प्राचीनता के साथ खूबसूरती बरकरार रखे हुए है एथेंस
ग्रीक यानी यूनान सभ्यता मिस्र, भारत और चीन की तरह सदियों पुरानी है। सन् 1830 में मार्डन ग्रीस की स्थापना हुई। फिर 1834 से एथेंस ग्रीस की राजधानी है। पहली मार्डन ओलम्पिक गेम्स 1896 में यहीं हुई थी। फिर 108 साल बाद 2004 में समर ओलम्पिक का आयोजन हुआ। ग्रीस करीब 3000 छोटे-छोटे आइलैंड्स को मिला कर बना है-ज्यादातर चट्टानी हैं और आबाद नहीं हैं। एथेंस के बाद ग्रीस की दूसरी बड़ी सिटी सेलोनिका है। करेंसी यूरो है और आजकल एक यूरो 95 रुपये के आसपास है।
अमिताभ स.
प्राचीन शहर होने के बावजूद ग्रीस की राजधानी एथेंस की खूबसूरती कहीं फीकी नहीं पड़ी है। लोग भी हमदर्द, मिलनसार और मेलजोल स्वभाव के हैं। यूरोप के दक्षिणी पूर्वी हिस्से में एथेंस छोटा-सा दिलकश शहर है। चौड़ी-चौड़ी सड़कें नहीं हैं और ट्रैफ़िक भी न के बराबर। इसलिए ट्रैफिक जाम तो होता ही नहीं। आने-जाने के लिए ट्राम की तरह इलेक्ट्रिक बसें हैं, टैक्सियां हैं और अंडरग्रांउड मेट्रो भी है।
एथेंस का पॉश एरिया है संटेगमा स्क्वेयर। बीचोंबीच खाली जगह है और सामने ऊंचाई पर ग्रीस पार्लियामेंट की शानदार इमारत है। एक तरफ एथेंस के दो बेस्ट होटल हैं और दूसरी तरफ वॉकिंग शॉपिंग स्ट्रीट। नाम है एर्मो स्ट्रीट और करीब एक किलोमीटर लम्बी है। दोनों ओर एक से एक ब्रेंडेड शोरूम हैं। दुनिया की 10वीं बेस्ट और सबसे महंगी शॉपिंग स्ट्रीट यही है और यूरोप की बेस्ट 5 में शामिल है। बाकी यूरोप के मुकाबले ब्रेंडेड शॉपिंग खासी सस्ती है। पैदल शॉपिंग करने का नजारा इतना हसीन है कि इधर-उधर रंग-बिरंगे फूलों से सजी स्ट्रीट शॉप्स जोरदार लगती हैं। और सड़क के बीच-बीच कबूतर भी गुटरगूं-गुटरगूं करते साथ-साथ चलते हैं, बीच-बीच में फुर्र-फुर्र उड़ जाते हैं और लौट आते हैं। नजारा बड़ा प्यारा लगता है।
शॉपिंग न करना चाहें, तो स्क्वेयर पार 150 हेक्टेयर एरिया में फैले हरे-भरे नेशनल गार्डन ऑफ एथेंस की हसीन अदाएं इंतजार कर रही हैं। बगल में ग्रीस पार्लियामेंट की हिफाजत में कोई पुलिस या फौज का पहरा नहीं है। दिल्ली से जा कर, यह देख ज़रा अटपटा लगता है। महज दो सजावटी गॉर्ड दिन-रात ग्रीस पार्लियामेंट के सामने तैनात रहते हैं। हर घंटे आगे बढ़ कर मार्च करते हैं और फिर एटेंशन खड़े हो जाते हैं।
छोटी कारों का चलन
दिल्ली में लम्बी और शानदार कारें ड्राइव करने की दीवानगी बढ़ी है। लेकिन एथेंस की सड़कों पर छोटी- छोटी कारें ही दौड़ती हैं। एक से एक अनूठी बाइक्स जरूर दिखाई देती हैं। पुलिस भी बाइक्स पर गश्त करती है। कॉलोनियों में फुटपाथ से सट कर, लाइन में सलीके से कारें पार्क होती हैं। और बसें कारों के बीच से तंग- तंग गलियों से भी आसानी से निकल जाती हैं।
मैकडॉनल्डस जैसे तमाम फास्ट फूड आउटलेट्स 24 घंटे खुलते हैं। फिश बर्गर ज्यादा चाव से खाया जाता है। स्ट्रीट फूड में ‘फिश एंड चिप्स’ बेस्ट डिश है। करीब-करीब हर नाइट रेस्टोरेंट में लाइव ग्रीक डांस की ताल पर हर दिल झूम उठता है। म्यूजिक स्पेनिश है और ‘जिन्दगी न मिलेगी दोबारा’ के जाने-माने गीत ‘न मैं समझा, न मैं जाना, मगर न जाने क्यों मुझे सुनकर अच्छा लगता है, सेनोरीटा...’ से मिलता-जुलता। हू-ब-हू वही फिल्मी नशा और उमंग पूरे माहौल में तैरने लगती है।
