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पहल के पहलू

08:08 AM Aug 30, 2024 IST

निस्संदेह, लैंगिक समानता और शिक्षा व रोजगार में पर्याप्त अवसर की दृष्टि से हिमाचल सरकार द्वारा लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करना एक प्रगतिशील कदम है। लेकिन साथ ही हिमाचल सरकार द्वारा बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक 2024 के इस कदम ने एक नई बहस को भी जन्म दिया है। वहीं कांग्रेस पार्टी के भीतर भी कुछ असंतोष के सुर उभरते दिखे हैं। बहस इस मुद्दे से जुड़ी राष्ट्रीय चर्चाओं को लेकर भी है कि इससे पहले लाया गया केंद्र सरकार का बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक अभी भी एक संसदीय पैनल के समक्ष समीक्षाधीन है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश का कानून केंद्रीय पैनल के निष्कर्षों से पहले सामने आने के निहितार्थों पर प्रश्न पैदा करता है। दरअसल, जिस पैनल को केंद्रीय विधेयक की समीक्षा का कार्य सौंपा गया है, वह अभी लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल तक बढ़ाने से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श कर रहा है। उम्मीद है कि इसकी रिपोर्ट में सांस्कृतिक संवेदनशीलता, सामाजिक-आर्थिक कारकों और महिलाओं के अधिकारों तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर संभावित प्रभाव सहित विभिन्न चिंताओं को संबोधित किया जायेगा। इस मामले में हिमाचल सरकार की स्वतंत्र पहल का निर्णय जहां एक प्रगतिशील कदम है तो वहीं इसे जल्दबाजी में उठाया गया कदम भी कहा जा रहा है। निस्संदेह, हिमाचल सरकार का यह सक्रिय रुख लैंगिक समानता और युवा महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को ही उजागर करता है। वहीं दूसरी ओर महिलाओं की शादी की उम्र को पुरुषों के बराबर लाकर, सही मायनों में कानून का उद्देश्य उन्हें शादी के दबावों से मुक्त करना भी है। जिससे उन्हें शिक्षा और व्यक्तिगत विकास के लिये समान अवसर मिल सकें। निस्संदेह, ऐसे प्रयास स्त्री सशक्तीकरण की दिशा में एक सार्थक पहल कही जा सकती है। जो कालांतर समाज में लैंगिक समानता का मार्ग प्रशस्त करके उन्हें स्वावलंबी बनाने में मददगार हो सकती है। यही वक्त की मांग भी है।
लेकिन वहीं दूसरी ओर खुद कांग्रेस पार्टी में सरकार के निर्णय को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। कहा गया कि वे सुखविंदर सुक्खू सरकार के कदम से आश्चर्यचकित हैं, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने ही केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए इसी तरह के विधेयक का विरोध किया था। जिसकी वजह इसका मुस्लिम समाज पर पड़ने वाला प्रभाव भी था। कांग्रेस ने खासकर मुस्लिम पर्सनल लॉ के संबंध में चिंता भी जतायी थी। वहीं दूसरी ओर हिमाचल भाजपा ने सुक्खू सरकार के कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि तकनीकी रूप से इस कानून को लेकर हमारी पार्टी ने पहल की थी। वहीं कानून के जानकार कह रहे हैं कि इस तरह के कानून पर यदि संसदीय पैनल की रिपोर्ट एक अलग दृष्टिकोण या अतिरिक्त सुरक्षा उपायों का सुझाव देती है तो यह कदम कानूनी और सामाजिक विसंगतियां उत्पन्न करने का जोखिम भी पैदा कर सकता है। कालांतर राष्ट्रीय कानून, एक बार अधिनियमित होने के बाद राज्य कानूनों का स्थान लेगा। जिससे संभावित रूप से भ्रम पैदा हो सकता है। फलत: कालांतर संशोधन की आवश्यकता होगी। निस्संदेह, हिमाचल सरकार के कानून का समय उस व्यापक परामर्श प्रक्रिया को कमजोर करता है,जिस दिशा में संसदीय पैनल सक्रिय है। दरअसल, पैनल इस मुद्दे से जुड़े विविध दृष्टिकोणों को संतुलित करना चाहता है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि कानून का स्वरूप व प्रभाव विविधता के भारतीय परिवेश में समावेशी हो। जिसका संदेश जाए कि यह एक सुविचारित फैसला है। वहीं दूसरी ओर कह सकते हैं कि हिमाचल सरकार का कानून एक साहसिक कदम है। वहीं यह राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक व सुसंगत दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित करता है। जो भारत के विविधता के सामाजिक परिदृश्य में इस तरह के महत्वपूर्ण बदलावों को लागू करने की जटिलताओं की ओर ध्यान भी आकृष्ट करता है। निस्संदेह,यह कदम लड़कियों के लिये शिक्षा व कैरियर में आगे बढ़ने के नये अवसर भी सृजित करेगा। वहीं लड़कियों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिये भी यह अनिवार्य शर्त है।

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