For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

चौपाल पर कलाकारों ने बांधा समां

10:37 AM Feb 10, 2024 IST
चौपाल पर कलाकारों ने बांधा समां
फरीदाबाद के सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में शुक्रवार को नगाड़े की थाप पर प्रस्तुति देते कलाकार। -प्रेट्र
Advertisement

राजेश शर्मा/हप्र
फरीदाबाद, 9 फरवरी
37वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला के शुक्रवार को आठवें दिन मुख्य चौपाल तथा छोटी चौपाल पर विदेशी कलाकारों के साथ-साथ देश के विभिन्न प्रदेशों के कलाकारों ने अपनी समृद्ध संस्कृतियों से सराबोर शानदान प्रस्तुतियों से मेले में पहुंचे दर्शकों का दिनभर मनोरंजन किया।
मुख्य चौपाल पर विशेषकर विदेशी कलाकारों ने प्रस्तुति से धमाल मचाया। दर्शकों ने भाषा के बंधनों को तोड़कर इन कलाकारों की प्रस्तुतियों का खूब लुत्फ उठाया तथा कलाकारों का तालियों से हौसला बढ़ाया। हरियाणा के हास्य कलाकार मास्टर महेंद्र ने हास्य रचनाओं से हरियाणा की हाजिर जवाबी तथा मौज मस्ती की प्रस्तुतियों से दर्शकों को खूब हंसाया। मुख्य व छोटी चौपाल पर कलाकारों द्वारा दी गई प्रस्तुतियों में गुजरात के कलाकारों का ताली रास नृत्य भी शामिल रहा। इथोपिया के कलाकारों ने अपने लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति देकर धमाल मचाया। बोतस्वाना गणराज्य के कलाकारों ने अपने लोक नृत्यों फटीसी आदि के माध्यम से अपनी समृद्ध संस्कृति की झलक बिखेरी। कजाकिस्तान के कलाकारों ने वाद्ययंत्रों की सुरीली धुनों के साथ-साथ लोकगीतों की भी शानदार प्रस्तुतियां दीं।
असम के कलाकारों ने प्रसिद्ध बीहू नृत्य की शानदार प्रस्तुति पर दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। महाराष्ट्र के सैय्यद एंड पार्टी ने लावणी नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। विश्वजीत शर्मा की टीम ने शानदार भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया।

मेले में ब्रिटिश काल का पलंग रहा

साल-1899 में बने नक्कासीदार पलंग और डायनिंग टेबल सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की शोभा बढ़ा रही है। आंध्रप्रदेश के तिरुपति से पलंग लेकर सूरजकुंड पहुंचे हस्तशिल्प कलाकार का कहना है कि उनके पूर्वज इस पलंग को स्वतंत्रता सेनानियों के आराम करने के लिए बनाया था। लिहाजा यह पलंग स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले वीर-सपूतों की दस्तां को बयां कर रहा है। हस्तशिल्प मेले में पहुंचे तिरुपति निवासी दौरा स्वामी ने बताया कि उनका यह काम पुस्तैनी है। वह लकड़ी से नक्कासीदार कुर्सी, टेबल, पलंग, भगवान की मूर्तियां बनाते हैं। आजादी से पहले उनके पूर्वज तिरुपति के राजा महराजाओं, जमींदार और अंग्रेज अफसरों के लिए आराम करने का सामान बनाते थे। आंध्र प्रदेश के कई शहरों, गांवों, खासकर तिरुपति में यह चलन आज भी है। दौरा स्वामी ने बताया कि कला पचहारी नामक एक मामा अभी जीवित हैं। उनकी उम्र 100 साल से अधिक है। उनके मामा ने अपने पिता से लकड़ी से सामान बनाने की कला सीखी। दौरा स्वामी के अनुसार, उनके मामा कहते हैं देश की आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए उन्होंने निस्वार्थ भाव से कई पलंग और कुर्सी बनाई। अंग्रेज अफसर की नजरों से बचाकर उसे उनके घर या कार्यालय तक पहुंचाते थे।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×