दसेक साल पहले मंदी की चपेट में आए देश की राजधानी में लोगों की तंगहाली साफतौर से झलकती है। हालांकि, तब विदेशी सैलानी को यहां यूरोप का लुत्फ काफी किफायती दाम पर मिल जाता था। खस्ता माली हालत के चलते लोगों ने अपने पालतू कुत्ते सड़कों पर छोड़ दिए थे। वैसे, अपनी गलियों की भांति वहां आवारा कुत्ते नहीं हैं। वहां भिखारी तो नहीं हैं, लेकिन छीना- झपटी की वारदातें होती हैं। मैकडॉनल्डस जैसे फास्ट फूड ऑउटलेट के कैश कांउटर पर अगर आप पर्स खोल कर भुगतान करते हैं, तो फौरन टोक दिया जाता है और ऐसा न करने की हिदायत दी जाती है।
नजदीक ही मेकोनॉस
एथेंस से सागर के रास्ते ग्रीस के दिलकश आइलैंड्स पर जाना और तफरी करना क्या बात है। एथेंस से हर घंटे फैरी सेनटोरनी और मेकोनॉस ले जाती है और वापस लाती है। फैरी एकदम अपनी बस सर्विस जैसी है। करीब 4 घंटे में एथेंस से मेकोनॉस पहुंचते हैं। ज्यों- ज्यों फैरी मेकोनॉस के करीब जाती हैं, त्यों-त्यों निराले शहर को देख-देख वहां उड़ कर जाने को जी कर उठता है। बिखरे-बिखरे घर हैं, सभी एक या डेढ़ मंजिला ही। हर घर की छत पर चिमनी है। पेंट सफेद है। खिड़की और दरवाजों का रंग चटक नीला है, कहीं- कहीं लाल भी।
मेकोनॉस को फोटो परफेक्ट कह सकते हैं। आर्किटेक्चर देखने लायक है। डाउन टाउन में मार्केट है। अपने दिल्ली के दिल चांदनी चौक की माफिक डाउन टाउन भी मेकोनॉस का दिल है। संकरी- संकरी गलियों के अंदर गलियां हैं। हर घर और दुकान का पेंट ऐसा दमकता है, मानो कल ही हुआ है। गलियों की जमीन का रंग नीला है और आड़ी- तिरछी मोटी-मोटी सफेद धारियां एक अलग- थलग मिजाज पेश करती हैं। गलियों में एक से एक रेस्टोरेंट और कैफे हैं, गिफ्ट स्टोर हैं और फेमस ब्रेंडेड जूलरी के शानदार शोरूम भी। ऐसा जादू पसरा है कि गलियों से बाहर निकलने को मन नहीं करता।
1834 से है राजधानी ग्रीक
यानी यूनान सभ्यता मिस्र, भारत और चीन की तरह सदियों पुरानी है। सन् 1830 में माडर्न ग्रीस की स्थापना हुई। फिर 1834 से एथेंस ग्रीस की राजधानी है।
पहली माडर्न ओलम्पिक गेम्स 1896 में यहीं हुई थी। फिर 108 साल बाद 2004 में समर ओलम्पिक का आयोजन हुआ।
ग्रीस करीब 3000 छोटे-छोटे आइलैंड्स को मिला कर बना है-ज्यादातर चट्टानी हैं और आबाद नहीं हैं। एथेंस के बाद ग्रीस की दूसरी बड़ी सिटी सेलोनिका है।
करेंसी यूरो है और आजकल एक यूरो 95 रुपये के आसपास है।
कब जाएं घूमने
* यूरोप के तमाम देशों की तरह ग्रीस और उसकी राजधानी एथेंस घूमने के लिए अप्रैल, मई और जून श्रेष्ठ महीने हैं।
* आमतौर पर मौसम मेडेटेरियन रहता है- यानी गर्मियां रूखी-सूखी और सर्दियों में ठंड के साथ बरसात भी।
* उड़ान से दिल्ली से एथेंस पहुंचने में करीब साढ़े 7 घंटे लगते हैं। और समय के लिहाज से करीब ढाई घंटे पीछे है। यानी यहां शाम के 4 बजे वहां दोपहर के डेढ़ बजे होंगे।