथ और फूलों की घाटी का प्रवेशद्वार माना जाता है। जोशीमठ शहर को ‘ज्योतिर्मठ’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने यहीं पर ज्ञान प्राप्त किया था। यहां पर शंकराचार्य का मठ और अमर कल्पवृक्ष भी है। माना जाता है कि यह वृक्ष लगभग 2,500 वर्ष पुराना है।
संजीवनी शिखर
औली को औषधीय वनस्पतियों का भंडार भी माना जाता है। इसी कारण इसे संजीवनी शिखर का भी नाम मिला है। कहते हैं कि रामायण काल में जब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने हिमालय आए तो उन्होंने एक टीले में रुककर यहां से ही द्रोणागिरि पर्वत को देखा था और उन्हें संजीवनी बूटी का दिव्य प्रकाश नजर आया था। औली के इसी संजीवनी शिखर पर हनुमानजी का भव्य मंदिर भी है।
विष्णुप्रयाग
विष्णुप्रयाग उत्तराखंड के चमोली जिले में, समुद्र तल से 1,372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस राजसी तट पर आप एक प्रसिद्ध विष्णु मंदिर भी देख सकते हैं। जिसे 1889 में इंदौर की महारानी ने बनवाया था। यहां अलकनंदा और दहलीगंगा की दो सहायक नदियों को एक साथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। विष्णुप्रयाग वास्तव में उन पांच स्थानों (पंचप्रयाग) में से एक है जहां नदी शक्तिशाली गंगा नदी में बदलने से पहले अपनी बहन सहायक नदियों से मिलती है।
ट्रैकिंग
औली, ट्रैकिंग के लिए भी जानी जाती है। क्योंकि यहां कुछ बेहतरीन ढलाने हैं जहां आप ट्रैक कर सकते हैं। लगभग 2500 से 3000 मीटर तक की चोटियां, औली में ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए अच्छे ट्रैकिंग मार्ग हैं। आप औली से नंदादेवी, कामेत, मन पर्वत, दूनागिरि, और जोशीमठ जैसे हिमालय की चोटियों तक जा सकते हैं। अन्य छोटी ट्रैकिंग रेंज गोर्सन, टाली, कुआरी पास, खुलारा और तपोवन हैं।

कैसे जाएं औली

औली साल के 365 दिन जाया जा सकता है। क्योंकि यहां का मौसम हमेशा खूबसूरत होता है। वैसे तो आप औली हवाई, रेल और सड़क मार्ग के जरिए भी जा सकते हैं। पर यदि आप सड़क मार्ग के जरिए औली जाते हैं तो आपको जीवनभर याद रहने वाला अनुभव होगा क्योंकि सफर के दौरान रास्ते में पड़ने वाली प्राकृतिक खूबसूरती आपकी यात्रा को और भी रोमांचक बना देती है।
हवाई मार्ग
देहरादून का जॉली ग्रैंट एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है जो औली से 220 किलोमीटर दूर है। मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों से हर दिन नियमित फ्लाइट्स देहरादून आती हैं। यात्री एयरपोर्ट से बस या टैक्सी के जरिए आसानी से औली पहुंच सकते हैं। इसके अलावा देहरादून का एयरपोर्ट ऋषिकेश से महज 20 किलोमीटर दूर है। आप चाहें तो ऋषिकेश से भी औली जा सकते हैं क्योंकि ऋषिकेश, औली से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन औली का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश का रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है और यहां नियमित रूप से ट्रेनें आती हैं। दिल्ली से हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए कई सुपरफास्ट ट्रेनें चलती हैं। रेलवे स्टेशन पहुंचकर यात्री चाहें तो कैब, टैक्सी या बजट बस सर्विस के जरिए ऑली पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग
सड़क मार्ग के जरिए औली जाने का आपका अनुभव जीवनभर याद रहने वाला अनुभव बन सकता है। क्योंकि सफर के दौरान रास्ते में पड़ने वाली प्राकृतिक खूबसूरती आपकी यात्रा को और भी रोमांचक बना देती है। ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून और दिल्ली के कश्मीरी गेट से नियमित अंतराल पर बसें औली के लिए चलती हैं। इसके अलावा उत्तराखंड के प्रमुख शहरों पौरी, जोशीमठ और रुद्रप्रयाग से भी कई बसें औली के लिए चलती हैं। यात्री चाहें तो जीप या ट्रैक्सी हायर कर भी एनएच94 के जरिए औली पहुंच सकते हैं। इसके अलावा एनएच58 भी ऋषिकेश को औली से जोड़ता है और महज 5 से 6 घंटे में आप ऑली पहुंच सकते हैं।

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