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मिठास का वार

08:36 AM Apr 20, 2024 IST

हाल के दिनों में देश में आई जागरूकता के चलते कई ऐसे खुलासे हुए हैं, जिसमें बहुराष्ट्रीय खाद्य उत्पादों के हथकंडों का पता चला है। जिन खाद्य उत्पादों को दशकों से बच्चों की सेहत का राज बताया जा रहा था, परीक्षणों में पाया गया कि तेज मीठे की लत डालकर बच्चों को स्थायी ग्राहक बनाया जा रहा था। जांच के बाद सरकार ने बॉर्नविटा को सेहतवर्धक बताने वाले प्रचार को रोकने के लिये कहा था। अब इस कड़ी में बहुराष्ट्रीय कंपनी नेस्ले ने सफाई दी है कि उसके शिशु आहार उत्पादों में चीनी की मात्रा घटाई गयी है। यानी इससे पहले बच्चों को इस उत्पाद की आदत डालने के लिये भारत में इसमें अधिक चीनी की मात्रा मिलायी जा रही है। दरअसल, हाल ही में एक स्विस स्वयं सेवी संगठन ‘पब्लिक आई’ और इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क के निष्कर्षों से खुलासा हुआ कि नेस्ले कंपनी ने यूरोप के अपने बाजारों की तुलना में भारत तथा अन्य विकासशील देशों, अफ्रीका व लैटिन अमेरिकी देशों में अधिक चीनी वाले शिशु उत्पाद बेचे। नेस्ले इंडिया का दावा है कि उसने अब अपने उत्पादों में तीस फीसदी तक चीनी की कटौती की है। उल्लेखनीय है कि यह कंपनी नेस्कैफे, सेरेलैक व मैगी जैसे चर्चित उत्पादों का कारोबार करती है। इस बहुराष्ट्रीय कंपनी का रवैया कितना भेदभावपूर्ण व दुराग्रह से भरा हुआ है कि छह महीने के बच्चों को दिया जाने वाला नेस्ले का गेहूं पर आधारित उत्पाद सेरेलैक ब्रिटेन तथा जर्मनी में बिना किसी अतिरिक्त चीनी के बेचा जाता है। लेकिन भारत में सेरेलैक के 15 उत्पादों के अध्ययन के बाद खुलासा हुआ है कि एक बार के खाने में औसतन 2.7 ग्राम चीनी थी। अन्य विकासशील देश फिलीपीन्स में चीनी की मात्रा 7.3 ग्राम पाई गई। ऐसा शिशुओं को इसकी लत लगाने और लागत घटाने के मकसद से किया गया। जो निश्चित रूप से शिशुओं के जीवन से खिलवाड़ ही है। जिससे कई तरह के रोगों का भी जन्म होता है।
यह विडंबना ही है कि उपनिवेशवाद के चलते पूरी दुनिया का शोषण करने वाले यूरोपीय व पश्चिमी देश लोकतांत्रिक स्वरूप वाले विश्व में भी व्यापारिक हथकंडों के जरिये विकासशील देशों का दोहन कर रहे हैं। दरअसल, खाद्य पदार्थों व शीतल पेयों में अधिक चीनी व नमक के जरिये युवाओं को भी इन उत्पादों की लत लगाई जाती है। इससे उन्हें एक अलग से खुशी का अहसास होता है। जिससे कालांतर गैर संक्रमणीय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इस अस्वस्थ खाना-पान से कई रोग उत्पन्न होते हैं। इन स्वास्थ्य समस्याओं में वजन बढ़ना, मोटापा और कालांतर मधुमेह जैसे रोग हो सकते हैं। इसी तरह शीतल पेय, डिब्बा बंद जूस तथाकथित एनर्जी ड्रिंक्स तथा बिस्कुट में चीनी की मात्रा काफी अधिक होती है। इन उत्पादों की गिनती अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के रूप में होती है। हाल के दिनों में एक ब्रिटिश जनरल में खुलासा हुआ कि ऐसे खाद्य पदार्थों से उम्र पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। भारतीय चिकित्सक खुलासा कर रहे हैं कि यदि आपकी डाइट में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड की मात्रा दस प्रतिशत से ज्यादा होती है तो व्यक्ति के शरीर में कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग व अवसाद जैसे रोग उत्पन्न हो सकते हैं। भारत में हाल के दिनों में इन रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या में तेजी से विस्तार हुआ है। इस संकट का समाधान तभी हो सकता है जब हम देश में उपभोक्ताओं को जागरूक करें। साथ ही हर उत्पाद में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि किसी खाद्य या पेय पदार्थ में कितनी मात्रा में नमक या चीनी का उपयोग किया गया है। यदि कम शर्करा वाली वस्तु है तो स्पष्ट होना चाहिए कि यह मात्रा कितना रखी गई है। दरअसल, इन उत्पादों में चीनी-नमक की मात्रा की निगरानी वाले तंत्र को मजबूत बनाने की जरूरत है। साथ ही देश में ऐसे प्रयोगशालाओं की स्थापना हर राज्य में की जाए जो लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले उत्पादों की जांच-पड़ताल कर सके। साथ ही दोषी पाये जाने वाली कंपनियों पर कठोर कार्रवाई की भी व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही भ्रामक विज्ञापन करने वाले लोगों पर भी कार्रवाई हो।

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