सेहत को रास न आये कृत्रिम मिठास
डॉ. मोनिका शर्मा
वर्तमान जीवनशैली में जाने-अनजाने आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स का खूब इस्तेमाल हो रहा है। कोल्ड ड्रिंक और च्यूइंग गम जैसी चीजों के जरिये तो नकली मिठास शरीर में पहुंच ही रही है घरेलू कुकिंग में भी शुगर फ्री खूब बरता जा रहा है। चाय हो या शीतल पेय, यह माना जाने लगा है कि शुगर फ्री का उपयोग वजन काबू में रखने से लेकर मीठे से होने वाली दूसरी परेशानियों तक, हर मामले में कारगर है। जबकि सच यह है कि आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स ही कई स्वास्थ्य समस्याओं को न्योता देने वाले हैं। आवश्यक है कि त्योहारी मौसम में स्वास्थ्य से जुड़े इस पहलू पर भी ध्यान दिया जाए।
सजगता की दरकार
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन की रिसर्च एजेंसी इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार, आर्टिफिशल स्वीटनर यानी एस्पार्टेम कैंसर का जोखिम पैदा कर सकता है। इसीलिए एस्पार्टेम, जिसे आम भाषा में शुगर फ्री कहा जाता के इस्तेमाल में सजगता आवश्यक है, क्योंकि यह डाइट कोला, कोल्ड ड्रिंक्स, च्यूइंग गम और कई तरह की शुगर-फ्री मिठास में पाया जाता है। खासकर 95 प्रतिशत कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक में तो स्वीटनर के तौर पर एस्पार्टेम का ही उपयोग होता है। कैंसर अध्ययन से जुड़ी विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस एजेंसी ने नकली मिठास के इस्तेमाल के संभावित असर का आकलन करने के बाद चेताया है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट में एस्पार्टेम इस्तेमाल को व्यक्तियों के लिए कैंसरकारी चीजों की लिस्ट में शामिल किया जा सकता है। इसीलिए आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स को आम दिनचर्या में खानपान का हिस्सा बनाना खतरनाक है। शुरुआत में डायबिटीज आदि के मरीजों को ही नकली मीठे के इस्तेमाल की सलाह दी गई थी पर अब स्वस्थ और सक्रिय लोग भी इनका इस्तेमाल करने लगे हैं। आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स वाले खाद्य पदार्थ खाना-पीना लोगों को अपनी सेहत सहेजने का आसान तरीका लगने लगा है। ऐसे में जरूरी है, नकली मिठास के सेवन से होने वाले नुकसान के प्रति सचेत रहा जाए।
गुणवत्ता पर भी सवाल
आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स के रूप में इस्तेमाल हो रहे एस्पार्टेम, सुक्रालोज, सैक्रीन और स्टीविया जैसे कई पदार्थ स्वास्थ्य के लिए तो खतरा हैं ही, इनका मिलावटी होना इस खतरे को और बढ़ा देता है। चार साल पहले सामने आए एक अध्ययन के मुताबिक, मार्केट में मौजूद अधिकतर शुगर सबस्टीट्यूट्स की क्वालिटी सही नहीं है। चिंता की बात है कि चॉकलेट, आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक्स आदि में बच्चे भी नकली मीठे का खूब सेवन कर रहे हैं। सीधे सैशे, गोली या ड्रॉप्स से न भी लें तब भी कई फूड आइटम से नॉन-शुगर स्वीट्नर्स हर उम्र के लोगों के शरीर में पहुंच रहे हैं। जबकि कृत्रिम मिठास की क्वालिटी ही सवालों में हैं।
बेहतर विकल्प ढूंढें
दरअसल, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने साल 1981 में भारत सहित 90 से ज्यादा देशों में इसके उपयोग की मंजूरी दी थी। उसके बाद भी समय-समय पर इसके असर को लेकर समीक्षा की जाती रही है। कुछ समय पहले डब्लूएचओ की ही गाइडलाइन में कहा गया था कि आर्टिफिशल स्वीटनर का उपयोग हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा भी बढ़ा सकते हैं। मोटापा घटाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा नकली मीठा मेटाबॉलिज्म को भी धीमा कर सकता है। मेटाबॉलिक रेट का डिस्टर्ब होना स्ट्रोक, अस्थमा, अवसाद, एलर्जी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ाता है। इसीलिए जरूरी है कि इनके बेहतर विकल्प तलाशे जाएं।
परम्परागत खानपान अपनाएं
परंपरागत खानपान वाले हमारे देश में आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स का विकल्प तलाशना कोई मुश्किल काम नहीं है। कोल्ड ड्रिंक्स की जगह नारियल पानी, गन्ने का जूस, नीबू पानी आदि सेवन करने की आदत बनानी चाहिए। जबकि च्यूइंग गम जैसी चीजों से दूरी ही बेहतर है। घरेलू कुकिंग में भी गुड़, शहद और खजूर जैसी चीजों का इस्तेमाल करना सही है। आर्टिफ़िशियल स्वीट्नर्स पैक्ड स्नैक्स, पैक्ड जूस, डेजर्ट्स, चॉकलेट्स, सॉस, आइसक्रीम, जैम, केक, योगर्ट जैसे खाद्य पदार्थों में भी बड़ी मात्रा में में होते हैं। ऐसे में घर पर बने खाने को प्राथमिकता देना भी सेहत सहेजने वाला कदम है। इतना ही नहीं हमारे यहाँ तो हर राज्य में स्नैक्स के भी कई परम्परागत विकल्प सदा से ही बनते आए हैं। मीठे और नमकीन स्वाद में बनाए जाने वाले घरेलू स्नैक्स स्वादिष्ट और सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं।