धार पर वार
हाल के कुछ वर्षों में तेवरों की पत्रकारिता करने वाले प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया पर जारी सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई की शृंखला में इस बार ऑनलाइन समाचार पोर्टल न्यूजक्लिक पर गाज गिरी है। दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने पोर्टल व उससे जुड़े पत्रकारों के तीस परिसरों पर मंगलवार को कार्रवाई की। इसमें कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को विशेष प्रकोष्ठ आॅफिस ले जाया गया और घंटों पूछताछ हुई। आरोप है कि चीन के हितों की पूर्ति के लिये पोर्टल को विदेशी फंडिंग हुई है। एजेंसी की कार्रवाई के खिलाफ विभिन्न पत्रकार संगठनों तथा विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से तल्ख प्रतिक्रिया व्यक्त हुई। आरोप है कि विभिन्न मुद्दों पर केंद्र सरकार अपनी आलोचना बर्दाश्त न करके मुखर मीडिया संस्थानों को सरकारी एजेंसियों के जरिये निशाने पर ले रही है। मीडिया से जुड़े लोग इस कार्रवाई को नये आपातकाल की दस्तक बता रहे हैं। बताते हैं कि मंगलवार की सुबह समाचार बेवसाइट न्यूजक्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ, वीडियो पत्रकार अभिसार शर्मा, पत्रकार भाषा सिंह, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, लेखक गीता हरिहरन, औनिंद्यो चक्रवर्ती, इतिहासकार सोहेल हाशमी व व्यंग्यकार संजय राजौरा के यहां विशेष प्रकोष्ठ ने छापेमारी की है। इन लोगों के मोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब्त किये गए। इसके अलावा बहुचर्चित सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता के घर भी कार्रवाई हुई है। हालांकि,शाम तक कई वरिष्ठ पत्रकारों को पूछताछ के बाद जाने दिया गया। लेकिन मीडिया संगठनों में पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ की कार्रवाई के खिलाफ रोष बना रहा। दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह छापेमारी अगस्त में दर्ज एक मामले में यूएपीए और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत की गई। दरअसल, अगस्त 2023 में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में न्यूजक्लिक वेबसाइट पर आरोप लगाया गया था कि चीन का प्रोपेगेंडा फैलाने के लिये एक अमेरिकी करोड़पति ने उन्हें वित्तीय सहायता दी है। इसके बाद वेबसाइट के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया था। इन आरोपों का न्यूजक्लिक ने खंडन किया था।
यह बात स्वाभाविक है कि जब देश विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक की रैंकिंग में पहले से ही निचले पायदान पर है तो पुलिस की इस कार्रवाई का कोई अच्छा संदेश तो नहीं जाएगा। हालांकि, सरकारी दलीलें दी गई हैं कि जांच एजेंसियां स्वतंत्र हैं और वे नियमों का पालन करते हुए अपना काम कर रही हैं। लेकिन ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि यदि आपके पास गलत स्रोत से पैसा आया है तो जांच एजेंसियां कार्रवाई नहीं कर सकती हैं। वहीं दूसरी ओर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया समेत दूसरे संगठनों ने इस कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की है। वहीं विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बयान में कहा गया है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व मीडियाकर्मियों के हितों के लिये प्रतिबद्ध है। विपक्षी दलों का आरोप है कि विभिन्न मुद्दों पर मुखर अभिव्यक्ति करने वाले अखबारों व मीडिया संस्थानों को सरकारी एजेंसियों के जरिये निशाना बनाया जा रहा है। सवाल मीडियाकर्मियों के घरों पर पुलिस की छापेमारी के तौर-तरीके व आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत केस दर्ज करने पर भी उठाये जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में शुरू हुए न्यूजक्लिक न्यूज पोर्टल को सरकार की आलोचना करने के लिये जाना जाता रहा है। पोर्टल की फंडिंग की जांच 2021 में भी हुई थी और दिल्ली पुलिस की आपराधिक शाखा ने वेबसाइट के खिलाफ केस दर्ज किया था। बाद में ईडी ने भी इस मामले में केस दर्ज किया। वहीं विपक्षी दल इस कार्रवाई को केंद्र सरकार की हताशा बता रहे हैं। बहरहाल, सवाल उठाये जा रहे हैं कि किसी स्वस्थ लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों पर ऐसी सख्त कार्रवाई करने का क्या औचित्य है? क्या यह लोकतंत्र में अधिनायकवाद की दस्तक तो नहीं है? मीडिया संस्थानों के खिलाफ गाहे-बगाहे कार्रवाई के पैटर्न को लोकतंत्र के लिये अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। कुछ विपक्षी दल इस कार्रवाई को बिहार के जातिगत जनगणना सर्वेक्षण के परिणाम से ध्यान हटाने की कवायद बता रहे हैं। साथ ही इसे संविधान में मिली अभिव्यक्ति की आजादी का भी अतिक्रमण कह रहे हैं।